मायावती लखनऊ पहुंच चुकी हैं. उनका एजेंडा इस बार यूपी चुनाव से पहले बीएसपी (BSP Chief Mayawati) के संगठन को मजबूत करना है. कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. जो बचे हैं वे आपस में ही एक दूसरे का काम बिगाड़ने में जुटे हैं. बीएसपी चीफ के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सामाजिक समीकरण को सहेजने की है. पार्टी का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है. मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण और अति पिछड़ों के दम पर मायावती चार बार यूपी की सीएम बनीं. पर अब तो जाटव वोट बचाने के लाले पड़े हैं. ऐसे में मायावती ने होमवर्क शुरू कर दिया है.
मुस्लिम समाज में फिर पैठ बनाने की कोशिश
लखनऊ पहुंचने के बाद से ही मायावती लगातार बीएसपी नेताओं से मुलाकात कर रही है. खास तौर से मुस्लिम बिरादरी के नेताओं से. उनकी कोशिश मुस्लिम समाज में फिर से पैठ बनाने की है. दलित के साथ मुसलमानों का वोट जुड़ा तो फिर बीएसपी की ताक़त बढ़ सकती है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव लगातार बीएसपी पर बीजेपी की बी टीम होने के आरोप लगाते रहे हैं.
BSP का वोट शेयर सिर्फ 9.3 प्रतिशत रह गया
पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला तो उन्हें चुनाव प्रचार से हटा लिया गया. विपक्ष ने माहौल बनाया कि मायावती की बीजेपी से अंदर ही अंदर सांठ गांठ है. इसका नतीजा ये हुआ कि बीएसपी के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए. मुस्लिम उम्मीदवारों को उनके ही समाज के लोगों ने वोट नहीं दिया. बीएसपी का वोट शेयर घट कर 9.3 प्रतिशत रह गया, ये मायावती के लिए खतरे की घंटी है.
मुस्लिम धर्म गुरुओं और मौलानाओं से मिल रहीं
इसीलिए मायावती अब मुसलमानों को साधने में जुटी हैं. बीएसपी के बड़े मुस्लिम चेहरे अफजाल अंसारी, नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी, फजलुर रहमान, इमरान मसूद पार्टी छोड़ चुके हैं. मायावती के पास मुनकाद अली और नौशाद जैसे भरोसेमंद नेता बचे हैं. मायावती इन दिनों गोपनीय रूप से मुस्लिम धर्म गुरुओं और मौलानाओं से मुलाक़ात कर रही हैं. इनके ज़रिए वे अपनी बात मुस्लिम समाज तक पहुंचाना चाहती है. लेकिन इससे कितना फ़ायदा होगा, ये कहना मुश्किल है.