First Engineering College: जब भी करियर की बात आती है तो डॉक्टरी के बाद इंजीनियरिंग हमेशा से लोगों की पहली पसंद रही है. आज भारत में हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज मौजूद हैं, जहां अलग-अलग तरह की डिग्रियां दी जाती हैं और हर साल लाखों छात्र यहां से पढ़ाई करके अपना भविष्य बनाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज कहां और कब शुरू हुआ था? इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है क्योंकि शुरुआत में इस कॉलेज में क्लासरूम नहीं थे और पहले बैच के स्टूडेंट्स तंबू में बैठकर पढ़ाई करते थे. चलिए जानते हैं भारत के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज (College of Engineering) की खास कहानी.
कहां खुला था देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज?
देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज आज़ादी से करीब सौ साल पहले अंग्रेज शासन के दौरान शुरू हुआ था. उस समय सड़कों, पुलों और नहरों का निर्माण करने के लिए ट्रेनी इंजीनियर्स की जरूरत थी. इसी वजह से 1847 में उत्तराखंड जो तब उत्तर प्रदेश था में रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज की नींव रखी गई.
बाद में इस कॉलेज का नाम बदलकर रुड़की विश्वविद्यालय कर दिया गया और 1949 में इसे भारत का पहला मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेज माना गया. फिर 2001 में इसका दर्जा बदलकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (IIT Roorkee)कर दिया गया.
तंबू में लगी थी पहली क्लास
आईआईटी रुड़की की शुरुआत बेहद दिलचस्प रही. 1846 में कॉलेज बनने से पहले सहारनपुर में इंजीनियरिंग की पहली क्लास तंबू में लगाई गई. पहले बैच में सिर्फ 20 छात्र थे जिन्हें ब्रिटिश शिक्षकों ने सिविल इंजीनियरिंग सिखाई.
गंगा नहर से जुड़ी कहानी
उस दौर में गंगा नहर का निर्माण हो रहा था. इसकी जिम्मेदारी कर्नल कॉटले को मिली थी. लेकिन उनके पास प्रशिक्षित सिविल इंजीनियर नहीं थे. ऐसे में उन्होंने सुझाव दिया कि भारत में ही युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे देश की भाषा, मौसम और जमीन को समझकर बेहतर काम कर सकें. इसी सुझाव के बाद रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज खोला गया.
दुनिया के टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज में शुमार
आज आईआईटी रुड़की सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में गिनी जाती है. इसकी शुरुआत तंबू से हुई थी और समय के साथ यह पढ़ाई और रिसर्च का बड़ा केंद्र बन गया है.
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