Lal Salaam In Communism: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में एक बार फिर लेफ्ट छात्र संगठनों ने अपना परचम लहराया है. जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में लेफ्ट की जीत की खबर सामने आते ही लोग इसे लाल सलाम की जीत कहने लगे. सोशल मीडिया पर भी यही टैगलाइन थी कि जेएनयू में एक बार फिर लाल सलाम... आमतौर पर लाल सलाम को वामपंथ से जोड़कर देखा जाता है. ऐसे में आज हम आपको इसका पूरा इतिहास बताने जा रहे हैं कि आखिर ये सलाम लाल कैसे हो गया और कब इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ.
वामपंथी लाल सलाम क्यों बोलते हैं?
वामपंथ से जुड़े लोग अक्सर एक दूसरे से मिलने के दौरान लाल सलाम बोलते हैं. यही वजह है कि उन्हें लाल सलाम के साथ जोड़ा जाता है. वामपंथ विचारधारा से जुड़े हुए लोगों को कॉमरेड या फिर लाल सलाम कहा जाता है, इनके झंडे का रंग भी लाल ही होता है. वामपंथ में लाल रंग का मतलब क्रांति से होता है. इसीलिए क्रांति को सलाम करने या जिंदा रखने की बात करने को ही लाल सलाम कहा जाता है. यानी ये इस विचारधारा के लिए एक क्रांतिकारी अभिवादन है. लाल सलाम बोलते हुए आमतौर पर हवा में हाथ उठाया जाता है.
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कहां से आया लाल झंडा?
दुनिया में एक दौर ऐसा था, जब वामपंथ अपने चरम पर था. इसमें लाल झंडे को बगावत या क्रांति का प्रतीक बताया गया. यही वजह है कि दुनियाभर में जब भी वामपंथ विचारधारा का जिक्र होता है तो इस लाल रंग के झंडे को उठाया जाता है. वामपंथ की विचारधारा को हर इंसान को अपनी क्षमता से काम करना और जरूरत के हिसाब से बराबरी की चीजें मिलने की लड़ाई के तौर पर समझा जा सकता है. कार्ल मार्क्स, माओ जेडोंग और लेनिन जैसे नेताओं को इस विचारधारा का जनक कहा जाता है.
लाल सलाम कहां से आया?
फादर ऑफ मॉर्डन चाइना और वामपंथ विचारधारा के बड़े नेता माओ जेडोंग ने अपना एक संगठन बनाया था, जिसका नाम रेड शर्ट ग्रुप था. रेड शर्ट मूमवेंट इतना बड़ा हो गया था कि उसने पूरे न को बदलकर रख दिया. यहीं से भारत और बाकी जगहों पर लाल क्रांति या लाल सलाम जैसे शब्दों को लिया गया. इसीलिए नक्सली अपने इलाके को रेड कॉरिडोर भी कहते हैं.














