महाकुंभ 2025: गंगाघाट पर श्रद्धालुओं का लगने लगा तांता, अभी से ही पहुंचने लगे कल्पवासी

महाकुंभ में पहुंचने वाले कल्पवाशी संगम तट पर अगले एक महीने तक रहेंगे. बताया जा रहा है कि कुछ श्रद्धालु मकर संक्रांति से भी कल्पवास की शुरुआत करेंगे. आपको बता दें कि वेदों में कल्पवास को मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
महाकुंभ के शुरू होने से पहले ही गंगाघाट पर उमड़ा भक्तों का सैलाब
नई दिल्ली:

महाकुंभ 2025 की तैयारियों को आखिरी रूप दिया जा चुका है. 13 जनवरी को शाही स्नान के साथ महाकुंभ की शुरुआत हो रही है. प्रयागराज प्रशासन के अनुसार इस बार के महाकुंभ में करोड़ों  की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने वाले हैं. श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए प्रयागराज के गंगाघाट पर तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं. महाकुंभ के शुरू होने में भले अभी कुछ दिन का समय बच रहा हो लेकिन इस पावन मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ अभी से प्रयागराज पहुंचने लगी है. देश के अलग-अलग हिस्सों से माताएं-बहनें अपने सिर पर फूस की गठरी और अपना सामान लेकर घाट पर पहुंच गई हैं. उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि मानों वो कुंभ के इस मौके पर एक दिन भी मां गंगा के दर्शन और उनके जल से खुदको और पवित्र करने का ये मौका यूं ही नहीं जाने देना चाहती हैं. 

कुंभ पहुंचने लगे हैं कल्पवासी 

महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए लाखों और करोड़ों की संख्या श्रद्धालु रोजाना प्रयागराज के घाट की तरफ बढ़ रहे हैं. प्रयागराज पहुंचने वाले भक्तों में कल्पवासी भक्तों की भी संख्या काफी अधिक है. बताया जाता है कि कुंभ मेले के दौरान कल्पवास का महत्व और बढ़ जाता है. इसका जिक्र वेदों और पुराणों में भी किया गया है. आपको बता दें कि कल्पवास कोई आसान प्रक्रिया नहीं है. 

क्या होता है कल्पवास?

महाकुंभ में पहुंचने वाले कल्पवाशी संगम तट पर अगले एक महीने तक रहेंगे. बताया जा रहा है कि कुछ श्रद्धालु मकर संक्रांति से भी कल्पवास की शुरुआत करेंगे. आपको बता दें कि वेदों में कल्पवास को मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है. संगम तट पर माघ के पूरे महीने रहकर पुण्य फल हासिल करने की इस साधना को कल्पवास कहा जाता है. कहा जाता है कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिलती है.वेदों पुराणों के अनुसार कल्पवास करने की न्यूनतम अवधि एक रात की हो सकती है.वहीं, इसे तीन रात, तीन महीने, छह महीने , छह साल, 12 वर्ष या जीवनभर भी किया जा सकता है. 

Advertisement

आखिर क्या है कल्पवास के नियम 

वेदों में कहा गया है कि 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को 21 नियमों को पालन करना होता है. इसके तहत पहला नियम सत्यवचन, दूसरा अहिंसा, तीसरा इंद्रियों पर नियंत्रण, चौथा सभी प्राणियों पर दयाभाव, पांचवां ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग करना, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, ग्यारहवां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा करना, सोलहवां साधु सन्यासियों की सेवा, सत्तहरवां जप एवं संकीर्तन, अठाहरवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना और इक्कीसवां देव पूजन है. इनमें से सबसे ज्यादा महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना जाता है. 

Advertisement

कल्पवास को कैसे कर सकते हैं शुरू

वेदों-पुराणों में बताया गया है कि कल्पवास का पालन करके अंत:करण और शरीर दोनों का कायाकल्प हो सकता है. कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है. कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है. जब ये समय सीमा पूरी हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं. जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है. पुराणों में कहा गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें. कहा जाता है कि जो लोग एक महीने, इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान ध्यान और कल्पवास करता है उसके लिए स्वर्ग में स्थान पहले से ही सुरक्षित हो जाता है. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
महाकुंभ पर विवादित बयान देने वाले नगीना सांसद Chandrashekhar Azad ने क्या सफाई दी?
Topics mentioned in this article