महाकुंभ 2025 : 1200 साल पुराना है श्री पंचायती आनंद अखाड़ा का इतिहास... यहां नागा साधुओं ने की थी धर्म की रक्षा

शंकारानंद सरस्वती ने प्रयागराज में लगने वाले कुंभ के महत्व पर बताया, "प्रयागराज में मां गंगा है. यहां के कुंभ में करोड़ों करोड़ों लोग भी समाहित होते हैं और यह साक्षात एक वह भूमि है कि यहां पृथ्वी के तैंतीस करोड़ देवी देवता कुंभ दर्शन और स्नान के लिए आ जाते हैं."

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प्रयागराज:

संगम नगरी प्रयागराज में 2025 महाकुंभ की तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रहीं हैं. 13 जनवरी से शुरू होने जा रहे महाकुंभ में महज गिनती के कुछ दिन बचे हैं. हर 12 साल में एक विशेष स्थान पर आयोजित होने वाले महाकुंभ में लाखों-करोड़ों साधु-संत और श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. मान्यता के अनुसार, कुंभ मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस पावन अवसर पर श्री पंचायती आनंद अखाड़ा के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती ने आईएएनएस से विशेष बातचीत की है.

13 प्रमुख अखाड़ों में एक आनंद अखाड़ा भी

महाकुंभ में देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा आकर्षण देश के 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु-संत होंगे, जिनकी वजह से ही महाकुंभ की भव्यता होती है. देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक आनंद अखाड़ा भी है. महाकुंभ के दौरान अखाड़ों का विशेष महत्व होता है. इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है.

पंचायती आनंद अखाड़े का इतिहास सैकड़ों साल पुराना

शंकारानंद सरस्वती के अनुसार श्री पंचायती आनंद अखाड़े का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. अखाड़े की स्थापना लगभग 855 ईस्वी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी. अखाड़े के नागा संन्यासियों का भी गौरवपूर्ण इतिहास रहा है, जहां उन्होंने बाहरी आक्रांताओं के खिलाफ ना सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि अपने युद्ध कौशल से भारतीय धार्मिक सनातन परंपरा का निर्वहन किया और उसकी रक्षा भी की. इसमें इन साधुओं ने अपने प्राण का भी बलिदान दिया.

संन्यासियों को दी जाती है दीक्षा

यह अखाड़ा मानवतावादी दृष्टिकोण पर आधारित हैं जो कण-कण में ईश्वर को देखता है. अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं. अखाड़ा दशनामी संन्यास परंपरा का पूरा पालन करता है. यहां संन्यास देने की प्रक्रिया भी कठिन होती है. ब्रह्मचारी बनाकर आश्रम में तीन से चार वर्ष रखा जाता है. उसमें खरा उतरने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा दी जाती है. जहां कुंभ-महाकुंभ लगता है, साथ ही पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती है. शंकारानंद सरस्वती ने बताया कि इस प्रकार वह साधक अपने परिवार से, अपने रिश्तेदारों से और सबसे अपने संबंध विच्छेद कर देता है. इस प्रकार शास्त्र के हिसाब से उसका कोई संबंध शेष नहीं रहता.

इसके साथ ही यह अखाड़ा सामाजिक क्रियाकलापों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है. साथ ही समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को वहन करने में सबसे आगे रहता है. आनंद अखाड़ा को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है. यह अखाड़ा कुंभ आदि पर्वों पर निरंजनी अखाड़े के साथ अपनी पेशवाई निकालता है और शाही स्नान में शामिल होता है.

'प्रयागराज में मां गंगा है'
शंकारानंद सरस्वती ने प्रयागराज में लगने वाले कुंभ के महत्व पर बताया, "प्रयागराज में मां गंगा है. यहां के कुंभ में करोड़ों करोड़ों लोग भी समाहित होते हैं और यह साक्षात एक वह भूमि है कि यहां पृथ्वी के तैंतीस करोड़ देवी देवता कुंभ दर्शन और स्नान के लिए आ जाते हैं."

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कुंभ में स्नान का विशेष महत्व है. शंकारानंद सरस्वती ने बताया कि कुंभ में स्नान करने से करोड़ों जन्मों के पापों की मुक्ति मिलती है. हमारे धर्म की एक आस्था है कि गंगा का नाम लेने से ही और गंगा दर्शन से ही मुक्ति मिल जाती है. 

उन्होंने सरकार की व्यवस्थाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा, "हमेशा ही मनुष्य का एक स्वभाव होता है कि जितना भी मिले वो कम ही लगता है. मगर फिर भी यह हमारे यहां प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने अखाड़ों और संतों को अपनी सरकार की तरफ बहुत पर्याप्त सुविधाएं और साधन उपलब्ध कराए हैं."

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वर्तमान में आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज अध्यक्ष हैं.श्री महंत शंकारानंद सरस्वती है. इस अखाड़े का प्रमुख पद आचार्य का होता है. आचार्य ही इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों को देखते हैं. ये परंपरा कई वर्षों से इस चली आ रही है. 

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(अगर आपको सहारे की ज़रूरत है या आप किसी ऐसे शख्‍स को जानते हैं, जिसे मदद की दरकार है, तो कृपया अपने नज़दीकी मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ के पास जाएं)

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