क्या हत्या के आरोपी भी जेल से लड़ सकते हैं चुनाव? जानें इसे लेकर क्या है नियम

Contest Election From Jail: आपने कई चुनावों में ऐसे उम्मीदवारों को जरूर देखा होगा, जो जेल से नामांकन दाखिल करने आते हैं और चुनाव लड़ते हैं. इसे लेकर नियम बनाए गए हैं.

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जेल से चुनाव कैसे लड़ते हैं लोग

Contest Election From Jail: बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया जारी है, वो तमाम उम्मीदवार अपना नामांकन दाखिल कर रहे हैं, जिनका नाम उम्मीदवारों की लिस्ट में शामिल है. इसी बीच RJD विधायक रीतलाल यादव ने जेल से निकलकर नामांकन दाखिल किया. यानी जेल से ही वो चुनाव लड़ रहे हैं. ये कोई नया मामला नहीं है, इससे पहले तमाम नेताओं ने जेल में रहकर नामांकन दाखिल किया है और चुनाव लड़ा है. ऐसा होते देख कई लोगों के मन में ये भी सवाल रहता है कि जेल में बंद लोग आखिर कैसे चुनाव लड़ सकते हैं और क्या कोई हत्या का आरोपी भी ऐस कर सकता है? आज हम आपको जेल से चुनाव लड़ने के ऐसे ही नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं. 

क्या है जेल से चुनाव लड़ने का नियम

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 RPA, 1951 के तहत भारत में चुनाव करवाए जाते हैं. इसकी धाराओं में ये भी बताया गया है कि जिन कैदियों के मामलों में सजा नहीं सुनाई गई है या फिर मामला विचारधीन है, वो चुनाव लड़ सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों में फैसला सुनाया है. यही वजह है कि कई बड़े नेताओं ने भी जेल से चुनाव लड़े और जीते भी हैं. 

जेल से चुनाव लड़ने वालों में जॉर्ज फर्नांडिस, मुख्तार अंसारी, आजम खान, अखिल गोगोई और कल्पनाथ राय जैसे नेताओं का नाम शामिल है. इन सभी नेताओं ने जेल से चुनाव लड़ने के बाद जीत दर्ज की. 

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कौन नहीं लड़ सकता है चुनाव?

अब चुनाव लड़ने का नियम तो आप समझ गए होंगे, लेकिन कुछ कैदी ऐसे भी हैं, जिन्हें चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है. RPA की धारा 8(3) के मुताबिक, किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए और कम से कम दो साल की सजा पाने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है. रिहा होने के बाद भी छह साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकता है. 

सुप्रीम कोर्ट भी साफ कर चुका है कि चुनाव लड़ने का अधिकार वैधानिक अधिकार है, ये कोई मौलिक या फिर कानूनी अधिकार नहीं है. कुल मिलाकर अगर आरोपी को दोषी साबित नहीं किया गया है और सजा नहीं हुई तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार दे दिया जाता है. हाल ही में ये वारिस पंजाब दे संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह ने भी लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए लड़ा था और जीत भी दर्ज की थी. जबकि उसे नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. 

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