मीडिया के कवरेज में शराब की बंद दुकानों को ऐसे दिखाया गया जैसे ग्लोबल अर्थव्यवस्था का घर उजड़ गया हो. रिपोर्टर से लेकर एंकर की भाषा में इन दुकानों के प्रति सहानुभूति दिखी, रोज़गार और कारोबार के नुकसान के पक्ष को ज़्यादा मज़बूती से उभारा गया. दिखाया गया कि किस तरह से फ्रीडम ऑफ च्वाइस पर हमला हुआ है. इसके टोन अंडरटोन में आपको समुदाय का रंग नहीं मिलेगा. इसलिए शराब कारोबारी पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात मीडिया के सामने रख सके.