अब काले रंग को फिर से परिभाषित करने का वक्त...; रंगभेद पर बात करते हुए केरल की मुख्य सचिव

केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन ने रंग एवं लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और कहा कि यह आज भी समाज में मौजूद है.

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शारदा ने रंग व लैंगिक भेदभाव का सामना किया
तिरुवनंतपुरम:

केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन ने रंगभेद को लेकर एक लंबे समय से चली आ रही बहस को फिर से हवा दे दी. रंगभेद का सामना करने के बाद उन्होंने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाया, जिसके बाद उनकी पोस्ट पर जमकर बहस हो रही है. एनडीटीवी से बात करते हुए शारदा ने कहा कि काले रंग को लेकर आम धारणा को बदलने का समय आ गया है. उन्होंने कहा, "हमें यह फिर से परिभाषित करना होगा कि काला रंग क्या है, क्योंकि जब तक हम इसकी सुंदरता को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक ये सवाल ऐसे ही बना रहेगा."

1990 बैच की आईएएस अधिकारी शारदा मुरलीधरन ने हाल ही में एक फेसबुक पोस्ट में अपने रंग को लेकर की गई टिप्पणियों का जवाब दिया था. इन टिप्पणियों में उनके काले रंग को उनकी कार्यक्षमता से जोड़कर तंज कसा गया था. शारदा ने एनडीटीवी को बताया कि यह अनुभव उनके लिए "दिलचस्प" था. उन्होंने कहा कि बचपन से ही उन्हें अपनी सांवले रंग को लेकर कमेंट सुनने पड़े हैं, लेकिन इस बार उनकी तुलना उनके पति और पूर्व मुख्य सचिव वी. वेणु के कार्यकाल से की गई.

शारदा मुरलीधरन ने अपना अनुभव शेयर करते हुए मेरे लिए यह देखना दिलचस्प था कि दोनों को एक रंग के पैमाने पर लाकर खड़ा कर दिया गया. उन्होंने बताया कि इस टिप्पणी में लैंगिक भेदभाव का भी एक आयाम था. अपनी पोस्ट में उन्होंने एक टिप्पणी का जिक्र किया था जिसमें उनके प्रदर्शन को लेकर कहा गया था, "यह उतना ही काला है जितना मेरे पति का कार्यकाल गोरा था. "

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पहले डिलीट कर दी थी अपनी पोस्ट

मुरलीधरन ने बताया कि उनकी पोस्ट को मिले "जबरदस्त रिस्पॉन्स" के चलते उन्होंने इसे पहले डिलीट कर दिया था. लेकिन कई लोगों ने उन्हें फोन करके कहा कि एक मुख्य सचिव के तौर पर उनकी बात महत्वपूर्ण है और यह एक ऐसे मुद्दे को सामने लाती है जिस पर चर्चा की जरूरत है. इसके बाद उन्होंने अपनी पोस्ट को फिर से पोस्ट कर दिया.

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बचपन की यादें और बदलती सोच

शारदा मुरलीधरन ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बचपन की एक घटना साझा की. उन्होंने बताया कि चार साल की उम्र में वह अपनी मां से कहती थीं कि उन्हें वापस गर्भ में डालकर "गोरी और सुंदर" बनाकर बाहर लाएं. लेकिन अब उनकी सोच बदल गई है. उन्होंने कहा, "अब जब मैं अपने बड़े बच्चों की नजरों से खुद को देखती हूं, तो मुझे काला रंग पसंद है. मैं अब कहती हूं- मुझे काला रंग अच्छा लगता है."

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काले रंग की नई परिभाषा

अपनी पोस्ट में शारदा ने काले रंग की खूबसूरती को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की. उन्होंने लिखा, "काला रंग ब्रह्मांड की सर्वव्यापी सच्चाई है. काला वह रंग है जो सब कुछ सोख सकता है, यह मानव जाति के लिए जानी जाने वाली सबसे शक्तिशाली ऊर्जा का प्रतीक है. यह वह रंग है जो हर किसी पर जंचता है- ऑफिस की ड्रेस कोड हो, शाम की चमकदार पोशाक हो, काजल की गहराई हो या बारिश की उम्मीद." 

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रंगभेद पर खुली बहस की जरूरत 

शारदा मुरलीधरन की इस पोस्ट ने न केवल रंगभेद के मुद्दे को उजागर किया, बल्कि समाज में गहरे बैठे रंग के प्रति पक्षपात पर एक खुली चर्चा की जरूरत को भी रेखांकित किया है. उनकी इस पहल को सोशल मीडिया पर व्यापक समर्थन मिल रहा है और लोग इसे एक साहसिक कदम बता रहे हैं. यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि क्या हमारा समाज वाकई रंग के आधार पर भेदभाव से ऊपर उठ पाया है?

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