आज के दौर में अपराध करने के लिए इसकी जबरस्त डिमांड है
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- हत्या में .315 बोर के कारतूस का इस्तेमाल हुआ है
- ये कारतूस अपराधियों को 150-200 रुपये में आसानी से मिल जाता है
- .315 बोर का कारतूस बहुत जबरदस्त मारक क्षमता रखता है
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कासगंज:
यूपी के कासगंज में चंदन नाम के लड़के की हत्या में कौन सा हथियार का इस्तेमाल हुआ ये अभी साफ नहीं है, लेकिन हत्या में .315 बोर के कारतूस का इस्तेमाल हुआ है. गन शॉप में करीब 100 रुपये में मिलने वाला ये कारतूस अपराधियों को 150-200 रुपये में आसानी से मिल जाता है. इसलिए आज के दौर में अपराध करने के लिए इसकी जबरस्त डिमांड है. इस हथियार के बारे में हथियार एकस्पर्ट संजीव देशवाल ने कहा, “.315 बोर का कारतूस बहुत जबरदस्त मारक क्षमता रखता है और ज्यादातर बड़ी राइफल में प्रयोग होता है, जिसका लाइसेंस लोगों को मिलता है. लेकिन अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति ऐसे हथियारों को कैरी नहीं कर सकते हैं, इसलिए उनकी कोशिश होती है कि वो इस कारतूस को छोटे से छोटे कट्टे के अंदर यूज़ करें. कट्टा एक देशी हथियार होता है जो कि वेस्ट यूपी में बड़े आराम से मिल जाता है.”
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आज के दौर में किसी भी सरकारी हथियार में .315 बोर के कारतूस का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि इसकी सप्लाई निजी लाइसेंसी हथियारों के लिए है. ये कारतूस 8 मिलीमीटर चौड़े और 50 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इनका वजन करीब 40 ग्राम होता है. इसका प्रयोग लाइसेंसी राइफल में होता है, जिसकी 300 मारक क्षमता करीब 300 मीटर तक होती है या फिर इसका इस्तेमाल अवैध देशी कट्टों में सबसे ज्यादा होता है, ऐसे कट्टों की मारक क्षमता 30 मीटर से ज्यादा नहीं होती है.
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.315 बोर का कारतूस अगर राइफल से चलाया गया है, तो गोली घूमती हुई जाती है और आगे छोटा घाव जबकि पीछे बाद घाव करती है. वहीं, इस कारतूस का इस्तेमाल अगर देसी कट्टे से किया गया हो तो गोली सीधी जाती है और हल्का घाव होता है. देशी कट्टे की मारक क्षमता कम होने की वजह से गोली चलाते वक्त अपराधी इस बात का ध्यान रखते हैं वो अपने टारगेट के नज़दीक हों और गोली गर्दन से धड़ के बीच ही लगे. कट्टे से चलाया गया ये कारतूस कई बार शरीर में फंस भी जाता है. जानकारों की मानें तो अधिकतर अपराध ऐसे ही कारतूसों और अवैध हथियारों से हो रहे हैं.
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इस संबंध में एशियन सिक्योरिटी एजेंसी के चेयरमैन एनपी सिंह ने कहा कि लाइसेंसी हथियार क्राइम में न के बराबर प्रयोग होते हैं. अधिकतर अपराध अवैध हथियारों और ऐसे ही कारतूसों से होता है.
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लाइसेंसी हथियारों जैसे सिंगल और डबल बैरल में .12 बोर का कारतूस, पिस्टल और रिवॉल्वर में ज्यादातर .32 बोर के कारतूसों का इस्तेमाल होता है. लेकिन लाइसेंसी राइफल में इस्तेमाल होने वाला .315 बोर का कारतूस गन शॉप से खरीदकर लोग बाहर थोड़ा महंगे दाम पर बेच देते हैं.
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आज के दौर में किसी भी सरकारी हथियार में .315 बोर के कारतूस का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि इसकी सप्लाई निजी लाइसेंसी हथियारों के लिए है. ये कारतूस 8 मिलीमीटर चौड़े और 50 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इनका वजन करीब 40 ग्राम होता है. इसका प्रयोग लाइसेंसी राइफल में होता है, जिसकी 300 मारक क्षमता करीब 300 मीटर तक होती है या फिर इसका इस्तेमाल अवैध देशी कट्टों में सबसे ज्यादा होता है, ऐसे कट्टों की मारक क्षमता 30 मीटर से ज्यादा नहीं होती है.
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.315 बोर का कारतूस अगर राइफल से चलाया गया है, तो गोली घूमती हुई जाती है और आगे छोटा घाव जबकि पीछे बाद घाव करती है. वहीं, इस कारतूस का इस्तेमाल अगर देसी कट्टे से किया गया हो तो गोली सीधी जाती है और हल्का घाव होता है. देशी कट्टे की मारक क्षमता कम होने की वजह से गोली चलाते वक्त अपराधी इस बात का ध्यान रखते हैं वो अपने टारगेट के नज़दीक हों और गोली गर्दन से धड़ के बीच ही लगे. कट्टे से चलाया गया ये कारतूस कई बार शरीर में फंस भी जाता है. जानकारों की मानें तो अधिकतर अपराध ऐसे ही कारतूसों और अवैध हथियारों से हो रहे हैं.
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इस संबंध में एशियन सिक्योरिटी एजेंसी के चेयरमैन एनपी सिंह ने कहा कि लाइसेंसी हथियार क्राइम में न के बराबर प्रयोग होते हैं. अधिकतर अपराध अवैध हथियारों और ऐसे ही कारतूसों से होता है.
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