रिटायरमेंट के बाद NPS या UPS? किसके लिए कौन सी पेंशन स्कीम है बेहतर, CA ने बताया पूरा सच

ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों के सामने ये बड़ा सवाल खड़ा होता है कि उन्हें NPS (नेशनल पेंशन सिस्टम) चुनना चाहिए या फिर UPS (यूनिवर्सल पेंशन स्कीम) पर भरोसा करना चाहिए. 

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NPS vs UPS: केवल स्कीम का नाम चुनना काफी नहीं है, आपको यह भी देखना होगा कि रिटायरमेंट तक इतना बड़ा कॉर्पस बन भी पाएगा या नहीं.
नई दिल्ली:

रिटायरमेंट ऐसा मोड़ होता है, जब जिंदगी भर की मेहनत के बाद इंसान चाहता है कि अब सुकून से और बिना पैसों की टेंशन के दिन कटें. लेकिन असली चिंता यही होती है कि हर महीने खर्च कहां से पूरे होंगे और पैसों का फ्लो कैसे बना रहेगा. इसी वजह से पेंशन स्कीम का चुनाव बेहद अहम हो जाता है. ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों के सामने ये बड़ा सवाल खड़ा होता है कि उन्हें NPS (नेशनल पेंशन सिस्टम) चुनना चाहिए या फिर UPS (यूनिवर्सल पेंशन स्कीम/पारंपरिक पेंशन) पर भरोसा करना चाहिए. 

इन दोनों स्कीम्स के फायदे और शर्तें अलग हैं और हर किसी की जरूरत और सैलरी स्ट्रक्चर के हिसाब से सही विकल्प भी बदल जाता है. यानी, इस सवाल का जवाब सभी लोगों के लिए समान नहीं हो सकता. , बल्कि समझदारी से तुलना करके ही फैसला करना सही होगा.

हाल ही में चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) नितिन कौशिक ने इस बारे में ट्वीट कर कई जरूरी बातें बताई. उन्होंने कहा कि असली फर्क इस बात से पड़ता है कि 60 की उम्र के बाद आपकी जरूरतें कितनी होगी और उन्हें पूरा करने के लिए आपने कितना इंतजाम किया है.

NPS और  UPS में क्या अंतर है?

नए सिस्टम UPS में यह प्रावधान है कि अगर किसी ने कम से कम 10 साल नौकरी की है, तो उसे गारंटीड पेंशन मिलेगी. मतलब हर महीने एक तय रकम हाथ में आएगी. दूसरी तरफ NPS मार्केट से जुड़ा हुआ है. इसमें रिटर्न तय नहीं है. रिटायरमेंट के वक्त आपको जो पैसा मिलेगा, उसका लगभग 40 फीसदी हिस्सा एन्यूइटी में लगाना जरूरी है. एन्यूइटी का मतलब होता है कि आपकी जमा रकम से हर महीने तय किस्तों में पैसा मिलता है. एन्यूइटी आमतौर पर 6 से 8 फीसदी सालाना रिटर्न देती है. यानी यहां आपकी पेंशन सीधे तौर पर मार्केट की चाल और ब्याज दरों पर निर्भर करेगी.

आपकी जमा पूंजी कितनी है?

अब असली सवाल ये है कि आखिर 60 के बाद आपको कितने पैसे की जरूरत होगी. मान लीजिए आपके मासिक खर्च 50 हजार रुपए होंगे, तो सालाना करीब 6 लाख की जरूरत पड़ेगी. महंगाई बढ़ेगी तो खर्च भी बढ़ेंगे. इसका मतलब है कि केवल स्कीम का नाम चुनना काफी नहीं है, आपको यह भी देखना होगा कि रिटायरमेंट तक इतना बड़ा कॉर्पस बन भी पाएगा या नहीं. कॉर्पस यानी वह पूरी पूंजी जो आपने जमा की है और जिससे आपकी आगे की जिंदगी चलेगी.

युवाओं के लिए NPS और 50 पार के लिए UPS बेहतर

युवा लोग जो अभी 20 से 40 साल की उम्र में हैं और मार्केट के उतार-चढ़ाव को झेल सकते हैं, उनके लिए NPS एक अच्छा विकल्प हो सकता है. लंबे समय तक पैसा निवेशित रहने से उन्हें ग्रोथ का फायदा मिलेगा. लेकिन जो लोग 50 की उम्र के आसपास हैं और रिस्क से बचना चाहते हैं, उनके लिए UPS ज्यादा आरामदायक है. इसमें हर महीने तय पेंशन मिलती है और भविष्य की चिंता कम हो जाती है.

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आखिरकार फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि आपने कौन सी स्कीम चुनी. फर्क इस बात से पड़ता है कि आपकी जरूरतें क्या हैं, आपकी लाइफस्टाइल कैसी है और आप कितना रिस्क उठाना चाहते हैं. समझदारी यही है कि अपनी हालत को देखकर ही चुनाव करें. तभी रिटायरमेंट की जिंदगी सुकून और स्थिरता के साथ गुजरेगी.

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