अखबारों में रेलवे को लेकर कई प्रकार की सुनहरी ख़बरें छपने लगी हैं. मूल सवाल बस इतना है कि रेलगाड़ियां टाइम से क्यों नहीं चल रही हैं, क्या इसके लिए पर्याप्त काम नहीं हो रहा है, ट्रैक बदल रहे हैं तो कहां पर बदल रहे है, कितने किमी ट्रैक पर काम हो रहा है, कब तक काम पूरा होगा कोई नहीं बता रहा. कोई नहीं बता रहा कि एक लाख के करीब जो वेकैंसी निकली थी उसकी परीक्षा कब होगी, उसकी प्रक्रिया कब पूरी होगी. मगर बताया जा रहा है कि वाई फाई का इस्तमाल बढ़ गया. 2011 से मार्च 2018 तक रेलगाड़िओं में एक लाख बायो टायलेट लग गए हैं. सवा लाख और लगेंगे. बिल्कुल सुविधाओं में निरंतर बदलाव होते रहना चाहिए मगर क्या रेलमंत्री को मालूम है कि मालगाड़ी के गार्ड के कमरे का शौचालय कैसा है, क्या पीयूष गोयल को पता है कि रेलवे गुमटी पर जो गेटमैन गाड़ियों को झंडा दिखाकर पास कराता है, उसके कमरे में शौचालय है भी या नहीं. अगर रेलवे ने अपने ही स्टाफ को खुले में शौच करने की मजबूरी से मुक्त नहीं किया तो हम कैसे मान लें कि यह मंत्रालय प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान की परवाह करता है.