माता-पिता हमेशा यही चाहते हैं कि वे अपनी संतान को एक काबिल और बेहतर इंसान बना सकें. इसके लिये वे हर प्रकार की कोशिश करते हैं. हर वक्त प्रयास तो यही होता है कि बच्चे की परवरिश बेहतर ढंग से कर सकें. लेकिन सवाल ये है कि अच्छी पैरेंटिंग आखिर है क्या? अच्छी पैरेंटिंग का अर्थ परफेक्शन से समझ लिया जाता है. असल में परफेक्ट तो कोई नहीं होता. न ही पैरेंट्स परफेक्ट होते हैं और न ही कोई बच्चा. ऐसे में पैरेंट्स के रूप में खुद को बेहतर बनाने के लिए यहां कुछ टिप्स साझा किए जा रहे हैं, जिनसे बच्चे की बेहतर परवरिश में मदद मिल सकती है.
माता-पिता के लिए पैरेंटिंग टिप्स | Parenting Tips for Parents
सभी पैरेंट्स को अपने बच्चों से बेहद प्यार होता है, लेकिन कई बार पैरेंट्स अपना प्यार प्रदर्शित नहीं कर पाते हैं. खासकर पिता कई बार अपने बच्चे के प्रति प्यार को दिल ही में छिपा लेते हैं. यहां किसी तरह के दिखावे की बात नहीं की जा रही है, लेकिन जरूरी है कि आप अपने दिल की बात को शब्दों से, हाव-भाव से या किसी भी अन्य तरीके से जाहिर जरूर करें.
जीवन में परेशानियां भला किसे नहीं आतीं, लेकिन अच्छी पैरेंटिंग का मतलब ही ये है कि खुद भी सकारात्मक रहें और बच्चों को भी पॉजिटिव तरीके से सोचना और देखना सिखाया जाए. किसी भी परेशानी को लेकर रोने-कोसने के बजाय उसे सकारात्मक स्वरूप में लेकर उसे हल करना सिखाएं. ये सकारात्मकता आपकी संतान को जीवन की हर चुनौती से लड़ने की ताकत देगी.
बच्चे को किसी भी बात का पाठ पढ़ाने के दौरान कोशिश करें कि खुद उस तरह का आचरण करें. बच्चे अक्सर अपने पैरेंट्स को फॉलो करते हैं. अगर आपका आचरण बेहतर होगा तो बच्चों के लिए भी उसे अपनाना आसान रहेगा.
बच्चों को भौतिक सुख-सुविधा की वस्तुएं लेकर देने से भी ज्यादा जरूरी है कि आप उनकी बातों, समस्याओं और भावनाओं को समझें. ये समझने के लिए जरूरी हैं कि उनसे बात करें. हर विषय और मसले पर उन्हें अपनी राय प्रकट करने का मौका दें.
अगर आप चाहते हैं कि आपकी संतान अपने स्वास्थ्य की अहमियत समझे तो केवल लेक्चर देने से कुछ नहीं होगा. बेहतर होगा कि आप अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दें. आप अपनी सेहत का ख्याल रखेंगे तो खुद तो स्वस्थ रहेंगे ही, बल्कि आपके बच्चे में भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जागृत होगी.
भारतीय परिवेश में गलती करने पर बच्चे की पिटाई करना या सजा देना काफी आम बात है. लेकिन, सजा देने के बजाय बच्चे को बातचीत के जरिए उसकी गलती का अहसास करा देना चाहिए ताकि वह दोबारा ऐसा न करे, ये बात ज्यादा महत्वपूर्ण है.