मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक़ यानी तलाक़ ए बिद्दत की प्रथा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक क़रार देने के दो साल बाद एक बार फिर तीन तलाक़ से जुड़ा बिल लोकसभा में पास हो गया है. ये बिल 82 के मुक़ाबले 303 वोटों से लोकसभा में पास हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा था कि तीन तलाक़ की प्रथा की कुरान में कोई मान्यता नहीं है लिहाज़ा धर्म के अधिकार के तहत इस प्रथा को सही नहीं ठहराया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक़ के नियमन के लिए एक क़ानून लेकर आए. मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल में इस सिलसिले में जो बिल लेकर आई वो लोकसभा में तो पास हो गया था लेकिन बहुमत न होने के कारण राज्यसभा में लटक गया ऐसे में मोदी सरकार इस अहम मसले पर तीन बार अध्यादेश ला चुकी थी. दूसरी बार सत्ता में आने पर मोदी सरकार ने एक बार फिर ये बिल लोकसभा में पेश किया. विपक्ष के तीखे विरोध के बीच क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ये बिल सदन के पटल पर रखते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से अब तक तीन तलाक़ के 345 मामले सामने आ चुके हैं. ऐसे में सरकार मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर मूक दर्शक बनी नहीं रह सकती. इस बिल में तीन तलाक़ देने पर पति को तीन साल तक की जेल का प्रावधान है. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ये बिल लैंगिक समानता और न्याय के लिए ज़रूरी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के दो साल पुराने आदेश के बावजूद मुस्लिम महिलाओं को तलाक़-ए-बिद्दत का शिकार बनाया जा रहा है. प्रसाद ने बिल के दुरुपयोग की सभी आशंकाओं को खारिज किया और कहा कि इस बिल में आरोपी के लिए ट्रायल से पहले ज़मानत का प्रावधान शामिल कर लिया गया है.