"पेरिस ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीतना मेरे लिए गर्व की बात..", NDTV Yuva Conclave में भारतीय हॉकी टीम के शमशेर सिंह

India’s Olympic Hero Shamsher Singh to NDTV: NDTV के कॉन्क्लेव कार्यक्रम 'युवा' में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) के फॉरवर्ड शमशेर सिंह (Shamsher Singh on NDTV) ने शिरकत की.

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Paris Olympics Shamsher Singh

India's Olympic Hero Shamsher Singh to NDTV: NDTV के कॉन्क्लेव कार्यक्रम 'युवा' में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team)  के फॉरवर्ड शमशेर सिंह (Shamsher Singh on NDTV) ने भी शिरकत की. शमशेर टोक्यो ओलंपिक औरर पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रह चुके हैं. शमशेर ने NDTV के कॉन्क्लेव कार्यक्रम  में अपने सफर को लेकर बात ही. खासकर पेरिस ओलंपिक के सफल को लेकर बात की है. शमशेर सिंह  ने NDTV से बात करते हुए कहा कि "पेरिस ओलंपिक सेमीफाइनल में आखिरी शॉट नहीं होने के बाद हम काफी निराश थे लेकिन ओलंपिक में जब आप खेल  रहे होंते हैं तो आपको ऐसे मौके के लिए तैयार रहना होता है. आप ऐसे समय से बहुत कुछ सीखते हैं ". शमशेर सिंह ने कार्यक्रम में कहा कि, "हम भले ही फाइनल में नहीं पहुंच पाए लेकिन हमारे टीम के खिलाड़ियों ने एक दूसरे का भऱपूर सपोर्ट किया. हम हार के बाद ब्रॉन्ज मेडल मैच के बारे में सोच रहे थे. सभी खिलाड़ी एक दूसरे को साथ लेकर आगे बढ़ें. "

ब्रॉन्ज मेडल मेडल जीतना मेरे लिए सबसे गर्व की बात

शमशेर सिंह ने कार्यक्रम में आगे कहा कि, जब सेमीफाइनल में मेरा आखिरी शॉट गोल के लिए नहीं गया तो मैं काफी निराश था. लेकिन मेरे खिलाड़ियों ने मुझे काफी सपोर्ट किया. हमने इसके बाद एक होकर आगले मैच को लेर फोकस किया. जिसका फायदा हमें ब्रॉन्ज मेडल मैच में मिला. हमने अगले मैच में अच्छा किया और ब्रॉन्ज मेडल हम जीतने में सफल रहे. यह पल मेरे करियकर का सबसे यादगार पल था. "

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इसके अलावा शमशेर सिंह ने खुद के पर्सनालिटी बारे में भी बात की और मैदान पर वो कैसे रहते हैं, इस पर कहा कि, देखिए मैं रियल लाइफ में काफी शांत पर्सन हूं लेकिन मैदान पर जब आप जाते हैं तो आप आपना 100 फीसदी देना चाहते हैं. आपके ऊपर जिम्मेदारी होती है .मैदान के अंदर मुझे पता होता है कि क्या करना है. मैं मैदान के बाहर शांत हूं लेकिन मैदान पर मैं अपने तरफ से मैच जीताने की हरसंभव कोशिश करता हूं, "

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शमशेर ने कार्यक्रम में आगे कहा कि. "यह खेल कम्युनिकेशन की गेम है. जब आपके पास गेंद नहीं होती है तो आपको अपने खिलाड़ियों से बात करनी होती है. रणनीति बनानी होती है. कम्युनिकेशन करके ही आप एक दूसरे की मदद कर पाते हैं."

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घर छोड़कर बाहर आना किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे बड़ा संघर्ष

शमशेर  ने अपने संघर्ष को लेकर भी बात की, भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी ने कहा, "देखिए मुझे लगता है कि सभी स्पोर्ट्स पर्सन की अपनी एक  जर्नी होती है. मेरी भी रही है. मैंने भी जर्नी रही है. मैं अटारी बॉर्डर के पास एक गांव है वहां से मेरा आगाज हुआ था. मेरे परिवार में कोई स्पोर्ट्स खेलने वाला नहीं था. गांव में लोग हॉकी खेलते थे. मैं भाग्यशाली रहा कि मेरे सीनियर गांव में हॉकी खेलते हैं, अपने लोगों को देखकर मैं हॉकी खेलना शुरू किया था. उसके बाद जब मैं छठे क्लास में था तो मैं घर छोड़कर अमृतसर  की एकेडमी  में गया. फिर वहां से जालंधर गया. वहां शूरजीत एकेडमी  हैं. वहां पर रहकर मैंने हॉकी की ट्रेनिंग ली. वहां से पंजाब से कई खिलाड़ी आते हैं. बस मैं यही कहूंगा कि आप जब घर छोड़कर आते हैं तो यही आपके लिए बड़ा संघर्ष होता है .मेरे लिए भी यही था.

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टोक्यों और पेरिस में मेडल जीतना हमारे लिए एतिहासिक था.

शमशेर  ने टोक्यो ओलंपिक और पेरिस ओलंपिक तक की अपनी जर्नी पर बात की और कहा, " 2026 में जूनियर टीम में आया. लेकिन वहां मैं वर्ल्ड कप जूनियर टीम में नहीं आ पाया था, वह भी एक मेरे लिए झटका था. वहां से फिर मैंने तीन साल बाद सीनियर टीम में 2019 में डेब्यू किया. वहां से फिर मेरी जर्नी शुरू हुई. हमने टोक्यों में ब्रॉन्ज जीता, वह मेरे और टीम के सभी खिलाड़ियों के लिए ऐतिहासिक था. फिर अब हमने पेरिस में मेडल जीता...यह भी हमारे लिए काफी स्पेशल था. हमने 52 साल के बाद लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीता था."

बता दें कि शमशेर सिंह भारतीय टीम में फॉरवर्ड पोजिशन पर खेलते हैं.शमशेर का जन्म 29 जुलाई 1997 को अमृतसर जिले के अटारी के एक गांव में हुआ था. 

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