"कई बार ऐसा समय आया, जब मुझे लगा कि मैं...", स्टार शूटर मनु भाकर ने किया NDTV Yuva conclave में खुलासा

NDTV Yuva conclave: नवदीप ने कई विषयों पर कार्यक्रम में खुलकर विचार रखे, जिसे सभी ने तालियों के साथ सराहा

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नई दिल्ली:

 NDTV Yuva conclave: पिछले दिनों ओलंपिक में दो पदक जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय स्टार शूटर मनु भाकर (Manu Bhaker) ने NDTV Yuva conclave में खुलासा करते हुए कहा कि करियर में ऐसा भी समय आया, जब उन्हें लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन आखिर में दिन की समाप्ति पर ओलंपिक में पदक जीतना एक खूबसूरत अहसास था. युवा थीम आधारित कार्यक्रम ने भाकर ने पेरिस से पहले टोक्यो ओलंपिक में हुई घटना और इससे पैदा हुई निराशा और इससे उबरने सहति कई पहलुओं पर एकदम खुलकर अपने विचार सामने रखे, जिसे कार्यक्रम में आए युवाओं सहित सभी ने तालियों के साथ सराहा. आप विस्तार से जानिए कि इस स्टार शूटर ने कार्यक्रम में क्या-क्या कहा.

"तीन पदक की उम्मीद थी"

आपने हाल ही में ओलंपिक में दो पदक जीते, ऐसा लगा कि यह आपके लिए जीतना कोई बड़ी बात नहीं थी, इस पर भाकर ने कहा, "हालांकि, मैंने तीन स्पर्धाओं में हिस्सा लिया था, लेकिन दो पदक जीतना निश्चित रूप से एक अच्छा अहसास है. हम तीसरे पदक की भी उम्मीद कर रहे थे, लेकिन मैं चौथे नंबर पर रही. मगर टोक्यो की यात्रा से देखते हुए निश्चित रूप से दो पदक जीतना एक शानदार बात रही. 

"ट्रेनिंग में स्कोर हो रहा था, लेकिन..."

उन्होंने कहा कि टोक्यो के बाद कई ऐसे मौके आए, जब मुझे लगा कि मैं शूटिंग छोड़ना चाहता हूं. मुझे लगा कि अब मैं यहां से ज्यादा  नहीं कर सकती.मुझे लगा कि आखिर मुझे और कितने दिन ऐसा संघर्ष करना पड़ेगा. मैं ट्रेनिंग सेशन मेंं बहुत ही शानदार स्कोर कर रही थी, लेकिन यह यह प्रदर्शन मैचों में पदकों में तब्दील नहीं हो पा रहा था. लेकिन कहते हैं न कि भगवान के घर देर होती है, मगर अंधेर नहीं होती. आखिरकार मैं पदक जीतने में सफल रही. हालांकि, स्वर्ण पदक स्वर्ण पदक ही होता है, लेकिन मैं अपने इस सपने को सच करने के लिए लगातार प्रयास करती रहूंगी. उम्मीद है कि अगली बार गोल्ड भी आएगा.

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"मुझे आखिरी पलों तक खुद पर संदेह था"

भाकर ने कहा, "जब भी कोई खिलाड़ी करियर की शुरुआत करता है, तो उसका सबसे बड़ा लक्ष्य ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करना ही होता है. हर खिलाड़ी चाहता है कि वह पदक जीते और पोडियम पर खड़ा हो. और मेरे मामले में भी कुछ ऐसा ही था. ओलंपिक के दौरान ऐसी बातें मन में आ रही थीं कि टोक्यो में पदक नहीं आया, पता नहीं इस बार कैसा होगा". क्या आपको जीतने को लेकर संदेह था, पर भाकर ने कहा, "निश्चित तौर पर. आखिरी पल तक. मुझे याद है कि आखिरी राउंड में मैं अपने कोच के साथ बैठी थी और मुझे पदक जीतने पर संदेह था, लेकिन मेरे कोच को मुझ पर पूरा भरोसा था कि मैं पदक जीतूंगा. पदक का रंग कैसा होगा, कितने पदक होंगे, यह वह भी नहीं कह रहे थे, लेकिन उन्हें यह विश्वास था कि मैं पदक इस बार जरूर जीतूंगी.

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"तब सारा कॉन्फिडेंस खत्म हो गया था"

टोक्यो में आपकी गन खराब हो गई थी, क्या चल रहा था उस समय दिमाग में, पर भाकर ने कहा कि बहुत लोगों को नहीं पता होगा कि टोक्य ओलंपिक में मैच के दौरान ही मेरी गन खराब हो गई थी. और मुझे इस सही करने का भी समय नहीं मिला था. उस समय बहुत से नकारात्मक विचार ज़हन में आने लगे थे. स्टार शूटर ने कहा, तभी भी मेरी तीन स्पर्धाएं थीं. ऐसे में मेरा सारा कॉन्फिडेंस खत्म हो गया था. लेकिन अच्छी बात यह रही कि टोक्यो की निराशा को पीछे छोड़ते और इससे उबरते हुए मैं पेरिस में पदक जीतने में सफल रही.

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"तब कुछ और करने के बारे में सोचने लगी थी"

आप टोक्यो ओलंपिक के बाद समय खेल छोड़ना चाहती थीं, इस तरह की   कई रिपोर्ट्स हैं, पर भाकर ने कहा, "ईमानदारी से कहूं कि मैंने टोक्यो के बाद मैंने एक ओलंपिक चैनल को इंटरव्यू दिया था. इंटरव्यू के बाद मैंने उनसे कहा कि मैं अगली बार पदक जीतूंगी, लेकिन उसके बाद एक साल हो गया था और मैं खासा संघर्ष कर रही थी. मैं पदक नहीं जीत रही थी. उस समय लगा कि पता नहीं कि आगे पदक जीतूंगी या नहीं. उस समय खुद पर संदेह पैदा हो रहा था. भाकर ने कहा, "ऐसा सभी के साथ हो रहा था. और ऐसा भी समय आया, जब मैं कुछ और करने के बारे में सोचने लगी थी.लेकिन यह ऐसा समय होता है, जब आप थोड़ा धैर्य और ताकत दिखा दो, तो आपको अपने फैसलों पर पश्चाताप नहीं होता.बहरहाल, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो खुद पर गर्व होता है कि मैंने हार नहीं मानी. और उस समय जो मैंने धैर्य दिखाया, उसकी वजह से मैं आज यहां खड़ी हूं."

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