New rules of Parenting: बच्चे नहीं तो क्या हम शरारत करेंगे, बच्चा जो पसंद करें, जितना पसंद करें, खाने देना चाहिए, पढ़ने वाले बच्चे कहीं पढ़ लेते हैं, स्कूल से क्या होता है, ये कुछ ऐसे जुमले हैं जो अक्सर सुनाई देते थे. कुछ समय पहले तक इन्ही को पैरेटिंग ( Parenting) का नियम माना जाता है लेकिन आज उन सभी बातों को सिरे से खारिज किया जा चुका है. बच्चों के सही विकास के लिए पैरेंटिंग के नियमों में काफी बदलाव (Change in Parenting) आया है. अब बच्चों की परवरिश के अब नए तौर तरीकों (New rules of Parenting) को अपनाया जाने लगा है, आइए जानते हैं पैरेंटिंग के नए नियम क्या हैं.
एक सीमा तक प्यार दुलार ( No limitless love)
बच्चों को अत्यधिक लाड़ दुलार से बिगाड़ देना कल की बात हो चुकी है. अब प्यार दिखाने की सीमा तय करने पर जोर दिया जा रहा है. उदाहरण के लिए पहले बच्चे को चोट लग जाने पर मम्मी पापा का चोट लगाने वाली चीज को पीटकर बच्चे का बहलाना आम था, लेकिन नए पैरेंट जानते हैं कुछ नया सीखते समय बच्चों को छोटी मोटी चोट लग जाना आम है. चोट लगाने वाली चीज को पीटकर बच्चों में बदला लेने की भावना विकसित करना ठीक नहीं है.
नो ओवर इटिंग ( No over eating)
पहले बच्चों को ज्यादा से ज्यादा खिलाने पिलाने पर काफी जोर दिया जाता था. माना जाता था कि बेहतर फिजिकल डेवलपमेंट के लिए मन भरने तक खाना ही सही है, लेकिन इस सोच में अब बदलाव आ गया है. पैरेंट पौष्टिक फूड के बारे में अच्छे से जानते हैं और ओवर इटिंग के कारण मोटापे की समस्या से होने वाली परेशानियों से बच्चों को बचा कर रखना ही ठीक समझते हैं और बच्चों को बैलेंस डाइट देना ही पसंद करते हैं.
जिज्ञासा अच्छी ( Asking Question is not good)
कल तक बड़ों से सवाल पूछना अच्छा नहीं माना जाता था. बच्चों से अपेक्षा होती थी कि वे बड़ों की हर बात सिर झुका कर मान लें. अब पैरेंट बच्चों की क्यूरोसिटी को अच्छा मानते हैं और उन्हें सवाल पूछने के लिए प्रेरित करते हैं. इससे बच्चों में हर चीज को लॉजिकली समझने की समझ विकसित होती है.
एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी को महत्व (Importance of extracurricular activities)
पहले पढ़ाई को काफी महत्व दिया जाता था और दूसरी गतिविधियों को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी. आज पैरेंट समझते हैं कि अच्छे व्यक्तित्व के लिए एक्स्ट्रा एक्टिविटीज जरूरी हैं. वे बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ डांस, म्यूजिक और खेल में रूचि लेने के लिए प्रेरित करते हैं.
बच्चों को भी चाहिए पर्सनल स्पेस ( Need of personal space)
एक समय था जब पैरेंट बच्चों की खासकर टीन एजर्स की एक्टिविटी पर कड़ी नजर रखते थे, लेकिन अब सोच में बदलाव आया हैं… उन्हें पता है कि बच्चों को पर्सनल स्पेस की जरूरत होती है.
जेंडर वाले भेदभाव ठीक नहीं ( No gender discrimination)
कुछ समय पहले तक बेटियों की तुलना में बेटों को अहमियत देने का प्रचलन घर घर में था, लेकिन अब पैरेंट ऐसा भेदभाव नहीं करते हैं. बेटियों की परवरिश में दकियानूसी सोच और धारणाएं बदल रही हैं.
प्रीचिंग है बेकार (Preaching is useless)
पैरेंट अब समझ चुके हैं कि बच्चों की हर छोटी बड़ी भूल पर उन्हें लंबे लंबे उपदेश देने का कोई फायदा नहीं होता है. बच्चों में अच्छी आदतें विकसित करने के लिए पहले उन्हें खुद अपनाना जरूरी है.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.
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