कांग्रेस को लेकर अखिलेश यादव का क्या है नया प्लान? मिल सकती हैं ये सीटें

उप चुनाव के लिए टिकट फ़ाइनल कर अखिलेश यादव ने ऐसा ही किया. गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी अब उन्होंने कांग्रेस पर छोड़ दी है. पर वे ये नहीं चाहते हैं कि लोग कहें कि वे गठबंधन तोड़ने में लगे हैं.

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नई दिल्ली:

तीन दिनों में तीसरी बार. हर बार एक ही बात. सबसे पहले अपने गांव सैफई में. फिर समाजवादी पार्टी ऑफिस में प्रेस कांफ्रेंस में. उसके बाद लखनऊ के लोहिया पार्क में. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस साथ है. इंडिया गठबंधन पहले जैसा ही है. इंडिया गठबंधन PDA के साथ चलेगा. PDA मतलब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक. क्या यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है ! अगर ठीक है तो फिर अखिलेश यादव को एक ही बात बार बार कहने की क्या ज़रूरत है.

हरियाणा में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं किया. जम्मू कश्मीर में पार्टी चुनाव के लड़ी पर वोट नहीं मिले. फिर अखिलेश यादव ने इसी हफ़्ते यूपी में उप चुनाव के लिए 6 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. इनमें से दो विधानसभा सीटें कांग्रेस माँग रही थी. अखिलेश यादव ने ये फ़ैसला लेने से पहले कांग्रेस से पूछा तक नहीं. कांग्रेस पार्टी तो कम से कम 5 सीटें माँग रही थी. यूपी में दस सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव है. मैसेज ये गया कि हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद समाजवादी पार्टी अब अपने मन की करेगी. 

उप चुनाव के लिए टिकट फ़ाइनल कर अखिलेश यादव ने ऐसा ही किया. गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी अब उन्होंने कांग्रेस पर छोड़ दी है. पर वे ये नहीं चाहते हैं कि लोग कहें कि वे गठबंधन तोड़ने में लगे हैं. अखिलेश यादव बड़ी विनम्रता से कह रहे हैं कि गठबंधन तो बना रहेगा. गाँवों में एक कहावत मशहूर हैं पंचायत का फ़ैसला तो मानेंगे लेकिन खूँटा को बीच चौराहे पर लगेगा. यूपी में कांग्रेस से गठबंधन समाजवादी पार्टी अपनी शर्तों पर चाहती है. मुलायम सिंह यादव का कुश्ती वाला धोबी पछाड़ वाली दांव राजनीति में खूब चला. अब अखिलेश इस गठबंधन वाला खेल अपने पिता की तरह खेल रहे हैं. 

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यूपी में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पाटी का गठबंधन था. विपक्ष के लिहाज़ से दलितों की पहली पसंद कांग्रेस रही. जिस सीट पर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस लड़ी, वहाँ तो बीएसपी का सफ़ाया ही हो गया. बीजेपी को हराने के लिए मायावती का बेस वोटर कांग्रेस की तरफ़ चला गया. इसमें जाटव वोटर भी शामिल हैं. इसीलिए तो मायावती इन दिनों कांग्रेस पर बहुत गर्म हैं. आँकड़े बताते हैं कि दलित वोटर को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है. अखिलेश यादव मुस्लिम और दलित समाज के इस मानस से वाक़िफ़ हैं. इसीलिए गठबंधन तोड़ने का ठीकरा वे अपने माथे लेने को तैयार नहीं है. वे ये भी जानते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का कॉमन वोट बैंक है. इसीलिए एक का फ़ायदा तो दूसरे का नुक़सान तय है

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अखिलेश यादव का फ़ोकस 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव है. दिल्ली की राजनीति से उन्हें बहुत मतलब नहीं है. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के शानदार प्रदर्शन से बने माहौल को दो साल तक खींचना कठिन काम है. कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखने के भरोसे के बहाने वे मुस्लिम और दलितों को अपने साथ साधे रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वे जानते हैं कि साथ होने से ज़रूरी साथ दिखना है. 
 

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