ऑल दैट ब्रीथ्स: कान्स में जीती शौनक सेन की फिल्म, दिल्ली के इन दो भाइयों की है कहानी

दिल्ली के वज़ीराबाद में खाली और गंदा बेसमेंट, दिल्ली के फिल्म निर्माता शौनक सेन के लिए उनकी फिल्म 'ऑल दैट ब्रीथ्स' की लोकेशन थी, उनकी इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही बटोरी. इस साल के कान्स फिल्म समारोह में फिल्म ने टॉप डॉक्यूमेंट्री ऑनर्स - ल'ऑइल डी'ओर (गोल्डन आई) पुरस्कार जीता. इसका वर्ल्ड प्रीमियर 22 जनवरी, 2022 को 2022 सनडांस फिल्म फेस्टिवल में भी हुआ था, जहां इसने विश्व सिनेमा वृत्तचित्र प्रतियोगिता में ग्रैंड जूरी पुरस्कार जीता था.

  • मामूली तहखाना भाई नदीम शहजाद और मोहम्मद सऊद का कार्यस्थल है और इसे वन्यजीव बचाव केंद्र कहा जाता है. दिल्ली के दो भाइयों ने राष्ट्रीय राजधानी के धुंधले आसमान को सजाने वाले पक्षियों को बचाने के लिए अपने रोगियों - गौरैया, काली चील (ब्लैक काइट्स) के लिए जटिल लड़ाई लड़ने का फैसला किया.


फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    मामूली तहखाना भाई नदीम शहजाद और मोहम्मद सऊद का कार्यस्थल है और इसे वन्यजीव बचाव केंद्र कहा जाता है. दिल्ली के दो भाइयों ने राष्ट्रीय राजधानी के धुंधले आसमान को सजाने वाले पक्षियों को बचाने के लिए अपने रोगियों - गौरैया, काली चील (ब्लैक काइट्स) के लिए जटिल लड़ाई लड़ने का फैसला किया. फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
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  • अपने दिल में एक साधारण इरादे 'किसी भी पक्षी को चोट के कारण, उचित उपचार, भोजन और पानी के बिना नहीं मरना चाहिए' के साथ इन भाइयों ने 2010 में अपने घर की छत से अपने एनजीओ वाइल्डलाइफ रेस्क्यू की शुरुआत की. फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    अपने दिल में एक साधारण इरादे 'किसी भी पक्षी को चोट के कारण, उचित उपचार, भोजन और पानी के बिना नहीं मरना चाहिए' के साथ इन भाइयों ने 2010 में अपने घर की छत से अपने एनजीओ वाइल्डलाइफ रेस्क्यू की शुरुआत की. फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
  • अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, नदीम शहजाद ने कहा, "यह पूरी बात 2003 में शुरू हुई थी जब हम स्कूल से लौट रहे थे. हमने देखा कि एक ब्लैक काइट सड़क पर घायल पड़ी हुई है. जब हमने उसे उठाया और पास के पशु चिकित्सा क्लीनिक में ले गए, तो हमें बताया गया कि हम मांसाहारी पक्षियों का इलाज नहीं करते हैं. दिन और साल बीतते गए, और हम एक के बाद एक घायल पक्षियों को देखते रहे. 2003 में, हमें एक और घायल ब्लैक काइट मिली, उस दिन हमने इस मामले को अपने हाथ में लिया और उसकी देखभाल करने का फैसला किया, हमने पक्षी को उठाया और अपने घर ले आए. हमने उसका उचित उपचार किया, हमने उसे भोजन और पानी दिया, हम जो कुछ भी कर सकते थे हमने वो सब किया और तब से हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा." 


फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, नदीम शहजाद ने कहा, "यह पूरी बात 2003 में शुरू हुई थी जब हम स्कूल से लौट रहे थे. हमने देखा कि एक ब्लैक काइट सड़क पर घायल पड़ी हुई है. जब हमने उसे उठाया और पास के पशु चिकित्सा क्लीनिक में ले गए, तो हमें बताया गया कि हम मांसाहारी पक्षियों का इलाज नहीं करते हैं. दिन और साल बीतते गए, और हम एक के बाद एक घायल पक्षियों को देखते रहे. 2003 में, हमें एक और घायल ब्लैक काइट मिली, उस दिन हमने इस मामले को अपने हाथ में लिया और उसकी देखभाल करने का फैसला किया, हमने पक्षी को उठाया और अपने घर ले आए. हमने उसका उचित उपचार किया, हमने उसे भोजन और पानी दिया, हम जो कुछ भी कर सकते थे हमने वो सब किया और तब से हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा." फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
  • फिल्म निर्माता शौनक सेन को इस भाई की जोड़ी की कहानी को कैप्चर करके जलवायु परिवर्तन के प्रति दार्शनिक स्वभाव मिला, जो उनके लिए बहुत नया और अलग था.


फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    फिल्म निर्माता शौनक सेन को इस भाई की जोड़ी की कहानी को कैप्चर करके जलवायु परिवर्तन के प्रति दार्शनिक स्वभाव मिला, जो उनके लिए बहुत नया और अलग था. फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
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  • अपने दैनिक जीवन में ज्यादातर मामलों के बारे में बात करते हुए भाइयों ने कहा, "पक्षियों और ब्लैक काइट्स के लिए एक बड़ा खतरा पतंगबाजी है. हर साल, शहर में 25,000 से 30,000 पक्षी मर जाते हैं. ये मौते मांजे के कारण होती है. मांजा एक ऐसा सिंथेटिक धागा है जो मूल रूप से कांच और धातु से बना होता है. एक और बड़ा खतरा यह है कि हमारा शहर पक्षियों के प्राकृतिक आवास को कैसे विकसित और नष्ट कर रहे हैं. अंत में, जलवायु परिवर्तन का भी उनके जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है. उदाहरण के लिए मई और अप्रैल के महीने में, दिल्ली में, बहुत अधिक गर्मी होती है, जिसके कारण हमने दैनिक आधार पर डिहाइड्रेशन के मामलों में दो गुना वृद्धि देखी, जबकि इस वर्ष मृत्यु दर बढ़कर 3-4 गुना हो गई."


फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    अपने दैनिक जीवन में ज्यादातर मामलों के बारे में बात करते हुए भाइयों ने कहा, "पक्षियों और ब्लैक काइट्स के लिए एक बड़ा खतरा पतंगबाजी है. हर साल, शहर में 25,000 से 30,000 पक्षी मर जाते हैं. ये मौते मांजे के कारण होती है. मांजा एक ऐसा सिंथेटिक धागा है जो मूल रूप से कांच और धातु से बना होता है. एक और बड़ा खतरा यह है कि हमारा शहर पक्षियों के प्राकृतिक आवास को कैसे विकसित और नष्ट कर रहे हैं. अंत में, जलवायु परिवर्तन का भी उनके जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है. उदाहरण के लिए मई और अप्रैल के महीने में, दिल्ली में, बहुत अधिक गर्मी होती है, जिसके कारण हमने दैनिक आधार पर डिहाइड्रेशन के मामलों में दो गुना वृद्धि देखी, जबकि इस वर्ष मृत्यु दर बढ़कर 3-4 गुना हो गई." फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
  • इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि ब्लैक काइट्स को बचाना क्यों महत्वपूर्ण है और वे हमारे पर्यावरण में प्राकृतिक संतुलन को बहाल करने में कैसे मदद करते हैं, मोहम्मद सऊद ने कहा,

"ब्लैक काइट्स मृत जानवरों और कचरे की मदद करते हैं जो हम अपने घरों से फेंकते हैं. भारत के बूचड़खानों में से मांस का कचरा निकलता है, जिसे डंपयार्ड में फेंक दिया जाता है क्योंकि यह मनुष्यों द्वारा खाने के लिए उपयुक्त नहीं होता. यह सिर्फ डंप यार्ड में रखा रहता अगर ब्‍लैक काइट्स नहीं होती तो. इसलिए स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है. एक तरह से वे उस अनुपयुक्त कचरे को खाने से हमें कई बीमारियों, संक्रमणों से बचाने में मदद करते हैं.'



फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि ब्लैक काइट्स को बचाना क्यों महत्वपूर्ण है और वे हमारे पर्यावरण में प्राकृतिक संतुलन को बहाल करने में कैसे मदद करते हैं, मोहम्मद सऊद ने कहा, "ब्लैक काइट्स मृत जानवरों और कचरे की मदद करते हैं जो हम अपने घरों से फेंकते हैं. भारत के बूचड़खानों में से मांस का कचरा निकलता है, जिसे डंपयार्ड में फेंक दिया जाता है क्योंकि यह मनुष्यों द्वारा खाने के लिए उपयुक्त नहीं होता. यह सिर्फ डंप यार्ड में रखा रहता अगर ब्‍लैक काइट्स नहीं होती तो. इसलिए स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है. एक तरह से वे उस अनुपयुक्त कचरे को खाने से हमें कई बीमारियों, संक्रमणों से बचाने में मदद करते हैं.' फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
  • 2003 के बाद से, इन भाईयों ने लगभग 25,000 पक्षियों और ब्लैक काइट्स को बचाने में मदद की है. वे कहते हैं, "जब हम एक पक्षी को हमारे द्वारा दिए गए सभी उपचारों के बाद एक बार फिर आकाश में उड़ते हुए देखते हैं, तो यह हमारे तनख्वाह के दिन की तरह लगता है.'


फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
    2003 के बाद से, इन भाईयों ने लगभग 25,000 पक्षियों और ब्लैक काइट्स को बचाने में मदद की है. वे कहते हैं, "जब हम एक पक्षी को हमारे द्वारा दिए गए सभी उपचारों के बाद एक बार फिर आकाश में उड़ते हुए देखते हैं, तो यह हमारे तनख्वाह के दिन की तरह लगता है.' फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
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  • वजीराबाद से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों और कान्स जैसे पुरस्कारों तक के अपने सफर के बारे में बात करते हुए नदीम शहजाद ने कहा, 'हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारा काम किसी फिल्म समारोह में जाएगा और हम इसके लिए पुरस्कार लेने जाएंगे. यह बहुत अलग अहसास है. अपने काम की शुरुआत के बाद से, हमारा इरादा ब्लैक काइट्स और अन्य पक्षियों की देखभाल करना था, जो घायल हो गए हैं. हम इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि इन घायल पक्षियों को मरने के लिए छोड़ दिया जाए...'


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    वजीराबाद से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों और कान्स जैसे पुरस्कारों तक के अपने सफर के बारे में बात करते हुए नदीम शहजाद ने कहा, 'हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारा काम किसी फिल्म समारोह में जाएगा और हम इसके लिए पुरस्कार लेने जाएंगे. यह बहुत अलग अहसास है. अपने काम की शुरुआत के बाद से, हमारा इरादा ब्लैक काइट्स और अन्य पक्षियों की देखभाल करना था, जो घायल हो गए हैं. हम इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि इन घायल पक्षियों को मरने के लिए छोड़ दिया जाए...' फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़
  • दोनों भाईयों को अब उम्मीद है कि इस मान्यता से उन्हें अपने काम के लिए अधिक से अधिक दान प्राप्त करने में मदद मिलेगी और वे आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक पक्षियों को बचाने में सक्षम होंगे.


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    दोनों भाईयों को अब उम्मीद है कि इस मान्यता से उन्हें अपने काम के लिए अधिक से अधिक दान प्राप्त करने में मदद मिलेगी और वे आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक पक्षियों को बचाने में सक्षम होंगे. फोटो सौजन्य: राघव कक्कड़