17 साल पहले चंडीगढ़ में हुआ कैश कांड, गलती से दूसरे जज के घर पहुंचाई गई थी रिश्वत, आज आएगा फैसला

सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की थी, जिसमें न्यायमूर्ति निर्मल यादव समेत कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया. हालांकि, इस दौरान कई बार कानूनी पेचीदगियों के चलते मामला अटका रहा था.

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जज को रिश्वत देने के मामले में चंडीगढ़ ट्रायल केस का फैसला आज.
चंडीगढ़:

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस के सरकारी आवास पर 17 साल पहले 15 लाख रुपये से भरा पैकेट जज के घर पहुंचने के मामले में चंडीगढ़ की ट्रायल कोर्ट आज फैसला (Chandigarh Justice Cash Kand) सुनाएगा. गुरुवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अलका मलिक की अदालत ने इस मामले में फाइनल बहस पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था.  सीबीआई ने साल 2008 में इस मामले में एक FIR दर्ज की थी. आज इस मामले में फैसला सुनाया जाना है. 

रिश्वत से जुड़ा पूरा मामला क्या है?

ये मामला 2008 में सामने आया था, जब गलती से 15 लाख रुपये की नकदी हाईकोर्ट की तत्कालीन जज जस्टिस निर्मल यादव के बजाय एक अन्य जज निर्मलजीत कौर के चंडीगढ़ स्थित घर पहुंचा दी गई. जस्टिस निर्मलजीत कौर ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद मामले की परतें खुलनी शुरू हुईं. 

जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपरासी ने चंडीगढ़ पुलिस थाने में FIR देते कराते हुए 15 लाख रुपये की गुत्थी सुलझाने की गुहार लगाई थी. इसके बाद पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल जनरल (रि.) एस एफ रॉड्रिग्स के आदेश पर मामले को जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया. जांच में पता चला कि ये रकम असल में न्यायमूर्ति निर्मल यादव को दी जानी थी. आरोप है कि ये रिश्वत की ये रकम एक प्रॉपर्टी डील से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी.

जजों के नाम में कंफ्यूजन, भ्रष्टाचार उजागर

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, ये रकम राज्य सरकार के तब के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी लेकर गए थे.
पूछताछ में पता चला कि ये रकम उस वक्त पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जज रहे जस्टिस निर्मल यादव तक पहुंचाई जानी थी. दोनों जजों के नाम निर्मल होने के चलते ये गलतफहमी हुई और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला उजागर हो गया.

संजीव बंसल का मुंशी गलती से जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर के बाहर उनके चपरासी को पैसों से भरा पैकेट पकड़ाकर चला गया. उसने कहा कि ये कागज जज साहब को देने हैं. चपरासी जब भीतर पहुंचा तो जस्टिस निर्मलजीत कौर ने उससे इस पैकेट को खोलने को कहा. पैकेट खोला तो इसमें नोट निकले. 

जज के घर पर भेजा नोटों से भार पैकेट

इसके बाद उन्होंने पैसा देकर जाने वाले व्यक्ति को पकड़ने के लिए अपने गार्ड को भेजा और तुरंत चंडीगढ़ पुलिस को इसकी जानकारी दी. इस केस में हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल कारोबारी रवींदर सिंह भसीन का नाम भी सामने आया.

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जस्टिस निर्मल यादव पर 2014 में तय हुए आरोप

रिश्वत के आरोपों के बाद साल 2010 में जस्टिस निर्मल यादव का तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट में कर दिया गया.  वहां से साल 2011 में वह रिटायर भी हो गईं. उसी साल उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई. तीन साल बाद साल 2014 में स्पेशल कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ आरोप भी तय कर दिए. 

शुरू में  इस मामले की जांच चंडीगढ़ पुलिस ने की. लेकिन 15 दिन के भीतर ही इसे सीबीआई को सौंप दिया गया. साल 2009 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दोबारा जांच के आदेश दिए. सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की, जिसमें न्यायमूर्ति निर्मल यादव समेत कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया. हालांकि, इस दौरान कई बार कानूनी पेचीदगियों के चलते मामला अटका रहा.

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    केस की पूरी टाइमलाइन समझिए

    1. 13 अगस्त 2008 : जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर गलती से 15 लाख रुपए के नोटों से भरा बैग पहुंचा
    2. 16 अगस्त 2008 : चंडीगढ़ पुलिस ने एफआइआर दर्ज की
    3. 26 अगस्त 2008 : केस सीबीआई को ट्रांसफर हुआ
    4. 17 दिसंबर 2009 : सीबीआई ने केस में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी
    5. 26 मार्च 2010 : सीबीआई कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट खारिज की
    6. 28 जुलाई 2010 : चीफ जिस्टस ऑफ इंडिया ने जिस्टस निर्मल यादव के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी दी
    7. 18 जनवरी 2014 : सीबीआई कोर्ट में जस्टिस निर्मल यादव समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय, मुकदमा शुरू
    8. 27 मार्च 2025 : सीबीआई कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई खत्म, 29 मार्च 2025 के लिए फैसला सुरिक्षत

    जज रिश्वत मामले में कब क्या-क्या हुआ? 

    2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी. 2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को चार्जशीट दाखिल हुई. 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की. 20 में कोविड महामारी के चलते सुनवाई प्रभावित हुई. 24 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई, 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए. दमे की 300 से अधिक सुनवाई हुई, लेकिन आरोपियों की तरफ से कई बार गवाहों की लंबी जिरह के चलते सुनवाई में देरी हुई.  प्रमुख गवाह अपने बयान से पलट गए, जिससे मुकदमा कमजोर हुआ. जज के घर रुपये भेजने के आरोपी संजीव बंसल की दिसंबर 2016 में मौत हो गई. इसके बाद 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई. 2016 में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए से ट्रायल कोर्ट को दिए गए बयान में जस्टिस निर्मलजीत कौर ने 13 अगस्त 2008 की शाम की घटना की जानकारी दी.

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