2027 पर नजर और 2024 के झटके पर निगाहें, यूपी बीजेपी में चलेगी बड़े बदलाव की बयार!

यूपी के विधानसभा चुनाव में केवल डेढ़ साल का समय बचा है. इसे देखते हुए बीजेपी संगठन और सरकार में बड़े बदलाव पर विचार कर रही है. सूत्रों के अनुसार, एक बार प्रदेश संगठन का चुनाव संपन्न हो जाए, उसके बाद संगठन और सरकार का स्वरूप बदलेगा.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
योगी आदित्यनाथ (दाएं) और भूपेंद्र चौधरी
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी संगठन में बदलाव पर विचार कर रही है.
  • बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव और कैबिनेट विस्तार लंबे समय से अटका हुआ है.
  • पार्टी जातीय समीकरणों को साधने के लिए महत्वपूर्ण बदलाव करना चाहती है.
  • सपा की सोशल इंजीनियरिंग को काउंटर करने के लिए बीजेपी रणनीति बना रही है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं, लेकिन बीजेपी में विचार मंथन का दौर अभी से शुरू हो गया है. माना जा रहा है कि जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने के लिए पार्टी संगठन और सरकार में बदलाव ज़रूरी है. लेकिन यूपी में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव और कैबिनेट का विस्तार लंबे समय से अटका हुआ है. कहा जा रहा है कि संगठन के फैसलों में देरी से पार्टी की विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर असर पड़ रहा है.

बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत 

पार्टी में माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को यूपी में लगे झटके के बाद बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है. इस चुनाव में बीजेपी और सहयोगी दलों को केवल 36 सीटें मिली थीं जो 2019 की तुलना में 28 कम हैं. हर लोकसभा सीट पर बीजेपी के वोट 2019 की तुलना में कम हुए थे. हर सीट पर लगभग छह-सात प्रतिशत वोटों का नुक़सान हुआ था. पूरे राज्य में 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी के वोट 9% कम हो गए थे. पूर्वांचल और अवध में पार्टी को ख़ासा नुक़सान हुआ था. 

पार्टी उत्तर प्रदेश में काफी समय से नए प्रदेशाध्यक्ष की तलाश में है. मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ने पिछले साल जून में इस्तीफ़े की पेशकश की थी. उन्हें नए अध्यक्ष के चुनाव तक पद पर बने रहने को कहा गया है. लेकिन अब इसे भी एक साल से अधिक समय हो गया है. लेकिन अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया है. कहा जा रहा है कि इसकी वजह से कई अहम फ़ैसले अटके हुए हैं.

Advertisement
यूपी के विधानसभा चुनाव में केवल डेढ़ साल का समय बचा है. इसे देखते हुए पार्टी संगठन और सरकार में बड़े बदलाव पर विचार कर रही है. सूत्रों के अनुसार, एक बार प्रदेश संगठन का चुनाव संपन्न हो जाए, उसके बाद संगठन और सरकार का स्वरूप बदलेगा.

छिटके वोटों को वापस लाने की रणनीति

इस बदलाव में उन क्षेत्रों और जातियों को सरकार में जगह मिल सकती है जिनकी नुमाइंदगी चुनाव के नजरिए से ज़रूरी है. पिछले लोकसभा चुनाव में पासी और कुर्मी वोट बड़ी संख्या में बीजेपी से छिटक गए थे. जाटव वोटों का भी अच्छा-खासा हिस्सा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के पाले में चला गया था. ऐसे में इसे वापस खींचने के योजना बनाई जा रही है.

Advertisement

अवध क्षेत्र से पासी-कुर्मी, प्रतापगढ़-अम्बेडकरनगर-प्रयागराज क्षेत्र से सैनी-मौर्या-शाक्य, ब्रज क्षेत्र से शाक्य, काशी से बिंद-कुर्मी को प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है या फिर प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है. इन क्षेत्रों में जातियों का समीकरण अलग-अलग तरह से एडजस्ट किया जा सकता है.

Advertisement

सपा की सोशल इंजीनियरिंग की काट

2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में जिस तरह से सोशल इंजीनियरिंग की थी, उसका फ़ायदा अखिलेश को हुआ था. बीजेपी अब उसे काउंटर करने के लिए अभी से रणनीति बनाने में जुट गई है. पार्टी का मानना है कि अगले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 130 से 140 सीटें अपने कोर वोटर यानी यादव और मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवारों को दे सकती है. 

Advertisement

बीजेपी को लगता है कि 2027 के चुनाव में समाजवादी पार्टी इनमें से आधी सीटों पर भी इस समुदाय से अलग जातियों को टिकट देती है तो पार्टी के लिए उससे पार पाने में बहुत मुश्किल हो सकती है. समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में ये नुस्खा आजमा चुकी है. सपा ने कई सीटों पर जाटव उम्मीदवार दिए थे. इस कारण जाटव वोटों का बड़ा हिस्सा बीएसपी से छिटककर सपा के पाले में चला गया था. 

प्रदेश बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि पार्टी को ऐसी रणनीति बनानी होगी जिससे गैर यादव ओबीसी वोट अखिलेश के पाले में न जा पाएं. ऐसी सूरत में बीजेपी का अगला प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी समुदाय से बनाया जा सकता है. इसमें भी खासकर कुर्मी-लोध, निषाद समुदाय से किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया जा सकता है. 

कैबिनेट विस्तार से साधे जाएंगे वोट

इसके अलावा योगी कैबिनेट का विस्तार होने पर पासी-कुर्मी वर्ग का प्रतिनिधित्व उसमें बढ़ाया जा सकता है. विधानसभा चुनाव से पहले कैबिनेट का यह अंतिम फेरबदल होगा. ऐसे में सभी वर्गों और क्षेत्रों की नुमाइंदगी देने का यह एक बड़ा मौक़ा होगा. 

इटावा के कथावाचकों के मुद्दे पर भी बीजेपी की नजर है. ब्राह्मण कथावाचकों को लेकर समाजवादी पार्टी जिस तरह विरोध प्रदर्शन कर रही है, उसे बीजेपी अपने लिए फायदेमंद मान रही है. पार्टी का मानना है कि समाजवादी पार्टी और उसके कोर यादव वोटर इस मसले पर जितना उग्र प्रदर्शन करेंगे, वो उनके खिलाफ़ और बीजेपी के पक्ष में जाएगा.
 

Featured Video Of The Day
Azam Khan की मदद करने से क्यों कतराते हैं Akhilesh Yadav? | Khabron Ki Khabar | NDTV India