इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह के मंटो को बंटवारे के बाद लाहौर जाना पड़ता है लेकिन उनका दिल मुंबई में ही है. फिल्म की कहानी मंटो के लेखन पर हुए विवाद और मंटो के व्यक्तित्व को दिखाती है. मंटो की कहानियां फिल्म मंटो को दिशा देती है. फिल्म का शुरुआती हिस्सा थोड़ा लंबा है. हालांकि फिल्म की निर्देशक नंदिता ने 40 के दशक को अच्छे से दिखाया है.