अगर आप भी ये सोचते हैं कि आप इतने समझदार तो हैं कि किसी भी ठगी के झांसे में नहीं आ सकते हैं तो आप गलत हैं. ऑनलाइन फ्रॉड करने वालों ने कई ऐसे तरीके इजाद कर लिए हैं, जिनके झांसे में कोई भी आ सकता है. डिजिटल अरेस्ट के साथ ही एक ऐसा फ्रॉड भी पिछले कुछ सालों से चल रहा है, जिसे कोई भी सच समझ सकता है और आसानी से ठगों के जाल में फंस सकता है. ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जब इस तरीके का इस्तेमाल कर ठगों ने लोगों को लाखों रुपये का चूना लगा दिया. आइए जानते हैं कि ये फ्रॉड क्या है और कैसे आप इससे बच सकते हैं.
जवानों के नाम पर ठगी
दरअसल डिजिटल के इस युग में आज लगभग हर कोई ये जानता है कि किसी के साथ भी अपना फोन नंबर या फिर आधार नंबर शेयर नहीं करना है. लोगों को इस बात की भी जानकारी होती है कि किसी भी लिंक पर क्लिक नहीं करना होता है, लेकिन जब बात सेना या फिर दूसरे सुरक्षाबलों की हो तो लोग ज्यादा सोचते नहीं हैं. इसी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं, जो खुद को CISF का जवान बताकर लोगों का भरोसा जीतते हैं और फिर कुछ ही मिनटों में उनके खाते को साफ कर देते हैं. इसे लेकर हमने सीआईएसएफ के पीआरओ से भी बात की, लेकिन पहले जान लेते हैं कि ये ठगी आखिर होती कैसे है.
क्या है ठगी का तरीका?
सीआईएसएफ जवानों के नाम पर होने वाली इस ठगी का एक नहीं बल्कि कई तरीके हैं. कुछ लोगों को किरायेदार बनकर मैसेज किया जाता है, वहीं कुछ लोगों को सामान बेचने का झांसा देकर फंसाने की कोशिश होती है. ठगी की खास बात ये है कि इस दौरान शख्स खुद को सीआईएसएफ में इंस्पेक्टर बताता है और वर्दी में अपना आईडी कार्ड भी शेयर करता है.
पहला तरीका: कई लोग ऑनलाइन अपने घर या फ्लैट को किराये पर चढ़ाने के लिए पोस्ट करते हैं, यहीं से ये ठग उनका नंबर लेते हैं और फिर उन्हें बताया जाता है कि वो CISF में बतौर सब इंस्पेक्टर या जवान तैनात है, उसका ट्रांसफर हो रहा है और उसे किराये पर घर की जरूरत है. इस बातचीत के दौरान वो एक फर्जी CISF आईडी कार्ड भी शेयर करता है, जिसमें उसकी फोटो और नाम लिखा होता है. इसके अलावा वो इसी नाम और फोटो का आधार कार्ड और पैन कार्ड भी शेयर करता है. यहीं से भरोसा जीतने की शुरुआत होती है और लोग झांसे में आ जाते हैं. इसके बाद वो किराया ट्रांसफर करने के बहाने बैंक डीटेल और बाकी जानकारी लेता है. कुछ ही देर बाद घर किराये पर देने वाले के खाते से पैसे कटने शुरू हो जाते हैं.
दूसरा तरीका: अनिकेत विजय कलभूर नाम से एक फेक आईडी बनाकर फ्रॉड फेसबुक और ओएलएक्स जैसे प्लैटफॉर्म्स पर सामान बेचने का विज्ञापन पोस्ट करता है. इस पोस्ट में बताया गया होता है कि वो सीआईएसएफ में काम करता है और उसका शहर से ट्रांसफर हो रहा है. ऐसे में वो अपने घर का सामान बेचना चाहता है. लोग CISF का आईडी कार्ड देखकर फिर झांसे में आ जाते हैं और फिर उनके साथ फ्रॉड हो जाता है.
तीसरा तरीका: CISF जवान की फर्जी आईडी बनाकर ये लोग कार या बाइक बेचने का पोस्ट भी डालते हैं, जब भी कोई इनसे संपर्क करता है तो वो पहले अपने तरीके से उसका भरोसा जीतते हैं और फिर कहते हैं कि उन्हें जल्दी निकलना है, ऐसे में पैसे भेजकर बाइक या कार कुरियर करवा लीजिए. ऑफर ऐसा होता है कि कोई भी लालच में आ जाता है और फिर पैसे भेजकर उसे पता चलता है कि उसके साथ ठगी हो चुकी है.
CISF के नाम से ही क्यों होती है ठगी?
इस पूरे मामले को लेकर CISF के पीआरओ सरोज भूपेंद्र ने एनडीटीवी से बात की. जिसमें उन्होंने बताया कि ऐसे फर्जी विज्ञापनों या फिर कॉल-मैसेज से सावधान रहने की जरूरत है. जो भी आपको अपना सर्विस आईडी कार्ड शेयर करता है, उस पर तुरंत भरोसा न करें. ऐसे लोगों के झांसे में आने से बचना चाहिए और पहले पूरी जानकारी जुटा लेनी चाहिए. बिना मुलाकात के फोन या मैसेज पर कोई भी लेनदेन नहीं करना चाहिए.
CISF के पीआरओ ने ये भी बताया कि इस फोर्स के नाम से ही क्यों ज्यादा ठगी होती है. दरअसल CISF के जवानों की तैनाती लगभग हर शहर में होती है, ऐसे में जब वो ट्रांसफर होने या फिर पोस्टिंग की बात करते हैं तो यकीन करना आसान हो जाता है. जवानों के ट्रांसफर एक शहर से दूसरे शहर में होते रहते हैं, इसीलिए साइबर अपराधी इसका फायदा उठाकर लोगों को चूना लगा रहे हैं.














