उत्तराखंड में बारिश और क्लाउडबर्स्ट की हाईटेक निगरानी, इन जगहों पर लगेंगे 3 मॉर्डन रडार

वैज्ञानिक विश्लेषण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, तेज़ी से पीछे पिघलते ग्लेशियरों, ग्लेशियर-झील के फटने के खतरे, कमज़ोर होते हिमालय पर्वत प्रणाली, जंगलों की कटाई और प्राकृतिक जल निकासी मार्गों को बाधित करने वाले मानव निर्मित अतिक्रमणों के संयोजन की ओर इशारा करते हैं.

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  • मॉनसून सीजन में उत्तराखंड में भारी बारिश और आपदाओं से सैकड़ों लोगों की मौत हुई और करोड़ों की संपत्ति नष्ट
  • सरकार ने उत्तराखंड के हरिद्वार, पंतनगर और औली में तीन नए मौसम राडार स्थापित करने का निर्णय लिया है
  • उत्तराखंड में पहले से ही सुरकंडा देवी, मुक्तेश्वर और लैंसडाउन में तीन मौसम राडार लगाए गए हैं
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हरिद्वार:

मॉनसून सीजन - 2025 के दौरान भारी बारिश और आपदा ने भयंकर कोहराम मचाया. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में आपदा की भयावह घटनाओं में सैकड़ों आम नागरिक मरे गए, और हज़ारों करोड़ की संपत्ति बर्बाद हुई. विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और मौसम में तेज़ी से हो रहे बदलाव की वजह से राज्य के कई हिस्सों में क्लॉउड बर्स्ट (बदल फटने) की घटनाओं ने कहर बरपाया.

उत्तराखंड में इन जगह लगेंगे मौसम राडार

अब भारत सरकार ने इस बढ़ते संकट का संज्ञान लेते हुए एक अहम फैसला लिया है. केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने घोषणा की है कि उत्तराखंड के हरिद्वार, पंतनगर और औली में जल्द ही तीन नए मौसम रडार (Weather Radars) स्थापित किए जाएंगे, जिससे इस क्षेत्र की वास्तविक समय में मौसम पूर्वानुमान की क्षमता मजबूत होगी.

इन जगहों पर पहले ही लग चुके हैं राडार

इससे पहले उत्तराखंड में संवेदनशील इलाकों जैसे सुरकंडा देवी, मुक्तेश्वर और लैंसडाउन में तीन मौसम रडार पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं. देहरादून में "आपदा प्रबंधन पर विश्व शिखर सम्मेलन" (World Summit on Disaster Management) को संबोधित करते हुए पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने ये महत्वपूर्ण ऐलान किया.

मंत्रालय ने क्या कुछ बताया

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी एक नोट के मुताबिक, भारत सरकार ने पिछले दस वर्षों में उत्तराखंड के मौसम विज्ञान और आपदा निगरानी बुनियादी ढांचे के विस्तार और पूर्व चेतावनी प्रसार में सुधार के लिए 33 मौसम विज्ञान वेधशालाएं (meteorological observatories), रेडियो-सॉन्ड (radio-sonde) और रेडियो-विंड प्रणालियों (radio-wind systems) का एक नेटवर्क, 142 स्वचालित मौसम केंद्र (automatic weather stations), 107 वर्षामापी (rain gauges), जिला-स्तरीय और ब्लॉक-स्तरीय वर्षा निगरानी प्रणालियां, और किसानों के लिए व्यापक ऐप-आधारित आउटरीच कार्यक्रम स्थापित किए गए हैं."

उत्तराखंड में जल-मौसम संबंधी खतरे तेज़ी से बढ़े

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने उत्तराखंड में आपदा की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि पिछले एक दशक में उत्तराखंड में जल-मौसम संबंधी खतरे तेज़ी से बढ़े हैं, जिसमें 2013 केदारनाथ में बादल फटने और 2021 की चमोली जैसी आपदा की बड़ी घटनाएं शामिल हैं. वैज्ञानिक विश्लेषण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, तेज़ी से पीछे पिघलते ग्लेशियरों, ग्लेशियर-झील के फटने के खतरे, कमज़ोर होते हिमालय पर्वत प्रणाली, जंगलों की कटाई और प्राकृतिक जल निकासी मार्गों को बाधित करने वाले मानव निर्मित अतिक्रमणों के संयोजन की ओर इशारा करते हैं.

विशेष हिमालयी जलवायु अध्ययन कार्यक्रम शुरू

साथ ही, केंद्रीय मंत्री ने भारत में अचानक बादल फटने की घटनाओं का विश्लेषण करने के लिए एक विशेष हिमालयी जलवायु अध्ययन कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य संवेदनशील जिलों के लिए पूर्वानुमानात्मक संकेतक तैयार करना है. इसी हफ्ते गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति ने मानसून सीजन - 2025 के दौरान उत्तराखंड में आपदा की घटनाओं की तीव्रता (Intensity), पैमाने (Scale) और संख्या (Frequency) में बढ़ोतरी के कारणों की कई घंटे समीक्षा किया था.

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सूत्रों के मुताबिक, संसदीय समिति को उत्तराखंड सरकार के वरिष्ठ अधिकारीयों द्वारा बताया गया कि उत्तरकाशी के धराली में आयी बड़ी आपदा के कई कारण हो सकते हैं, और इस भयवाह आपदा के प्रमुख कारण के रूप में किसी एक कारक को चिन्हित करना कठिन है.

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