दही इन 7 लोगों को खाने से करना चाहिए परहेज, वरना फायदे की बजाय होगा नुकसान

दही खाना यूं तो हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें प्रोबायोटिक पाए जाते हैं जो सेहत को कई तरह से फायदा पहुंचाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें दही का सेवन नहीं करना चाहिए.

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दही इस कंडिशन में कभी नहीं खानी चाहिए.

Who should not eat curd: दूध, दही, पनीर या अन्य डेयरी प्रोडक्ट (Dairy Product) कैल्शियम (Calcium) का बेहतरीन सोर्स होते हैं और इसका सेवन हमें करना चाहिए. इसमें से दही एक ऐसा इनग्रेडिएंट है जिसे हम ऐसे ही खा सकते हैं, सब्जी, रायता, करी में इस्तेमाल कर सकते हैं, इसकी लस्सी बना सकते हैं और कई तरह की डिशेज में इस्तेमाल कर सकते है. दही खाना सेहत के लिहाज से भी बहुत फायदेमंद माना जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें दही (Dahi) का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि किन लोगों के लिए दही स्लो प्वाइजन का काम करता है और इन्हें दही खाने से बचना चाहिए.

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लैक्टोज इंटॉलरेंस वाले लोग
दही में लैक्टोज होता है और लैक्टोज इंटॉलरेंस वाले लोगों को दही सहित डेयरी उत्पादों का सेवन करने के बाद पेट फूलना, दस्त या पेट में ऐंठन हो सकती है.

श्वसन संबंधी समस्याओं वाले लोग (जैसे, अस्थमा, साइनसाइटिस)
दही बलगम के प्रोडक्शन को बढ़ा सकता है, जो अस्थमा, साइनसाइटिस या बार-बार होने वाली सर्दी और खांसी जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है.

गठिया से पीड़ित लोग
आयुर्वेदिक मान्यताओं के अनुसार, दही "कफ" और "वात" दोषों को बढ़ा सकता है, जिससे गठिया से पीड़ित लोगों में जोड़ों के दर्द और जकड़न बढ़ सकती है.

कमजोर पाचन या अपच वाले लोग
कमजोर पाचन तंत्र वाले लोगों के लिए दही पचाने में भारी हो सकता है, खासकर अगर रात में खाया जाए, जिससे पेट फूलना या बेचैनी हो सकती है.

मधुमेह रोगी (जब मीठा या फ्लेवर्ड दही खाया जाता है)
फ्लेवर्ड या मीठे दही में अक्सर एक्स्ट्रा चीनी होती है, जो ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा सकती है और डायबिटीज के मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकती है.

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एसिडिटी
दही के अम्लीय गुण गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों में एसिड रिफ्लक्स या अपच को खराब कर सकती है.

कफ की समस्या वाले लोग
आयुर्वेद के अनुसार, दही को शरीर में "कफ" बढ़ाने वाला माना जाता है, जिससे पहले से ही कफ से परेशान व्यक्तियों में सुस्ती या असंतुलन हो सकता है. ये टॉन्सिल्स की स्थिति को भी गंभीर कर सकता है.

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