महाकुंभ के खत्म होने के बाद खाली हुए संगम के घाट
महाकुंभ का मेला अब खत्म हो चुका है. मेले के खत्म होने के बाद अब यहां लगे तमाम तंबू भी उखाड़े जाने लगे हैं. सवा महीने के मेले में दुनिया भर के श्रद्धालु करोड़ों की संख्या में पहुंचे थे. अब मेला नहीं बचा है तो बस उसकी रौनक याद रह गई है. यही त्रिवेणी थी, यहीं तंबुओं की कतार थी, संतों का जमावड़ा था, श्रद्धालुओं का रेला था. लेकिन अब कुछ नहीं बचा हैं. 45 दिन में 66.30 करोड़ लोग आए और लौट गए. लेकिन जीवन का संगम अब अकेला-उदास सा है.
महाकुंभ खत्म, चमक गायब
जिस संगम द्वार पर तिल रखने तक की जगह नहीं थीं आज वहां गाड़ियां दौड़ रहीं है. महाकुंभ के दौरान 45 दिन तक यहां पैदल चलने तक की जगह नहीं थी. जहां देखों वहां श्रद्धालुओं का सैलाब, केसरिया रंग के वस्त्र पहने साधु संत और भीड़ को नियंत्रित करते हुए पुलिसकर्मी नजर आते थे. लेकिन आज वो सब नहीं दिख रहा है. गाड़ियां चल रही हैं, लोग आ रहे हैं लेकिन वो चमक गायब है.
12 बरस बाद लौटेगी रौनक
अब ऐसा लग रहा हैं मानों वे 45 दिन जैसे जादू भरे थे. लोग खिंचे चले आ रहे थे. वे नदी में उतरते थे, नदी उनमें उतरती थी- जैसा सारा संसार इसी त्रिवेणी में समा गया हो. प्रयागराज अपनी सारी शक्ति से सबके स्वागत में लगा रहा. अब वो रौनक फिर 12 बरस बाद लौटेगी.
महाकुंभ के दौरान सबसे अधिक भीड़ संगम पर थी, लेकिन अब वैसी भीड़ नजर नहीं आ रही. प्रयागराज का महत्व है तो लोग आ रहे हैं और स्नान कर रहे हैं, लेकिन वो चमक नहीं है. हालांकि, संगम सन्नाटे में नहीं है. लोग अब भी आ रहे हैं- खुश भी हैं कि अब उन्हें भीड़ का सामना नहीं करना पड़ रहा. तारीख़ों के परे एक कुंभ सबके भीतर बसता है.
'महाकुंभ में भीड़ की वजह से नहीं आये '
नागपुर से संगम स्नान करने आये विनय मिश्रा डुबकी लगाकर खुश हैं. उनका कहना है कि हमारे लिए ये मेला ही है. उस वक्त भीड़ की वजह से नहीं आए थे. 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर हुई घटना से डर भी लगने लगा था. इसलिए कुंभ खत्म होने के बाद आने का प्लान बनाया. हमें अभी बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन भीड़ नहीं हैं. बगल में खडे संतोष पांडेय परिवार संग अहमदाबाद से नहाने आए हैं. उन्होंने तपाक से कहा कि कुंभ के हिसाब से कुछ लोग हैं अभी, लेकिन अनुभव कुंभ जैसा ही हो रहा है. इतने में 70 वर्षीय राजन लाल मिश्रा बोले, " बेटा भीड़ में बड़े-बुजुर्गों के लिए परेशानी थी, इसलिए हम लोग समय का इंतजार कर रहे थे. लेकिन अब भी सब कुछ देख कर बहुत अच्छा लग रहा है. मोदी-योगी ने कुंभ को दिव्य- भव्य बना दिया.
घाटों से भीड़ गायब, पांटून पुल पर इक्का-दुक्का लोग दिखे
वहीं, मेला खत्म होने से कई जगहों पर सन्नाटा है. घाटों से भीड़ गायब है, पांटून पुल पर इक्का-दुक्का लोग नजर आ रहे हैं तो वहीं मेले में सबसे आकर्षण का केंद्र रहा अखाड़ा मार्ग मानों उदास होकर बैठ गया है. जहां कभी साधु संतों के शिविर में भीड़ थी वहां अब सन्नाटा है और धूल दिख रही है. कुछ कैंप बचे हैं तो उनके सामान निकालने के लिए ट्रैक्टर खड़े दिख रहे हैं. सड़क पर लगी दुकान भी अब हटा दी गई हैं. टेंट भी उखड़ने लगे हैं. कुल मिलाकर सवा महीने गुलजार रहने वाला अखाड़ा मार्ग की अब चमक फीकी हो चुकी है.
सबकुछ 12 बरस के लिए खत्म हो गया...
मेला लगा रहा तो लोग भी लगे रहे. सफाई करने वालों को सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती होगी. दुकानदार सामान दिखाते-बेचते थक जाते होंगे. लेकिन अब समय ही समय है, बीते समय की याद है, कहीं मायूसी है तो कहीं खुशी, कहीं तसल्ली तो उदासी है. संगम नोज पर सफाई करने वाले रंगा बंसल कहते हैं, " हम तो 12 मासी यहां यहीं काम करते हैं लेकिन जो रौनक मेले में थी, वो अब गायब हो गई है. मेले में बहुत अच्छा लगता था, इसकी जितनी बड़ाई करें वो कम हैं. लेकिन अब ऐसा लग रहा है मानो सबकुछ 12 बरस के लिए खत्म हो गया. " बगल में खड़े स्वछताकर्मी सागर बंसल ने कहा, "बहुत अच्छा लगा मेला. मुख्यमंत्री ने जो बोनस और मानदेय बढ़ाने का ऐलान किया, उससे बहुत खुशी है."
'अब कोई दूसरा मेला देखेंगे '
तभी पीछे से आवाज आती है, ऐ लाल माइक वाले बाबू. डिब्बा लेते जाओ... जल भरने के काम आएगा. मैंने पीछे देखा तो विमला देवी (68) अपने दुकान पर उदास बैठी नजर आई. "मैंने कहा दादी क्या हो गया तो बोली अब दुकानदारी ढीली हो गई है. मेले के दौरान अच्छी कमाई होती थी. पहले एक दिन में 8 से 10000 की कमाई होती थी. अब दुकानदारी डाउन हो जाएगी. हजार डेढ़ हजार मिल जाए तो बड़ी बात है. भीड़ कम होने से अब अच्छा भी नहीं लग रहा है. रुखा-रुखा सा हो जाएगा."
कुछ ही कदम पर उन्नाव के सलीम चाचा जमीन पर माला की दुकान लगाकर बैठे थे. मैंने पूछा चाचा उदास क्यों हो? तो बोले क्या करूं... मेला था तो 2-3 हजार कमा लेता था, लेकिन अब हजार रुपये भी मिलना मुश्किल है. मेला ऐसा ही होना चाहिए. अब कोई दूसरा मेला देखूंगा. ठीक बगल में यूपी के सीतापुर निवासी मोहम्मद शहंशाह की दुकान थी. शहंशाह जमीन पर चूड़ी बेच रहे थे. माइक देखकर बोले, " दुकान की हालत ठीक नहीं है. पहले दिन 8 से ₹10000 कमाई होती थी. अब ₹3000 तक ही मुश्किल से हो पाता है. "
मेला भले ही 13 जनवरी से शुरू हुआ था, लेकिन पुलिस जवानों की ड्यूटी पहले से ही लगा दी गई थीं. ऐसे में थकान भरी ड्यूटी से आराम मिलने से वह खुश तो है लेकिन मेले की रौनक गायब होने से उनके चेहरे भी उदास हैं . हालांकि उनके चेहरे पर इस बात का सुकून है कि सरकार ने उनके काम को सराहा है.
'सब कुछ उजड़ता देख दुख होता है, मेला फिर लगेगा तो फिर आऊंगा'
आगे बढ़ा तो पंटून पुल नंबर 4 पर दो सिपाही वर्दी में दिखे. आज वो ना गाड़ी रोक रहे थे और ना ही गुस्सा हो रहे थे... बस चुपचाप बैठकर सब देख रहे थे.. मैने पूछा क्या हुआ? क्यों उदास हैं तो माइक और कैमरा देखकर घबरा गए... मैंने कहा भइया डरिये मत.. मैं बस ऐसे ही आया हूं. तो लम्बी सांस लेटे हुए मऊ के गिरीश यादव बोले, " सर पहली बार मेरी ड्यूटी महाकुंभ में लगी थी. मेले की भीड़भाड़ को देखकर बहुत अच्छा लगता था. लेकिन अब बहुत निराशा टाइप फीलिंग आ रही है. अब सारी रौनक खत्म हो गई. उस वक्त थोड़ी परेशानी तो रहती थी लेकिन अच्छा बहुत लगता था. " तभी बगल में खड़े राजस्थान भरतपुर के सुरेंद्र सिंह ने कहा, " 2 महीने का समय हो गया ड्यूटी करते हुए. पहली बार आया हूं, ऐसा मेला कहीं नहीं देखा. आज भीड़ नहीं है तो सुनसान सा लग रहा है. सब कुछ उजड़ता देख दुख होता है. मेला फिर लगेगा तो फिर आऊंगा ड्यूटी करने. " दोनों सिपाहियों ने चलते-चलते सीएम योगी को धन्यवाद दिया और कहा, "मुख्यमंत्री ने हम लोगों के लिए सब कुछ किया. हमें बहुत खुशी मिलती है. "
शहर की सड़कें खाली, जाम मुक्त दिखे चौराहे
हालांकि ये सूनापन सिर्फ संगम क्षेत्र में ही नहीं बल्कि प्रयागराज शहर में भी देखने को मिल रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे पूरा प्रयागराज कुछ ख़ाली हो गया है. लोगों को लग रहा है कि 45 दिन रुकी बारात विदा हो गई, ख़ाली जनवासा बचा है. बैरहना, बालसन और मेडिकल चौराहे पर अब जाम नहीं हैं. तुलारामबाग, लीडर रोड, बक्शी बांध, अल्लापुर की सड़कों पर सुस्ती नजर आ रही हैं तो वहीं यूनिवर्सिटी रोड मानों शांत हो गई है.
अब कौन पूछेगा संगम किधर है, स्टेशन कितना दूर है?
नागपुर से आये अपने मित्र को संगम स्नान कराने आये हाई कोर्ट के अधिवक्ता सुनील मिश्रा आनंद भवन के सामने पान खा रहे थे. हमको देखकर बोले- रिपोर्टर साहब... अब मेला खत्म तो आप क्या कर रहे हैं. मैंने कहा प्रयागराज वासियों का मन टटोल रहा हूं कि अब कुंभ खत्म होने के बाद उन्हें कैसा महसूस हो रहा है. तो वो बोले, "अगर एक शब्द में पूछेंगे तो जैसे घर में कोई शादी का उल्लास हो. लेकिन शादी के उल्लास के बाद जब बारात विदा हो जाती है वैसा लग रहा है. प्रयागराज में बहुत हर्षोल्लास का माहौल था और यहां पर आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियां थीं, उससे हम लोगों को बहुत आनंद आ रहा था. कुछ दिक्कत तो थी, लेकिन उन समस्याओं से जब तुलना करेंगे तो जो सांस्कृतिक अध्यात्म की अनुभूति हुई वो बहुत ऊपर है."
बगल में खड़े चाचा बोले- " अब कौन पूछेगा संगम किधर है. अब किसको बताएंगे नागवसुकी मंदिर कैसे जाना है. प्रयागराज जंक्शन कितना दूर है. सवा महीने ये सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा था. पर अब समय काटे नहीं कटेगा. महकुंभ ने प्रयागराज का नाम पूरे विश्व को बता दिया. " लेकिन जीवन का चक्र यही है. कुंभ आता है, लौट जाता और फिर आता है. धीरे-धीरे लोग अपनी ज़िंदगी में रम जाएंगे, भूल जाएंगे कि डेढ़ महीने कुंभ हुआ था. फिर 12 बरस बाद, कुंभ लौटेगा, रौनक लौटेगी, देवता लौटेंगे, श्रद्धालू लौटेंगे और दुनिया लौटेगी.