दिल्ली के चुनावों में फिर से एक बार बिरयानी की देग चढ़ गई है. राजनीति ने एक चश्मा दिया है और चाहती है कि आप उस चश्मे से खाने पीने और पहनने ओढ़ने की चीज़ों को देखना शुरू कर दे. बहुत लोग देखने भी लगे होंगे. हम भाषणों के झोंक में भूल जाते हैं कि भारत में शाकाहारी भी हैं और मांसाहारी भी हैं. जो मांसाहारी हैं वो भी त्योहारों के समय शाकाहारी हो जाते हैं और कई घरों में शाकाहारी भी होते हैं और मांसाहारी भी. बिरयानी हर मज़हब के लोग खाते हैं मगर दिल्ली के चुनावों ने जो चश्मा दिया है वो चाहता है कि आप उस चश्मे से सिर्फ एक समुदाय को बिरयानी खाते हुए देखें. किसी को बिरयानी खिलाना अच्छी बात होती है. जो शाकाहारी होते हैं वो वेज बिरयानी खाते हैं. भारत की राजनीति में बिरयानी की राजनीति झूठ के हंस पर सवार हो कर आई. ऐसा नहीं है कि देश में प्रदर्शन सिर्फ शाहीन बाग में ही हो रहा है, और मुद्दा सिर्फ नागरिकता संशोधन कानून ही है. अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल ने कहा था कि 50,000 नौजवानों को नौकरी दी जाएगी. तीन महीने के भीतर. तब उन्होंने कहा था कि यह राज्य का अब तक सबसे बड़ा भर्ती अभियान होगा. आज वो नौकरियां कहां हैं, पता नहीं.