- अयोध्या में त्रेता युग जैसा भव्य दीपोत्सव आयोजित किया गया, जबकि काशी में हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनी
- वाराणसी में मुस्लिम और हिन्दू महिलाओं ने मिलकर भगवान राम की आरती उतारी और दीपावली का त्योहार मनाया
- मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि भगवान राम सभी के हैं और उनकी पूजा धर्म से परे आस्था का प्रतीक है
जहां एक ओर अयोध्या में त्रेता युग सरीखे भव्य दीपोत्सव का आयोजन हुआ, वहीं दूसरी ओर काशी (वाराणसी) में आज हिन्दू-मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल देखने को मिली. मुस्लिम और हिन्दू महिलाओं ने एक साथ मिलकर भगवान राम की आरती की और दीपावली का त्योहार मनाया. महिलाओं ने स्पष्ट संदेश दिया कि राम किसी धर्म या मजहब में बंधे नहीं हैं, वे सबके हैं.
राम आरती और हनुमान चालीसा का पाठ
जहां अयोध्या नगरी में त्रेता युग का नजारा साकार हुआ, वहीं वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की नायाब तस्वीर सामने आई. मुस्लिम और हिन्दू महिलाओं ने एक साथ मिलकर न केवल भगवान राम की आरती उतारी, बल्कि सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ भी किया और देश में राम राज्य की स्थापना की कल्पना की.
इस अवसर पर मौजूद मुस्लिम महिलाओं ने विशेष रूप से कहा कि भगवान राम हम सबके हैं, वे हमारे पूर्वज हैं, इसलिए हम उनकी पूजा करते हैं. यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि आस्था और भक्ति को धर्म की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता.
राम किसी एक संप्रदाय के नहीं
मुस्लिम महिला फाउंडेशन के संरक्षक डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने इस आयोजन को बनारस की महान संस्कृति का उदाहरण बताया. उन्होंने कहा कि भगवान राम किसी एक धर्म या संप्रदाय के नहीं हैं, वो सभी के हैं. उन्होंने आगे कहा, "अब हर धर्म का व्यक्ति यही चाहता है कि वह भगवान राम की आरती करे और उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त करे." काशी में इन महिलाओं ने जिस तरह से एकजुट होकर राम की आराधना की, वह वास्तव में बनारस की गंगा जमुनी तहजीब (साझा संस्कृति) का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करता है. यह आयोजन देश भर में भाईचारे और सद्भाव का संदेश देता है.