हर नौकरीपेशा अमूमन सैलरी पर ही अपनी छोटी-छोटी खुशियां पूरी करता है. उसकी कई छोटी खुशियां भी लोन पर घर आती हैं. इन खुशियों में कभी वह अपने घर के लिए बड़ा इलेक्ट्रिक सामान खरीदता है तो कभी घर के लिए गाड़ी. इन सब में वह कभी क्रेडिट कार्ड का प्रयोग कर लेता है. घर में हर सामान एक खुशी लेकर आता है. इस तरक्की का गवाह पूरा परिवार बनता है और महसूस करता है. लेकिन सबसे बड़ी जरूरत घर की होती है. मेट्रो सिटीज में जो लोग नौकरी करने के लिए आते हैं वे किराए के मकान में पूरी जिंदगी बिता देते हैं. कुछ में लोग फ्लैट लेकर जो आनंद महसूस करते हैं उसे बयान नहीं किया जा सकता है.
उदाहरण के लिए कहा जा सकता है कि दिल्ली-एनसीआर के आसपास जितनी भी सोसाइटियां बनी हैं उनके ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों ने फ्लैट खरीदकर अपना घर होने का सपना पूरा किया है. बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने कैश देकर घर खरीदा होगा. ज्यादातर लोगों ने लोन लेकर अपने घर या फ्लैट के ख्वाब को सच किया होगा. यह बात केवल दिल्ली और आस पास के लिए नहीं बल्कि देश के सभी मेट्रो और बड़े शहरों पर लागू होती है.
केवल जानकार ही बच पाते हैं
लेकिन हम आज बात लोगों के घर का सपना साकार होने की नहीं कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं कि जब लोग सपना साकार करने के करीब होते हैं तो वे भावुक होते हैं. उन्हें इसकी इतनी उत्सुक्ता होती है कि कई बार वे लोन देने वाली संस्थाओं के कुचक्र में फंस जाते हैं. केवल चंद जानकार लोग ही होते हैं जो बैंकों के या वित्तीय संस्थाओं के इस कुचक्र से खुद को बचा पाते हैं. आज हम इस कुचक्र की बात ही करने जा रहे हैं और आपको समझाने का प्रयास करेंगे कि आपको क्या करना चाहिए. आप कैसे इस प्रकार के झांसे में फंसे और लंबे समय तक अपनी जेब पर बेवजह का बोझ न लाद लें.
बैंक का मकसद पैसा कमाना
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का केवल एक मकसद होता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पैसा ग्राहक से कमाया जाए. वे आपके हित के लिए कम और अपने हित के लिए ज्यादा काम करते हैं. आपका हित केवल इतना है कि आप कैसे जानकारी के साथ अपने कदम बढ़ाएं.
बैंक बेच देते हैं इंश्योरेंस पॉलिसी
बैंक आपको लोन देता है. यह ठीक है. बैंक आपको लोन के साथ अब एक इंश्योरेंस पॉलिसी भी बेच देता है. यह थोड़ा विचारणीय है. बैंक आपको लोन देता है उस पर ब्याज लेता है. बैंक आपको टर्म इंश्योरेंस देता है ताकि वह अपने लोन की सुरक्षा ले सके. यह अलग बात है कि बैंक लोन की सुरक्षा के लिए एक गारंटर भी लेता है. कोर्ट के आदेशानुसार भी यह साफ है कि लोन लेने वाले के साथ उसका गारंटर भी लोन चुकाने के लिए जवाबदेह है.
यहां हो जाती है चूक
इन सब बातों भी बैंक अपनी एक और सुरक्षा तैयार करता है. वह टर्म इंश्योरेंस के साथ अपने पैसे की डबल सुरक्षा की गारंटी कर लेता है. चलिए बात यहां तक तो ठीक है. लेकिन बैंक यहां पर आपको सही और उचित जानकारी नहीं देता है. या लोन लेने वाले लोग अपनी भावुकता और उत्सुक्ता के चलते अमूमन इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते.
बैंक की चालाकी
बैंक यहां पर चालाकी से आपके लोन के अमाउंट में इंश्योरेंस के अमाउंट में जोड़ देता है और आपको यह भी समझा देता है कि इस पॉलिसी के लिए आपको कुछ नहीं करना है. हम लोन के प्रीमियम में मात्र कुछ 100 रुपये जोड़ देंगे जो लोन की ईएमआई के साथ ही धीरे-धीरे चुकता हो जाएगा. और होता भी यही है कि हम सभी इसे झट से स्वीकार लेते हैं. क्योंकि हम सभी को दिखता है कि मात्र चंद सौ रुपये के साथ ही हमारी पॉलिसी का प्रीमियम चुकता हो जाएगा. हमें इसकी अलग से कोई चिंता नहीं करनी होगी. न ही अलग से कोई प्रयास करना होगा.
ऐसे हो जाता है खेल
लेकिन सारा खेल यहीं हो जाता है. जिसे आज हम समझाने जा रहे हैं. मान लीजिए कि आपने बैंक से 20 लाख का लोन लिया है. इसके साथ ही आपको बैंक इंश्योरेंस पॉलिसी देता है ताकि वह अपने लोन की सुरक्षा कर सके. जिस सिंगल प्रीमियम पॉलिसी की कीमत केवल 25 से 30 हजार रुपये की होती है. बैंक इस प्रकार की पॉलिसी के लिए आपकी ईएमआई में 200-300 रुपये तक प्रतिमाह जोड़ देता है. बैंक करता यह है कि इस प्रीमियम की राशि आपके प्रिंसिपल अमाउंट में जोड़कर आपको लोन कर देता है. इसके चलते यदि यह लोन भी 20 साल का हो जाता है. यानी आप 300 प्रतिमाह के हिसाब से 3600 रुपये साल के दे रहें जो 10 साल में 36 हजार हो जाती है. और 20 साल में 72 हजार. गौर करने की बात तो यह होती है कि यह भी होम लोन की तरह ही कटता है. यहां पर भी बैंक पहले ब्याज लेता है फिर मूलधन को कम करता है.
क्या कहते हैं जानकार
वित्तीय मामलों के जानकार ओपटिमा मनी के पंकज मथपाल ने बताया कि बैंक अकसर होम लोन के ब्याज से ज्यादा ब्याज इस प्रकार की पॉलिसी के प्रीमियम के लिए चार्ज करते हैं. अमूमन यह एक प्रतिशत ज्यादा होता है. वे कहते हैं कि अगर मान भी लें कि बैंक ज्यादा प्रीमियम नहीं चार्ज करते हैं तब भी यह घाटे का ही सौदा है.
मथपाल बताते हैं कि बैंक के लिए आपकी लाइबिलिटी उनका एसेट है. आप जब तक भी ईएमआई भरते रहेंगे यह चार्ज लगता रहेगा. अच्छा होगा कि बैंक इंश्योरेंस के प्रीमियम को अलग कर दें लेकिन ऐसा नहीं होता है. बैंक यहां पर ग्राहकों को सही गाइड नहीं करते हैं.
मथपाल कहते हैं कि इंश्योरेंस लेना समझदारी की बात है. अगर रेगुलर प्रीमियम पॉलिसी लेंगे तो बेहतर होगा. सिंगल प्रीमियम से अच्छा रहता है. वहीं यह जरूरी नहीं आप बैंक के माध्यम से ही पॉलिसी खरीदिए क्योंकि आप बाजार में अन्य जगह से पता करके सस्ती प्रीमियम वाली पॉलिसी ले सकते हैं.
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