भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी शैली ‘ध्रुपद' को लेकर रागगीरी के सालाना कैलेंडर का विमोचन पद्मश्री से सम्मानित ध्रुपद गायक उस्ताद वासिफुद्दीन डागर ने किया. इस ऑनलाइन कार्यक्रम में पंडित उदय भवालकर और उस्ताद बहाऊद्दीन डागर भी शामिल हुए. इस ख़ास कैलेंडर में ध्रुपद गायकी के बारे में विस्तार से जानकारी के साथ साथ कई महान कलाकारों को शामिल किया गया है. इसमें स्वामी हरिदास, मियाँ तानसेन, बैजू बावरा से लेकर मौजूदा दौर के सभी बड़े ध्रुपद कलाकारों को जगह दी गई है.
ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत के अमृत की तरह है. 2022 भारत की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का भी वर्ष है. सुर, साज, स्वतंत्रता औरसमर्पण की इस संधि को शिव कहते हैं. इस साल का रागगीरी कैलेंडर भारत की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को समर्पित है. इस मौके पर पद्मश्री उस्ताद वासिफुद्दीन डागर ने कहा कि इस कैलेंडर के जरिए आने वाली पीढ़ी को इस महान गायन शैली के बारे में पता चलेगा. उस्ताद बहाऊद्दीन डागर और पंडित उदय भवालकर ने भी इसे अपनी संस्कृति और आने वाली पीढ़ी के लिए सराहनीय कैलेंडर बताया.
ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीनतम शैली है. जो ‘ध्रुव' और ‘पद' को मिलाकर बनी है. ध्रुपद में देवी-देवता और संतों की स्तुतियां गाई जाती हैं. ध्रुपद की उत्पत्ति सामवेद से है. सामवेद संगीत के लिए समर्पित वेद है. ध्रुपद का आधार ओम है. ध्रुपद में सांस के नियंत्रण को लेकर काफी जोर दिया जाता है. ध्रुपद की मूलत: चार शैलियां होती हैं- नौहार बानी, खंडार बानी, गौहार बानी और डागरबानी. ये लगातार सातवां साल है जब रागगीरी ने शास्त्रीय संगीत पर आधारित कैलेंडर प्रकाशित किया है.