रोहन बोपन्ना ने गैब्रिएला डाब्रोवस्की के साथ फ्रेंच ओपन का मिश्रित युगल खिताब जीता है (फाइल फोटो)
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- टेनिस में आखिरी बार सोमदेव देववर्मन को मिला था यह अवार्ड
- रोहन बोपन्ना की दावेदारी इस बार मानी जा रही है मजबूत
- कनाडा की गैब्रिएला के साथ जीता है फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स खिताब
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नई दिल्ली:
टेनिस में आख़िरी बार अर्जुन पुरस्कार 2011 में सोमदेव देववर्मन को मिला था. रोहन बोपन्ना जैसे खिलाड़ी का नाम कई बार चयन समिति से आगे ही नहीं बढ़ पाया, लेकिन इस बार फ़्रेंच ओपन में मिक्स्ड डबल्स चैंपियन बनने के बाद रोहन बोपन्ना के लिए कामयाबी और शोहरत के दरवाज़े खुलते दिख रहे हैं. पिछले हफ़्ते कनाडा की गैब्रिएला डाब्रोवोस्की के साथ फ़्रेंच ओपन चैंपियन बने बोपन्ना लगातार सुर्ख़ियों में हैं. बोपन्ना ने आज खेल मंत्री से विजय गोयल से मुलाक़ात की तो ये सवाल उठने लाज़िमी थे कि बोपन्ना अब तक अर्जुन पुरस्कार की रेस में कैसे पिछड़ गए?
खेल मंत्री विजय गोयल ने कहा, "हमारा काम है कि हम हुनरमंद प्रतिभाशाली खिलाड़ी को उनका हक़ दिलाएं जिसके वे हक़दार हैं. बोपन्ना का नाम (अर्जुन पुरस्कार) कमेटी के सामने जाएगा जो तय नियमों के आधार पर खिलाड़ी का नाम चयन करेगी." बोपन्ना ने भी कहा, "कुछ महीनों में ही पता चल जायेगा कि मुझे खेल पुरस्कार मिलेगा या नहीं. अगर मिलेगा तो मेरे लिए फ़ख़्र की बात होगी." गौरतलब है कि 1961 लेकर अब तक सिर्फ़ 15 टेनिस खिलाड़ी ही अर्जुन पुरस्कार हासिल कर सके हैं. रामनाथन कृष्णन (1961), विजय अमृतराज (1974), लिएंडर पेस (1990), महेश भूपति (1995), सानिया मिर्ज़ा (2004) और सोमदेव देववर्मन (2011) जैसे कुछ अहम नामों के बीच बोपन्ना जैसे कई खिलाड़ी इस लिस्ट में शामिल नहीं हो सके. यही नहीं टेनिस से अबतक सिर्फ़ दो खिलाड़ियों- लिएंडर पेस (1996-97) और सानिया मिर्ज़ा (2015) को ही खेल रत्न पुरस्कार मिल चुका है. इसे लेकर विवाद भी होते रहे हैं.
बोपन्ना ने ATP के 16 ख़िताब अपने नाम किए हैं. लेकिन 2003 में प्रो बने रोहन हमेशा लिएंडर पेस, महेश भूपति या सानिया मिर्ज़ा की शोहरत के साये में ही नज़र आए. इस बार फिर टेनिस फ़ेडरेशन की ओर से उनका नाम अर्जुन पुरस्कार के लिए भेजा गया है. कर्नाटक में कुर्ग के रहने वाले 37 साल के रोहन बोपन्ना को अपना पहला ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने में क़रीब दस साल लग गए. वर्ष 2008 में फ़्रेंच ओपन के पहले राउंड से 2017 में चैंपियन बनने तक का सफ़र बोपन्ना के लिए आसान नहीं रहा. क्ले कोर्ट, इस साल ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने वाले इकलौते भारतीय खिलाड़ी बोपन्ना का पसंदीदा सर्फ़ेस नहीं है. लेकिन उनकी लगातार की गई मेहनत आख़िरकार रंग लाई और अपने करियर की दूसरी पारी में बोपन्ना ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतकर एलीट ग्रुप में शामिल होने में कामयाब रहे.
बोपन्ना कहते हैं, "इस बार क्ले कोर्ट पर मैं अच्छी तैयारी के साथ गया. मोंटेकार्लो में पाब्लो कुएवॉस के साथ ख़िताब जीतने से मुझमें काफ़ी आत्मविश्वास आया. हमने मेन्स डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में अच्छी शुरुआत की. कई टूर्नामेंट साथ खेलने से हमारी टीम अच्छी बन गई जिसकी वजह से डैब्रोवोस्की के साथ ख़िताब जीत पाया." बोपन्ना का कहना है कि उम्र का असर उन्होंने अपने खेल पर नहीं पड़ने दिया है और वो आगे और भी ग्रैंड स्लैम ख़िताब की उम्मीद करने लगे हैं.
खेल मंत्री विजय गोयल ने कहा, "हमारा काम है कि हम हुनरमंद प्रतिभाशाली खिलाड़ी को उनका हक़ दिलाएं जिसके वे हक़दार हैं. बोपन्ना का नाम (अर्जुन पुरस्कार) कमेटी के सामने जाएगा जो तय नियमों के आधार पर खिलाड़ी का नाम चयन करेगी." बोपन्ना ने भी कहा, "कुछ महीनों में ही पता चल जायेगा कि मुझे खेल पुरस्कार मिलेगा या नहीं. अगर मिलेगा तो मेरे लिए फ़ख़्र की बात होगी." गौरतलब है कि 1961 लेकर अब तक सिर्फ़ 15 टेनिस खिलाड़ी ही अर्जुन पुरस्कार हासिल कर सके हैं. रामनाथन कृष्णन (1961), विजय अमृतराज (1974), लिएंडर पेस (1990), महेश भूपति (1995), सानिया मिर्ज़ा (2004) और सोमदेव देववर्मन (2011) जैसे कुछ अहम नामों के बीच बोपन्ना जैसे कई खिलाड़ी इस लिस्ट में शामिल नहीं हो सके. यही नहीं टेनिस से अबतक सिर्फ़ दो खिलाड़ियों- लिएंडर पेस (1996-97) और सानिया मिर्ज़ा (2015) को ही खेल रत्न पुरस्कार मिल चुका है. इसे लेकर विवाद भी होते रहे हैं.
बोपन्ना ने ATP के 16 ख़िताब अपने नाम किए हैं. लेकिन 2003 में प्रो बने रोहन हमेशा लिएंडर पेस, महेश भूपति या सानिया मिर्ज़ा की शोहरत के साये में ही नज़र आए. इस बार फिर टेनिस फ़ेडरेशन की ओर से उनका नाम अर्जुन पुरस्कार के लिए भेजा गया है. कर्नाटक में कुर्ग के रहने वाले 37 साल के रोहन बोपन्ना को अपना पहला ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने में क़रीब दस साल लग गए. वर्ष 2008 में फ़्रेंच ओपन के पहले राउंड से 2017 में चैंपियन बनने तक का सफ़र बोपन्ना के लिए आसान नहीं रहा. क्ले कोर्ट, इस साल ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने वाले इकलौते भारतीय खिलाड़ी बोपन्ना का पसंदीदा सर्फ़ेस नहीं है. लेकिन उनकी लगातार की गई मेहनत आख़िरकार रंग लाई और अपने करियर की दूसरी पारी में बोपन्ना ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतकर एलीट ग्रुप में शामिल होने में कामयाब रहे.
बोपन्ना कहते हैं, "इस बार क्ले कोर्ट पर मैं अच्छी तैयारी के साथ गया. मोंटेकार्लो में पाब्लो कुएवॉस के साथ ख़िताब जीतने से मुझमें काफ़ी आत्मविश्वास आया. हमने मेन्स डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में अच्छी शुरुआत की. कई टूर्नामेंट साथ खेलने से हमारी टीम अच्छी बन गई जिसकी वजह से डैब्रोवोस्की के साथ ख़िताब जीत पाया." बोपन्ना का कहना है कि उम्र का असर उन्होंने अपने खेल पर नहीं पड़ने दिया है और वो आगे और भी ग्रैंड स्लैम ख़िताब की उम्मीद करने लगे हैं.
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