- पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन के बाद परिवार में संपत्ति और अंतिम संस्कार को लेकर विवाद.
- छन्नूलाल मिश्र की बेटी नम्रता ने पिता के अंतिम संस्कार और कर्मकांडों पर सवाल उठाते हुए भाई की आलोचना की है
- छन्नूलाल मिश्र के बेटे रामकुमार मिश्र ने बहन के आरोपों को संपत्ति के लालच से प्रेरित बताया है
शास्त्रीय संगीत की दुनिया के महान गायक पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का इस दशहरे के दिन निधन हो गया. एक तरफ जहां पूरे देश में शोक की लहर है, वहीं पंडित जी के परिवार में संपत्ति को लेकर रार मची हुई है. बेटी नम्रता ने अपने पिता के अंतिम संस्कार और उसके बाद हुए कर्मकांडों पर सवाल उठाए हैं. वहीं बेटे पंडित रामकुमार मिश्र ने इन आरोपों को संपत्ति का लालच करार दिया है. अपनी गायकी के जरिए पूरी दुनिया में विख्यात पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के बेटे और बेटी सबसे पहले तो उनके त्रिरात्री और त्रयोदशी को लेकर ही आमने-सामने हैं. उनकी बेटी कहती हैं कि उनका भाई तेरह दिन काम क्रिया नहीं करना चाहता है और तीन दिन में ही सब कुछ खत्म कर अब फिर से बाहर क्रिया कर्म करने की बात कर रहा है.
नम्रता कहती हैं कि उन्होंने पिताजी के बहार के मकान के कई करोड़ रुपये लिए है और बनारस के छोटी गैबी का मकान पिताजी ने मुझे दिया और उनकी मर्जी से बिका तो इसके लिए भी उन्हें परेशानी है. उनका कहना है की मैं बेटी हूं और अब उनका क्रिया कर्म पूरी तरह से तेरहवीं बनारस में करूंगी. मीडिया के माध्यम से पूरे बनारस को न्योता दे रही हूं कि सभी इसमें शामिल हो और जहां तक रही मेरे भाई राम कुमार जी की तो वो पिताजी की विरासत को आगे बढ़ाए अच्छी बात है, लेकिन जब पिताजी बीमार थे, तो कभी सेवा करने नहीं आए और उनकी आईसीयू की फोटो को वायरल किया, जबकि दुनिया ने उनके कुर्ता पैजामा और टीका लगाए स्वरूप को ही हमेशा देखा था.
वहीं पद्मविभूषण पंडित छानूलाल मिश्र जी के पुत्र राम कुमार मिश्रा कहते है कि उनकी छोटी बहन ने पिताजी का खूब फायदा उठाया और अब आरोप मेरे ऊपर लगा रही है. अभी पिताजी को गए दस दिन भी नहीं हुआ है और ऐसा बयानबाजी करना उन्हें शोभा नहीं देता. पिताजी की इच्छा थी कि उनका त्रिरात्री हो इसलिए मैंने किया और अब बनारस में दसवां और तरही भी मैं बनारस में ही करूंगा. जिस तरह से हमारे सनातन धर्म में होता आया है और फिर मेरी बहने जिसके सामने बैठकर जो फैसला करें मैं भी तैयार हूं.
राम कुमार मिश्रा कहते हैं कि त्रयदशा करने का अधिकार मेरा और मेरे पुत्र का है, जिसने मुखाग्नि पिताजी को दिया है और वो हम ही करेंगे. इसे करने का अधिकार मेरी बहन का नहीं है वो तो पिताजी का लाभ ही लेती रही. पंडित जी की छोटी-बेटी ने ये भी बताया कि उनकी माता और बहन का निधन कोरोनाकाल में हुआ था. कोविड प्रोटोकाल की वजह से उस समय तेरह दिन का अनुष्ठान कराना संभव नहीं हुआ था. पिताजी हमेशा कहते थे कि उनकी पत्नी और बड़ी बहन की त्रिरात्रि हुई है, इसलिए उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली होगी. इसलिए पिताजी के निर्देश पर एक साल के अंदर पिशाचमोचन के लिए पांच दिन का अनुष्ठान कराया गया.
नम्रता कहती हैं कि हमें कुछ पता ही नहीं था कि रामकुमार भैया कब आएंगे और कब पिताजी का कर्म करेंगे या बाहर करेंगे. नम्रता ने कहा कि पिताजी हमेशा कहते थे कि मैंने आखिरी समय में उनकी सेवा की. अंतिम समय में किसी ने उनकी चिंता नहीं की, कोई उन्हें देखने नहीं आया. पिताजी किस अवस्था में अस्पताल में भर्ती थे, भैया केवल एक दिन आए और चले गए. क्या वे 12-13 दिन रुक नहीं सकते थे? पिताजी के आखिरी जीवन में पुत्र का दायित्व निभाना चाहिए था, जिसमें वे असफल रहे. मैं तन, मन और धन से ब्राह्मण भोज कराऊंगी. इनका ये भी कहना है उनकी विरासत सिर्फ उनक बेटा या बेटी आगे बढ़ाए जरूरी नहीं उनके शिष्य भी आगे ले जा सकते है.
पंडित छन्नूलाल मिश्र की चार बेटियां और एक बेटा है, जिनमें से एक बेटी की मौत कोविड के समय में हुई थी. फिलहाल इतने बड़े कलाकार के जाने के बाद ही संपत्ति और आपसी खींचतान की खबरों ने उनके चाहने वालों को आहत जरूर किया है. अब देखना ये है कि ये विवाद आखिर कहां जाकर थमेगा.