ओलिंपिक यादें: इन दो 'सिंह' ने खुद को साबित किया था 'किंग', दुनिया को दिखाई थी भारत की ताकत

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ओलिंपिक में पदक गंवाने के उस लम्‍हे को याद कर मिल्‍खा अब भी भावुक हो जाते हैं।
फटाफट पढ़ें
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  • 1960 के रोम ओलिंपिक में बारीक अंतर से कांस्‍य चूके थे मिल्‍खा
  • आखिरी क्षणों में की गई गलती मिल्‍खा सिंह को पड़ी थी भारी
  • टोक्‍यो ओलिंपिक में 110 मीटर हर्डल्‍स में पांचवें स्‍थान पर रहे थे गुरबचन
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हॉकी को छोड़ दें, तो शुरुआत में भारत को ओलिंपिक खेलों में गंभीरता से नहीं लिया जाता था। यह वह दौर था जब इंडिविजुअल इवेंट्स में भारत की मौजूदगी नाममात्र की ही हुआ करती थी। 1952 के हेलसिंकी ओलिंपिक में केडी जाधव ने कुश्‍ती की फ्री-स्‍टाइल स्‍पर्धा का कांस्‍य पदक जीतकर भारतीय खेलप्रेमियों को खुश होने का मौका दिया। इसके बाद 60 के दशक के एथलेटिक्‍स के मुकाबलों में यदि भारत को कुछ गंभीरता से लिया गया, तो इसका बहुत कुछ श्रेय दो 'सिंह', मिल्‍खा और गुरबचन को जाता है। ओलिंपिक में पदक नहीं जीत पाने के बावजूद इन दोनों ने खुद को 'किंग' साबित किया था।

1960 के रोम ओलिंपिक के समय 'उड़न सिख' का प्रदर्शन पूरे शवाब पर था और पूरा देश उनसे पदक की उम्‍मीद लगाए हुए था। मिल्खा के पुरुष 400 मीटर इवेंट के फाइनल में पहुंचने के बाद तो इन उम्‍मीदों को मानो पर लग गए। मुकाबले में मिल्‍खा ने जोरदार शुरुआत की। मुकाबले में आधे से अधिक समय तक वे लीड बनाए हुए थे, लेकिन निर्णायक क्षणों में उन्‍होंने ऐसी गलती कर दी कि पदक उनसे दूर छिटक गया।

कहा जाता है कि मिल्‍खा ने आखिरी क्षणों में पीछे चल रहे धावकों की ओर देखने की गलती की, जो उन्‍हें भारी पड़ी। इसी दौरान तीन धावक उनसे आगे निकल गए और फोटो-फिनिश में उन्‍हें चौथा स्‍थान ही हासिल हो पाया। हालांकि इस दौरान वे नया राष्‍ट्रीय रिकॉर्ड बनाने में सफल रहे थे। सेकंड के सौवें हिस्से से पदक चूकने का वह लम्‍हा मिल्‍खा को आज तक याद है और इसका जिक्र करते हुए उनके आंसू अब भी छलक जाते हैं। मिल्‍खा की पदक जीतने की इस नाकामी के बावजूद उनके इस प्रदर्शन का पूरी दुनिया ने लोहा माना।
 
गुरबचन सिंह 1964 के ओलिंपिक में 110 मीटर हर्डल्‍स में पांचवें स्‍थान पर रहे थे।

1960 के बाद 1964 के ओलिंपिक में भी एथलेटिक्‍स का एक पदक भारत के बेहद पास आते हुए भी बहुत दूर रह गया। इस ओलिंपिक में गुरबचन सिंह रंधावा शानदार प्रदर्शन के बावजूद पदक तक नहीं पहुंच सके थे। गुरबचन को जेवलिन थ्रो, हाई और लांग जंप और हर्डल्‍स का बेजोड़ खिलाड़ी माना जाता था। 110 मीटर बाधादौड़ (हर्डल्‍स) में देश को उनसे बहुत उम्‍मीदें थी, लेकिन उन्‍हें पांचवां स्‍थान ही नसीब हो पाया था। हालांकि देश के दिग्‍गज एथलीट गुरबचन के इस प्रदर्शन को विश्‍व स्‍तर पर काफी सराहना मिली थी।

इसी तरह 1984 के लॉस एंजिलिस ओलिंपिक की 400 मीटर हर्डल्‍स स्‍पर्धा में भारत की पीटी ऊषा सेकंड के सौंवे हिस्‍से से कांस्‍य पदक जीतने से रह गई थीं। हालांकि 1900 के पेरिस ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्‍व करते हुए जी. नॉर्मन प्रिचार्ड ने 200 मीटर और 200 मीटर बाधादौड़ के दो रजत पदक जीते थे, लेकिन प्रिचार्ड मूल रूप से ब्रिटिश थे। कोलकाता में जन्‍में प्रिचार्ड बाद में ब्रिटेन में ही जाकर बस गए थे।
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