World Health Day 2022: हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य; जानें जलवायु संकट स्वास्थ्य संकट क्यों है

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2022 पर, 'हमारा ग्रह, हमारी सेहत' कैंपेन के ज़रिए, डब्ल्यूएचओ मानव और ग्रह को सेहतमंद रखने के लिए ज़रूरी एक्शंस पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करेगा.

  • विश्व स्वास्थ्य दिवस दुनिया भर के लोगों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए डब्ल्यूएचओ की एक पहल है. 1948 में डब्ल्यूएचओ ने पहली विश्व स्वास्थ्य सभा का आयोजन किया था, जिसके तहत 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' के निर्माण का आह्वान किया गया. इसके दो साल बाद 1950 में, पहला विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया गया और तभी से, यह हर साल एक ही दिन पर अनोखी थीम के साथ मनाया जाता है. इस साल इसकी थीम 'हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य' है.
    विश्व स्वास्थ्य दिवस दुनिया भर के लोगों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए डब्ल्यूएचओ की एक पहल है. 1948 में डब्ल्यूएचओ ने पहली विश्व स्वास्थ्य सभा का आयोजन किया था, जिसके तहत 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' के निर्माण का आह्वान किया गया. इसके दो साल बाद 1950 में, पहला विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया गया और तभी से, यह हर साल एक ही दिन पर अनोखी थीम के साथ मनाया जाता है. इस साल इसकी थीम 'हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य' है.
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  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में 13 मिलियन से ज़्यादा मौतें परिवेशी वायु प्रदूषण जैसे परिहार्य पर्यावरणीय कारणों से होती हैं. इसमें जलवायु संकट शामिल है जो मानवजाति के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है.
    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में 13 मिलियन से ज़्यादा मौतें परिवेशी वायु प्रदूषण जैसे परिहार्य पर्यावरणीय कारणों से होती हैं. इसमें जलवायु संकट शामिल है जो मानवजाति के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा है.
  • डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने से अकेले वायु प्रदूषण में कमी के ज़रिए साल 2050 तक दुनिया भर में एक साल में करीब दस लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. सबसे खराब जलवायु प्रभावों से बचाव के लिए 2030 से 2050 तक प्रति वर्ष 250,000 से ज़्यादा जलवायु संबंधी मौतों को रोकने में मदद मिल सकती है, मुख्य रूप से वो मौतें जो कुपोषण, मलेरिया, दस्त और गर्मी के तनाव से होती हैं.
    डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने से अकेले वायु प्रदूषण में कमी के ज़रिए साल 2050 तक दुनिया भर में एक साल में करीब दस लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. सबसे खराब जलवायु प्रभावों से बचाव के लिए 2030 से 2050 तक प्रति वर्ष 250,000 से ज़्यादा जलवायु संबंधी मौतों को रोकने में मदद मिल सकती है, मुख्य रूप से वो मौतें जो कुपोषण, मलेरिया, दस्त और गर्मी के तनाव से होती हैं.
  • बढ़ते तापमान से भीषण गर्मी का खतरा बढ़ जाता है. ज़्यादा गर्मी की चपेट में आने से सिरदर्द, भ्रम, थकान और उल्टी होने जैसी समस्याएं होती हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 40 डिग्री से ऊपर के तापमान के साथ, हीट स्ट्रोक हो सकता है, जिससे अंगों के फेल होने की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है, या फिर मौत भी हो सकती है. इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और बाढ़ से 2 अरब लोगों को डेंगू होने का खतरा भी होगा.
    बढ़ते तापमान से भीषण गर्मी का खतरा बढ़ जाता है. ज़्यादा गर्मी की चपेट में आने से सिरदर्द, भ्रम, थकान और उल्टी होने जैसी समस्याएं होती हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 40 डिग्री से ऊपर के तापमान के साथ, हीट स्ट्रोक हो सकता है, जिससे अंगों के फेल होने की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है, या फिर मौत भी हो सकती है. इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और बाढ़ से 2 अरब लोगों को डेंगू होने का खतरा भी होगा.
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  • जलवायु परिवर्तन से सूखे और जंगल में आग लगने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. जंगल की आग से दम घुटने, जलने और धुएं के कारण मौत और चोट लग सकती है; धुएं और राख से सांस और हृदय से जुड़ी समस्याएं; मानसिक स्वास्थ्य पर चोट का प्रभाव; स्वास्थ्य सेवाओं में परेशानी; घर और आजीविका का नुकसान भी हो सकता है.
    जलवायु परिवर्तन से सूखे और जंगल में आग लगने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. जंगल की आग से दम घुटने, जलने और धुएं के कारण मौत और चोट लग सकती है; धुएं और राख से सांस और हृदय से जुड़ी समस्याएं; मानसिक स्वास्थ्य पर चोट का प्रभाव; स्वास्थ्य सेवाओं में परेशानी; घर और आजीविका का नुकसान भी हो सकता है.