Monday Blues: वीकेंड पास आते ही लोगों की खुशी भी बढ़ने लगती है, क्योंकि ऑफिस के वर्क प्रेशर से निकलकर दो दिन वो आराम करते हैं और दोस्तों के साथ चिल करने का टाइम होता है. हालांकि संडे खत्म होते-होते उनके दिमाग में मंडे के खयाल आने शुरू हो जाते हैं, मंडे को ऑफिस जाने का मन नहीं होता है और इसे लेकर पहले से ही लोग मायूस होने लगते हैं. मंडे को ऑफिस के अलावा जिम जाने में भी तकलीफ होती है. आइए जानते हैं कि आखिर ये मंडे ब्लूज क्या होते हैं और क्यों लोग इस दिन ऑफिस जाने से डरते हैं.
क्या होते हैं मंडे ब्लूज
मंडे ब्लूज शब्द का मतलब सोमवार के दिन होने वाली उदासी और काम के प्रति नीरसता से है. इसमें कुछ भी करने का मन नहीं करता है, लेकिन मजबूरी में काम शुरू करना पड़ता है. वीक ऑफ के बाद लोगों को काम पर जाने से इसलिए डर लगता है, क्योंकि ये हफ्ते की शुरुआत होती है. सोमवार को लोग मेंटली काम के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं. चाहे दफ्तर में किसी भी तरह का तनाव न हो या फिर माहौल कितना भी अच्छा हो, मंडे ब्लूज लगभग सभी पर हावी रहते हैं.
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किन लोगों पर होता है ज्यादा असर?
अब बात करते हैं किन लोगों पर मंडे ब्लूज का ज्यादा असर होता है. मंडे ब्लूज का असर दो वीक ऑफ वाले लोगों पर ज्यादा देखा जाता है. दो दिन तक आराम करने के बाद दोबारा ऑफिस के लिए तैयार होना और जाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा जिन लोगों के बॉस काफी टॉक्सिक होते हैं या फिर माहौल अच्छा नहीं होता, उनके लिए इससे निपटना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे लोग संडे की शाम से ही मंडे के लिए परेशान होने लगते हैं.
जिम जाने से आनाकानी करने वाले लोगों का भी यही तर्क होता है, दो दिन आराम करने के बाद वो अपने शरीर को जिम तक ले जाने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं. हालांकि फिटनेस फ्रीक लोगों के साथ ऐसा नहीं होता है, क्योंकि वो रोजाना जिम जाते हैं. यानी रूटीन टूट जाने का असर मंडे को नजर आता है और फिर वापस लोग काम और बाकी चीजों में दिमाग लगाने लगते हैं. इसके बाद पूरे हफ्ते, यानी अगले संडे तक ऐसी चीजें नहीं होती हैं.