कौशांबी की इस राम लीला में 250 साल से कायम है हिंदू-मुस्लिम भाईचारा, मुसलमान ऐसे करते हैं भगवान राम का स्वागत

उत्तर प्रदेश के कौशांबी के दारानगर में एक रामलीला पिछले 245 सालों से होती चली आ रही है. इसमें हिंदू मुस्लिम भाइचारा देखने को मिलता है. यहां भगवान राम का रथ जब मुस्लिमों के मुहल्ले में पहुंचता है, वो उसका स्वागत परंपरागत रूप से करते हैं.

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कौशांबी:

आज ऐसे समय में जब धार्मिक और सामाजिक नफरत आम बात हो गई है, ऐसे समय में उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के एक कस्बे के हिंदू-मुसलमान सांप्रदायिक एकता की मिसाल कायम किए हुए हैं. यहां के मुसलमान भी भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम ही समझते हैं. वो अपने इलाके में उनका अपने हाथों से स्वागत करते हैं. इसी तरह मुहर्रम के दौरान हिंदू समाज मुसलमानों के साथ खड़ा नजर आता है. इस ऐतिहासिक परंपरा का 246वां साल है. 

कौशांबी में कहां होती है रामलीला

हम बात कर रहे हैं कौशांबी जिले के दारानगर की. वहां पर हिंदू मुस्लिम एकता पिछले ढाई सौ साल से मिसाल के रूप में कायम दिखती है. दारानगर में नवरात्रि के दौरान राम लीला का सजीव मंचन किया जाता है. इसमें पात्र रामायण की कथाओं पर आधारित लीला का मंचन करते हैं. यह राम लीला यहां दो सौ साल से अधिक समय से हो रही है. यह परंपरा अभी भी अपना रूप कायम रखे हुए है. इस राम लीला के अंतिम दो दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान यहां राम लीला में होने वाला युद्ध दो सेनाओं के बीच होता है. इस दौरा सीता हरण की लीला मुस्लिम मुहल्ले के पीछे होती है. वहीं दारानगर के सैयद वाडा से होकर भगवान राम का रथ गुजरता है. इसके साथ राम-सीता और लक्ष्मण के साथ कथा वाचक मंडली और दारानगर के प्रतिष्ठित हिंदू समाज के लोग रहते हैं.

कौशांबी के दारानगर की रामलीला में भगवान राम के रथ का स्वागत करता एक मुस्लिम व्यक्ति.

मुसलमान ऐसे करते हैं भगवान राम का स्वागत

सैयद वाडा मोहल्ले के द्वार पर पहुंचते ही भगवान का रथ रुक जाता है. यह रथ तब तक आगे नहीं बढ़ता जब तक यहां परंपरागत रूप से स्वागत नहीं होता. मुस्लिम समाज के लोग भगवान को मिश्री लौंग इलायची देकर उनका स्वागत करते हैं. इसके पश्चात फल और पानी देकर उनका स्वागत किया जाता है. इसी बीच कथावाचकों को जलपान कराया जाता है. पंडितों का समूह सैयद वाडा मोहल्ले के द्वार पर रामायण की चौपाइयां गाता है. इस दौरान मुस्लिम समाज के लोग उनके साथ खड़े रहते हैं. ऐसा नजारा आजकल कम ही देखने को मिलता है, जहां हिंदुओं और मुसलमानों की एकता अभी भी मौजूद है. इसी कस्बे में मोहर्रम के दौरान हिंदू समाज के लोग मुस्लिम जुलूस में लगातार साथ रहते हैं. यहां की एकता को देखकर बाहर का कोई व्यक्ति यह नहीं बता सकता है कि कौन मुस्लिम है और कौन हिंदू.

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