मेघालय में भी छाया USHA Silai School, महिलाओं को कर रहा सशक्त
साल 2011 से उषा सिलाई स्कूल महिलाओं को सशक्त करने के प्रयास कर रहा है. ये स्कूल देश के कई हिस्सों में फैला हुआ है और आज हम इसकी मेघालय और पश्चिम बंगाल से जुड़ी महिलाओं के बारे में आपको बता रहे हैं.
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मेघायल में उषा सिलाई स्कूल यहां के मेघालय स्टेट रूरल लाइवलीहुड सोसायटी (एमएसआरएलएस) से जुड़ा हुआ है. यहां पर महिलाएं बैग, सिंगल यूज प्लास्टिक बैग व अन्य चीजें बनाकर अपना घर चलाती हैं.
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राज्य सरकार ने बैग बनाने में महिला उद्यमियों को प्रशिक्षित करने के लिए उमासिंग और री भोई जिलों में उषा सिलाई स्कूल के साथ दो प्रशिक्षण-सह-उत्पादन केंद्र स्थापित किए.
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जब देश में कोरोनावायरस का कहर काफी बढ़ गया था उस दौरान इन महिलाओं के राज्य में मास्क बनाने की ट्रेनिंग दी गई. इन महिलाओं के हाथों से करीब 4 से 5 लाख मास्क निर्मित किए गए और लोगों में बांटे गए.
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प्रशिक्षण केंद्रों पर महिलाएं न केवल बुनियादी सिलाई का कौशल विकसित कर रही हैं, बल्कि वे भी हैं एक डिजाइनर को तौर पर भी खुद को विकसित कर रही हैं.
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इस उषा स्कूल ने द ट्राइबल कॉर्पोरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीआरआईएफईडी) के साथ भी गठजोड़ किया हुआ है.
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पश्चिम बंगाल में उषा इंटनेशनल ने कई संगठनों के साथ हाथ मिलाया हुआ है. यहां साल 2019 में 3500 नए सिलाई स्कूल खोले गए.
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पश्चिम बंगाल के नॉर्थ 24 परगना जिले की रहने वाली ज्योत्सना सरदार एक समय पर काफी बुरे हालातों का सामना कर रही थीं, इस स्कूल से जुड़ने के बाद वह उभरी भी और अब अपना घर आसानी से चला रही हैं.
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ज्योत्सना पहले छोटा सिलाई का बिजनेस चला रही थीं, लेकिन अब उसने सिलाई स्कूल खोला है और वह 8 महिलाओं को सिलाई सीखा रही हैं. ज्योत्सना की दो बेटियां हैं और वह उन्हें हर खुशी और बेहतर शिक्षा देने की कोशिश में जुटी हुई हैं.
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40 साल की सुष्मिता साहा 2017 में डिप्रेशन का सामना कर रही थीं. वह भी उषा सिलाई स्कूल से जुड़ी और वह खुद में एक बदलाव लाईं.
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सुष्मिता काफी कम टाइम में सिलाई सीख गईं और अब वह करीब 20 महिलाओं को सिलाई सीखा रही हैं. सुष्मिता महीने में 6000 रुपये की कमाई कर लेती हैं.
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