जम्मू-कश्मीर की 16 वर्षीय खिलाड़ी ने एशियाई पैरा खेलों में रचा इतिहास
16 साल की शीतल देवी जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के लोइधर गांव की रहने वाली हैं और उनका जन्म फोकोमेलिया नाम की बीमारी के साथ हुआ था. इस बीमारी में अंग विकसित नहीं हो पाते. हाल ही में चीन के हांगझू में आयोजित एशियाई पैरा खेलों में उन्होंने तीरंदाजी में दो स्वर्ण और एक रजत सहित तीन पदक जीते हैं. ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली बांह-रहित तीरंदाज महिला तीरंदाज बन गई हैं.
-
16 साल की शीतल देवी ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि उन्हें पेड़ों पर चढ़ना पसंद था. उन्होंने कहा, "बचपन में बस पेड़ों की ऊंचाई छूना चाहती थी, यही चीज मुझे हमेशा खुश रखती थी."
-
2019 में किश्तवाड़ में एक युवा खेल कार्यक्रम में सेना ने उन्हें देखा. सेना ने देवी को बेंगलुरु से कृत्रिम हाथ दिलाने में मदद की, लेकिन यह काम नहीं आया, क्योंकि फिटिंग उनके लिए सही नहीं थी. यही वह समय था जब शीतल का परिचय कई खिलाड़ियों से हुआ, जिन्होंने उसे पैरा स्पोर्ट्स में जाने के लिए प्रेरित किया.
-
शीतल देवी को पैरा तीरंदाजी के लिए मार्गदर्शन दिया गया और उन्हें कोच कुलदीप बैदवान और अभिलाषा चौधरी से मिलवाया गया. 2022 से श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के तहत शीतल देवी ने पैरा स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग शुरू की.
-
कोचों ने लंदन पैरालिंपिक 2012 के रजत पदक विजेता मैट स्टुट्जमैन से प्रेरणा ली, जिन्होंने शूटिंग के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल किया था. ट्रेनर्स ने शीतल के प्रशिक्षण के बारे में बात की और बताया कि कैसे उसने प्रतिदिन 50-100 तीर चलाने से शुरुआत की और धीरे-धीरे उसकी ताकत में सुधार होने पर गिनती 300 तक पहुंच गई.
-
इसके बाद उन्होंने सोनीपत में पैरा ओपन नेशनल्स में रजत पदक जीता. इसके बाद चेक गणराज्य में आयोजित पैरा-तीरंदाजी विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक हासिल किए और दुनिया की पहली बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज बन गईं. अब, उन्होंने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में तीन पदक जीते हैं.
-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीतल देवी से मुलाकात कर उन्हें बधाई दी और जीवन में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के लिए शुभकामनाएं दीं.
Advertisement
Advertisement