हैंडलूम अब अपनी पहचान को दर्ज कराने का जरिया बनता जा रहा है. यह सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा होता जा रहा है. हैंडलूम की कहानी आजादी से जुड़ी हुई है. इसमें हमारी संस्कृति, धरोहर और इतिहास आदि सिमटे हुए हैं. करीब 100 साल पहले स्वदेशी अभियान का प्रतीक भी खादी ही था. खादी को जन-जन तक पहुंचाने और फैशन के दौर में और भी खिलने के लिए नए सिरे से कोशिशें हो रही हैं. तो क्या हैंडलूम के अच्छे दिन आएंगे?