Difference Between Garba And Dandiya : नवरात्रि आते ही चारों तरफ रौनक छा जाती है. मंदिरों से लेकर घर-घर तक माता की भक्ति का माहौल होता है. लोग दिन में उपवास रखते हैं और रात को गरबा-डांडिया में झूमते हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे घाघरा-चोली पहनती हैं. पुरुष कुर्ता-पायजामा या केडिया पहनकर पारंपरिक अंदाज़ में नज़र आते हैं. ढोल, नगाड़े और डीजे की आवाज़ से पूरा माहौल उत्साह से भर जाता है. लेकिन अक्सर ये सवाल उठता है कि आखिर गरबा और डांडिया में क्या फर्क है. दोनों नृत्य दिखने में मिलते-जुलते हैं लेकिन इनके मायने अलग हैं.
गरबा क्या है (What Is Garba)
गरबा गुजरात की धरती से निकला हुआ पारंपरिक नृत्य है. इसे गोल घेरे में खेला जाता है और बीच में बड़ी दीपक या माता दुर्गा की प्रतिमा रखी जाती है. लोग हाथ और पैरों से ताल मिलाकर धीरे-धीरे घूमते हैं और बीच-बीच में ताली बजाते हैं. ये नृत्य सिर्फ एक मनोरंजन नहीं बल्कि पूजा का हिस्सा है. गरबा को ज़्यादातर आरती से पहले खेला जाता है. इसका मतलब है कि ये डांस माता को समर्पित है और इसमें भक्ति का भाव सबसे ऊपर होता है.
डांडिया क्या है (What Is Dandiya)
डांडिया को लोग डांडिया रास भी कहते हैं. इसमें रंग-बिरंगी लकड़ी की स्टिक्स यानी डांडिया का इस्तेमाल होता है. लोग जोड़ी या ग्रुप बनाकर इन स्टिक्स को आपस में बजाते हुए नाचते हैं. डांडिया का मज़ा तब और बढ़ जाता है जब डीजे पर तेज धुन बजती है और लोग ताल से ताल मिलाते हैं. डांडिया ज़्यादातर आरती के बाद खेला जाता है और इसका मकसद होता है साथ मिलकर मस्ती करना और उत्सव का आनंद लेना. डांडिया के गानों में ज़्यादातर श्रीकृष्ण और राधा की लीलाएं गाई जाती हैं जिससे माहौल और भी मनोरंजक बन जाता है.
गरबा और डांडिया में फर्क (Difference Between Garba And Dandiya)
गरबा और डांडिया दोनों ही गुजरात से जुड़े हैं लेकिन इनके बीच कई अंतर हैं. गरबा भक्ति गीतों और मंत्रों पर खेला जाता है जबकि डांडिया गानों और धुनों पर. गरबा आरती से पहले होता है और डांडिया आरती के बाद. गरबा में ताली और हाथ-पैर की ताल होती है जबकि डांडिया में लकड़ी की स्टिक्स टकराई जाती हैं. गरबा माँ दुर्गा की भक्ति को दर्शाता है जबकि डांडिया श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि दोनों नृत्यों का मज़ा अलग-अलग तरह से लिया जाता है.
नवरात्रि का मजा
नवरात्रि सिर्फ पूजा का पर्व नहीं बल्कि मिलकर खुशियां मनाने का भी मौका है. दिन में लोग उपवास और पूजा करते हैं और रात को गरबा और डांडिया खेलकर थकान मिटाते हैं. गरबा भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है जबकि डांडिया मस्ती और उत्साह का. यही वजह है कि दोनों मिलकर नवरात्रि की रातों को खास और यादगार बना देते हैं. जब लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर ढोल की थाप पर थिरकते हैं तो हर कोई इस जश्न का हिस्सा बनना चाहता है.