मुंबई में सोमवार और मंगलवार की दरम्यानी रात भारी बारिश के बीच एक विमान मुख्य रनवे से फिसल गया और इस घटना ने खूब सुर्खियां बटोरी. जहां विमान में सवार यात्री और चालक दल के सदस्य सही सलामत रहे, वहीं यात्रियों का एक और समूह जो लोकल ट्रेनों से सफर करता है , उस पूरी रात फंसे रहे लेकिन उनके इस बुरे अनुभव के बारे में लगभग नहीं के बराबर बात हुई. समाचार एजेंसी पीटीआई के दो पत्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से घर जाने के लिए रवाना हुए जो दिन भर बारिश संबंधी खबरें करने के बाद इत्मिनान से सफर करने की उम्मीद कर रहे थे. इन्होंने मध्य रेलवे लाइन पर खोपोली जाने वाली ट्रेन ली. रात करीब 10 बजकर 28 मिनट पर चलने वाली ट्रेन 10 मिनट की देरी से चली लेकिन बाद में कुर्ला पहुंचने तक वह सही से चली. कुर्ला उनके गंतव्य स्टेशन ठाणे से कुछ ही दूरी पर था लेकिन तेज बारिश से पटरियों पर पानी भरने लगा. करीब सवा 11 बजे यह कुर्ला और विद्याविहार के बीच एक स्थान पर रुकी. ट्रेन की गति इस रास्ते पर धीमी होती गई लेकिन उन्होंने इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं. उन्होंने सोचा नहीं था कि उनका सफर खत्म होने जा रहा है या यूं कहें कि अगले दो घंटे के लिए रफ्तार थम गई.
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ट्रेन के पीए सिस्टम पर कोई घोषणा नहीं हुई और मध्य रेलवे के सोशल मीडिया हैंडलों पर भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. दोस्तों एवं साथी पत्रकारों के व्हाट्सएप संदेश तथा ट्विटर और फेसबुक जैसे अन्य समाचार स्रोतों से अपडेट आते रहे. सबसे महत्त्वपूर्ण खबर थी कि वे अकेले नहीं थे-हमारे पीछे और आगे ट्रेनें एक के पीछे एक खड़ी थीं. इन रुकी हुई ट्रेनों में फंसे हजारों यात्री हालांकि उन 167 यात्रियों की तुलना में कम खुशकिस्मत थे जो उस विमान में सवार थे जो रनवे से फिसल गया था. कोई एयरहोस्टेस और स्टूअर्ड नहीं था जो उन्हें खाना, पानी लाकर देता और यात्रा कब शुरू होगी यह बताता.
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गनीमत थी कि ट्रेन कंपार्टमेंट के भीतर की लाइटें जली हुई थीं. मुंबई जाने वाले विमानों का मार्ग परिवर्तित किए जाने की खबरें मिनट दर मिनट मिल रहीं थीं लेकिन रेलवे की ओर से कोई खबर नहीं आ रही थी. ट्रेनों का फंस जाना मुंबईकरों के लिए कोई नयी बात नहीं है और ऐसी स्थिति में सामान्य तौर पर पटरियों पर उतर कर पास के स्टेशन जाना पड़ता है. इन पत्रकारों समेत कई अन्य ने इस बार भी वही किया और स्टेशन पहुंच कर फिर कार वालों से मदद लेकर आगे का सफर तय किया.
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