Night Shift Sideeffects: जिंदगी गुजारने के लिए कामकाज जरूरी है. आप बिजनेस करते हैं या जॉब, काम के घंटे पूरे करने के बाद आपको एक सही और पूरी नींद जरूरी है. लेकिन नए दौर में नाइट शिफ्ट (night shift) का दबाव काफी बढ़ गया है. कई ऑफिस ऐसे हैं जहां रात को भी काम होता है यानी लोगों को नाइट शिफ्ट में भी काम करना होता है. देखा जाए तो विदेशी और मल्टीनेशनल कंपनियों में कामकाज का ये तरीका काफी पॉपुलर हो चुका है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ये सेहत (Healtg) के नजरिए से काफी नुकसान देय हो सकता है. हाल ही में कराई गई एक स्टडी (Health Study) में कहा गया है कि केवल तीन दिन की नाइट शिफ्ट करने से ही शरीर को कई गंभीर बीमारियों का रिस्क हो सकता है.
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वाशिंगटन की स्टेट यूनिवर्सिटी डॉक्टरों ने इस संबंध में एक स्टडी की जिसे जर्नल ऑफ प्रोटीन रिसर्च में पब्लिश किया गया है. इस स्टडी में कहा गया है कि नाइट शिफ्ट में काम करने लोगों के ब्लड शुगर से रिलेटेड प्रोटीन की लय असंतुलित हो जाती है. इसमें कहा गया है कि नाइट शिफ्ट में काम करने से दिमाग की बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ा जाती है जिसके दिमाग और शरीर अव्यवस्थित हो जाते हैं. ये ना केवल तनाव का कारण बनता है बल्कि डायबिटीज और वेट गेन जैसी बीमारियों का भी रिस्क बढ़ जाता है.
नाइट शिफ्ट में काम करने से डायबिटीज और हार्ट डिजीज का खतरा
स्टेट यूनिवर्सिटी में इस रिसर्च को करने वाले डॉक्टर वान डोंगेन ने कहा कि दिमाग की बायोलॉजिकल क्लॉक ही दिमाग को दिन और रात का फर्क बताती है. ये फर्क महसूस करके ही शरीर काम और आराम के पलों में एक्टिव होता है. अगर ये क्लॉक गलत हो जाए तो दिमाग तनाव का शिकार होने लगता है और इसका शरीर पर भी असर पड़ता है.
इनका ये भी कहना है कि रात की शिफ्ट करने से डायबिटीज , मोटापा और हाई बीपी का भी खतरा बढ़ जाता है. इसके लिए ब्लड टेस्ट की मदद से इम्यून सेल्स की जांच की गई. नाइट शिफ्ट में इम्यून सेल्स तो सही दिखे लेकिन दूसरे सेल्स के प्रोटीन में बदलाव देखे गए. नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों के शरीर में इंसुलिन प्रोडक्शन और इंसुलिन सेंसिटिविटी में कोई कनेक्टिविटी नहीं देखने को मिली. इससे पहले कई स्टडी ये भी कह चुकी है कि नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में हाई बीपी और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है.
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