Tokyo Olympic: पीवी सिंधु (PV Sindhu) ने 5 साल पहले रियो में सिल्वर मेडल जीता तब वो भारत की इकलौती महिला एथलीट बन गई थीं जिन्होंने ये कारनामा किया था. भारत के नाम ओलिंपिक्स में हॉकी के 8 गोल्ड और अभिनव बिन्द्रा के 1 गोल्ड के साथ ओलिंपिक्स (Olympics) में कुल मिलाकर 9 गोल्ड, 7 सिल्वर और 12 ब्रॉन्ज़ मेडल जीते हैं. रियो में सिंधु के मेडल ने ओलिंपिक्स में भारत का सर ऊंचा कर दिया और एक बार पांच साल बाद उनसे उम्मीदें बढ़ गई हैं. वो इकलौती भारतीय मेडल विजेता के तौर पर टोक्यो जाएंगी. उनसे उम्मीदें हैं तो उनपर इसका दबाव भी होगा. उनकी तैयारी कैसी है, उनमें कितना बदलाव आया है, दबाव से निपटने के लिए वो क्या कर रही हैं इसपर NDTV विस्तार से बात की.
सिंधु बताती हैं कि रियो (Rio olympics) में वो सिर्फ़ 21 साल की थीं और पहली बार ओलिंपिक्स विलेज पहुंची थीं. वो कहती हैं कि वहां पहुंचना किसी भी खिलाड़ी के लिए विराट अनुभव होता है. उन्हें इस बात का अहसास है कि उम्र के साथ उनके गेम, उनके धैर्य, उनके स्टैमिना और मैचों को लेकर उनके रवैये में फ़र्क आया है. लेकिन वो कहती हैं, "क़रीब पिछले दो महीने से किसी ने दूसरे खिलाड़ी को खेलते नहीं देखा है. इस दौरान सभी खिलाड़ियों ने कोई ना कोई एक्स्ट्रा स्किल ज़रूर सीखा होगा. इसलिए मैं कोच पार्क के साथ अपनी रणनीति पर ख़ास तौर पर काम कर रही हूं."
वो ये भी कहती हैं कि 5 साल में उनके गेम में बड़ा बदलाव आया है. उनके दक्षिण कोरियाई कोच पार्क तेइ सैंग (बुसान एशियन गेम्स के गोल्ड मेडल विजेता खिलाड़ी) और ट्रेनर सुचित्रा ने उनपर बहुत मेहनत की है और टो्क्यो (Tokyo Olympic) जाने से पहले वो उनके गेम की बारीकियों पर बहुत मेहनत कर रहे हैं. वो हर खिलाड़ी के लिहाज़ से रणनीति बनाकर उनपर काम कर रहे हैं.
सिंधु सहित 16 खिलाड़ियों की फ़ील्ड ओलिंपिक्स में बेहद मज़बूत है और सभी में कांटे की टक्कर नज़र आती है. सिंधु के पास बाक़ी के 15 में से 14 खिलाड़ियों के ख़िलाफ़ खेलने का अनुभव हासिल है. सिर्फ़ एक खिलाड़ी- इंडोनेशिया की जॉर्जिया मारिस्का तुनजुंग (वर्ल्ड रैंकिंग 23) के ख़िलाफ़ सिंधु (वर्ल्ड रैंकिंग 7, बेस्ट वर्ल्ड रैंकिंग 2) ने कभी कोई मैच नहीं खेला है.
सिर्फ़ चार खिलाड़ियों के जीत-हार के रिकॉर्ड सिंधु से बेहतर नज़र आते हैं. चीनी ताइपेई की वर्ल्ड नंबर 1 ताइ ज़ु यिंग (सिंधु जीतीं 5, ताइ ज़ु जीतीं 13, यानी 5-13 का रिकॉर्ड), चीन की वर्ल्ड नंबर 9 हि बिंगजिआओ (6-9), थाइलैंड की वर्ल्ड नंबर 6 रैटचेनॉक इंटेनॉन (4-6) और द. कोरियाई वर्ल्ड नंबर 8 एन से यंग (1-0) के मैचों में हार जीत के रिकॉर्ड सिंधु से बेहतर ज़रूर हैं. मगर ज़्यादातर खिलाड़ियों को सिंधु ने कभी ना कभी ज़रूर हराया है. सिंधु कहती हैं, " टॉप के 7-8-10 खिलाड़ियों में ज़्यादा फ़र्क नहीं होता. ये उस दिन के फ़ॉर्म पर निर्भर करता है. कई फ़ैक्टर्स होते हैं और उसके मुताबिक जीत तय होती है." वो ये भी कहती हैं कि किसी एक खिलाड़ी पर नहीं बल्कि टॉप की कई खिलाड़ियों पर सबकी नज़र बनी रहती है.
सिंधु बताती हैं कि 21 साल की रियो की सिंधु और अब की सिंधु में कितना फ़र्क आ गया है. सिंधु कहती हैं कि इस साल बेशक उनकी शुरुआत अच्छी नहीं रही (जहां वो जनवरी में थाइलैंड ओपन में पहले राउंड में हार गईं), लेकिन वो स्विस ओपन में फ़ाइनल तक पहुंचीं (जहां वो कैरोलिना मारिन से 12-21, 5-21 से हारीं) और ऑल इंग्लैंड में उन्हें सेमीफ़ाइनल में थाइलैंड की पोर्नवापी चोचुवॉन्ग से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन वो मानती हैं कि इस वक्त कोच पार्क के साथ वो अपने करियर के शानदार फ़ॉर्म में तैयारी कर रही हैं.
वो ये भी कहती हैं, "यकीनन मेरे गेम के कई पहलू बदल गये हैं. अब मुझमें ज़्यादा पेशेंस यानी धैर्य आया है. मैं बेहतर रणनीति के आधार पर मैच खेलती हूं. आक्रमण अब भी मेरे गेम का मेरा मज़बूत पहलू है. " बड़ी बात ये भी है कि सिंधु अब दबाव को दूर रखने का तरीका सीख गई हैं. वो कहती हैं, "अब मैं मेडिटेशन के ज़रिये खुद को स्ट्रेस से दूर रखती हूं." वो ये भी कहती हैं कि दबाव से दूर रहने के लिए वो मेडिटेशन के अलावा अपने कुत्ते के साथ खेलना भी पसंद करती हैं.