सोचिए हवाबाज़ी वाले भाषणों में हवा ही नहीं है. बाजा है और बाज़ी है. इंडियन एक्सप्रेस की खुशबू नारायण की एक रिपोर्ट आई कि नोटबंदी वाले साल में 88 लाख करदाता टैक्स रिटर्न नहीं भर पाए. क्यों नहीं रिटर्न भर पाए क्योंकि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियां ठहर गईं और लोगों की नौकरी चली गई. आमदनी घट गई. उसी वक्त ये आंकड़ा आता तो इन 88 लाख लोगों को सम्मानित किया जाता. काला धन की समाप्ति के लिए अपनी नौकरी गंवा कर योगदान करना मज़ाक बात नहीं है. खुशबू नारायण की यह रिपोर्ट बेहद गंभीर है. सोचिए जिस फैसले से 88 लाख लोगों की नौकरी चली गई, या वे टैक्स रिटर्न भरने लायक नहीं रहे, उन्हें कम से कम नोटबंदी सम्मान प्रमाण पत्र तो देना ही चाहिए. रिटर्न फार्म भरना और टैक्स देना दोनों में अंतर होता है.