Neeraj Chopra at Paris 2024 Olympics: भारतीय एथलेटिक्स के लिये कई कीर्तिमान रच चुके नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra at Paris Olympics 2024) की नजरें आज रात 11:55 पर होने वाले जैवलिन थ्रो फाइनल में लगातार दूसरे संस्करण मे स्वर्ण पदक कब्जाने पर लगी हैं. करोड़ों भारतीयों को पूरा भरोसा हो चला है कि नीरज फाइनल में भी कुछ ऐसे ही खास अंदाज में भाला फेंकेंगे, जैसा उन्होंने क्वालिफिकेशन राउंड में फेंका था.चोपड़ा अगर स्वर्ण जीतते हैं, तो ओलंपिक के इतिहास में खिताब बरकरार रखने वाले पांचवें खिलाड़ी हो जायेंगे. इसके साथ ही ओलंपिक व्यक्तिगत वर्ग में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय भी बन जाएंगे.
Photo Credit: Neeraj Chopra Insta
ओलंपिक की पुरुष भालाफेंक स्पर्धा में अभी तक एरिक लेमिंग ( स्वीडन 1908 और 1912), जोन्नी माइरा ( फिनलैंड 1920 और 1924), चोपड़ा के आदर्श जान जेलेंजी ( चेक गणराज्य 1992 और 1996 ) और आंद्रियास टी ( नॉर्वे 2004 और 2008) ओलंपिक में भालाफेंक स्पर्धा में खिताब बरकरार रख सके हैं चलिए आप जान लीजिए कि इवेंट के नियम क्या हैं और क्वालिफिकेशन राउंड और फाइनल इवेंट कैसे खेला जाता है.
क्या है क्या हैं जैवलिन थ्रो के नियम
दरअसल, जैवलिन थ्रो का सीधा सा मतलब है कि एथलीट हाथ में भाले को लेकर जिसका हो सके दूर फेंकते हैं. थ्रोअर्स को अपने थ्रो को वैध करने के लिए नियम के दारये में रहकर ही थ्रो करना होता है.
- सबसे पहले एथलीट को एक हाथ से भाले को पकड़ना होता है. हाथ में दस्ताने पहनने की अनुमति नहीं होती है. नंगे हाथ से ही भाले को पकड़कर फेंकना होता है. इसके अलावा एथलीट अपनी उंगलियों पर टेप लगा सकते हैं, इसके अलावा थ्रो को कोई और सहायता नहीं दी जाती है. बता दें कि दो या दो से अधिक अंगुलियों पर एक साथ टैप लगाने की अनुमति भी एथलीट को नहीं दी जाती है. भाला फेंकने वाले एथलीट की पहले पूरी तरह से जज जांच करते हैं फिर उन्हें भाला फेंकने की अनुमति मिलती है.
- भाला फेंकने के दौरान एथलीट को अपनी स्थिति कंधे के ऊपर या फेंकने वाली भुजा के ऊपरी हिस्से की ओर से रखना होता है. भाला फेंकते समय एथलीट को फाउल लाइन के पीछे रहना होता है. यानी एथलीट को फाउल लाइन से पीछे रहते हुए भाला फेंकना होता है.
एक मिनट के अंदर फेंकना होता है भाला
एथलीटों के लिए भाला फेंकने के लिए समय निर्धारित की गई है. एथलीट को एक मिनट के अंदर ही भाला फेंकना होता है. एक मिनट के अंदर थ्रो नहीं फेंकने पर फाउल थ्रो माना जाता है. यानी एथलीट के प्रसास को असफल करार दे दिया जाता है. फाउल हुए थ्रो की गणना नहीं की जाती है.
फाउल लाइन के पीछे रहकर फेंकना होता है भाला
.एथलीटों को भाला फेंकने से पहले और भाला लैंड करते समय कर फाउल लाइन के पीछे ही रहना होता है.
कैसे नापे जाते हैं स्कोर
दरअसल, थ्रो को मापने के लिए भाला को लैंडिंग सीमा के अंदर गिरना होता है. भाला को जमीन पर सिर्फ एक निशान बनाने की दरकार होती है. जरूरी नहीं कि जमीन पर भाला चिपक जाए या फिर जमीन से गड़कर खड़ा हो जाए. जिस जगह भाला लैंड करता है वहीं जगह से जज स्कोर नापते हैं.
मापों को नापने के लिए मीटर टेप या लेजर का उपयोग होता है.
एथलीट के द्वारा फेंके गए भाले की दूरी को नापने के लिए मीटर टेप का उपयोग होता है. बता दें कि लेजर के माध्यम से भी इसे डिजिटल रूप से मापा जाता है. EDM (इलेक्ट्रॉनिक दूरी माप प्रणाली (EDM) की शुरुआत के बाद अब इसे लेजर के माध्यम से डिजिटल रूप से मापा जाता है। ईडीएम से लैस नहीं होने वाले स्थानों पर अभी भी मीटर टेप का इस्तेमाल किया जाता है।) से लैस नहीं होने वाले स्थानों पर अभी भी मीटर टेप का इस्तेमाल किया जाता है.
क्या है जैवलिन थ्रो के फॉर्मेट
जैवलिन थ्रो के फॉर्मेट के बारे में बात की जाए तो इसमें 6 राउंड होते हैं. एथलीटों को 6 राउंड में भाला फेंकना होता है. यदि इवेंट में 8 से ज्यादा एथलीट भाग लेते हैं तो पहले तीन राउंड के बाद सिर्फ टॉप आठ को अगले राउंड में भेजा जाता है, जहां बचे तीन राउंड में प्रतिस्पर्धा होती है. फाइनल में आखिर में सबसे लंबा थ्रो फेंकने वाले एथलीट को विजेता घोषित किया जाता है.
टाई होने पर क्या होगा
अगर दो एथलीटों ने एक समान दूरी पर भाला फेंका है तो उन एथलीटों में जिसने अपना दूसरा सर्वश्रेष्ठ थ्रो फेंका हो उसे बेहतर रैंक दी जाती है, जिससे विजेता का परिणाम निकाला जाता है.