इतने दर्द में थी कि मुझे मार रही थी... ट्रैफिक जाम के चलते तड़प-तड़प कर हो गई मौत

छाया पुरब सापले की ये दर्दभरी कहानी बहुत सारे सवालों का जवाब मांगती है. सवाल ये है कि क्या जवाब मिलेंगे.

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छाया की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा, शायद कोई नहीं.
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  • महाराष्ट्र के पालघर में छाया घर की सफाई के दौरान पेड़ गिरने से गंभीर रूप से घायल हुईं.
  • छाया को इलाज के लिए मुंबई ले जाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में ट्रैफिक जाम में फंस गईं.
  • ट्रैफिक जाम के कारण अस्पताल पहुंचने में देरी हुई, जिससे छाया की मौत हो गई.
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मौत तो सबको आनी है, मगर कुछ लोगों की मौत दिल को कचोट जाती है. ऐसी ही मौत है छाया की. महाराष्ट्र के पालघर इलाके में मधुकर नगर की रहने वाली छाया का हंसता-खेलता परिवार था. मगर अचानक एक दिन परिवार पर दुख ने जोरदार हमला कर दिया.  31 जुलाई को 49 वर्षीय छाया पुरब सापले अपने घर की सफाई करवा रही थीं. अचानक एक बड़ा पेड़ उन पर गिर पड़ा. रिब्स, कंधे व खोपड़ी में गंभीर चोट लगी. पति कौशिक आनन-फानन में पत्नी को लेकर अस्पताल एंबुलेंस से निकल पड़े. मगर दुख को फिर भी दया नहीं आई. रास्ते में जाम लगा था और जाम में छाया पल-पल तड़पती रहीं और अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ दिया.

5 मिनट से जिंदगी हार गई

कौशिक ने उस दिन को याद करते हुए बताया, 'पालघर में कोई ट्रॉमा सेंटर नहीं होने के कारण छाया को हम मुंबई के महिम स्थित हिंदुजा अस्पताल ले जा रहे थे. हमने बहुत कोशिश की छाया को बचाने की, लेकिन ट्रैफिक जाम के चलते नहीं बचा सके. हमने एस्कॉर्ट तक मंगवाया, लेकिन हमारी एंबुलेंस को निकलने की जगह नहीं मिली. डॉक्टर ने मुझसे कहा कि सिर्फ "5 मिनट पहले" अगर उसे अस्पताल पहुंचा दिया होता, तो वह जिंदा होती. रास्ते कंक्रीट के होने के बावजूद ट्रैफिक जाम क्यों हो रहा है? रास्तों पर गड्ढे इतनी ज्यादा थे कि उसका दर्द बढ़ता चला गया और उसे मल्टीपल अटैक आ गए. मेरी बस यह दरखास्त है कि रास्ते सही कर दीजिए, और किसी से कुछ शिकायत नहीं है? वह इतनी ज्यादा दर्द में थी कि मुझे मार रही थी, दांत से काट रही थी, रो रही थी कि उसे जल्दी अस्पताल पहुंचाया जाए. जितने समय में हमें हिंदुजा अस्पताल पहुंचना था, उतने समय में हम आधा रास्ता भी नहीं पहुंचे थे. दोनों दिशा से गलत लेन में गाड़ियां चल रही थीं.'

दर्द देख पहुंचे दूसरे अस्पताल

आगे थोड़ी भर्राई आवाज में कौशिक ने बताया, 'छाया को लेकर एंबुलेंस दोपहर 3 बजे रवाना हुई. यात्रा का अनुमानित समय 2.5 घंटे था, लेकिन NH-48 पर भयंकर ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण यह यात्रा चार घंटे तक खिंच गई. एंबुलेंस मानेर के पास फंसी और 6 बजे विरार पहुंची. 7 बजे मीरा रोड तक पहुंचे. वहां जाम इतनी भीषण थी कि लोग विपरीत दिशा में गाड़ी चलाने के लिए मजबूर थे. पालघर के डॉक्टरों ने छाया को जो दर्द बर्दाश्त करने के लिए एनेस्थीसिया दिया था, उसका असर लगभग 4 घंटे तक रहने वाला था. हमें उम्मीद थी कि हम उससे पहले अस्पताल पहुंच जाएंगे, मगर रास्ते में ज्यादा समय लग गया. एंबुलेंस के विरार पहुंचने तक छाया को तेज दर्द शुरू हो गया. छाया को बेहतर महसूस कराने के लिए उन्होंने अपने बेटे को बुलाया, परंतु छाया ने उनसे ऐसा न करने का अनुरोध किया.' कौशिक के अनुसार, “मुझे चार घंटे तक छाया को दर्द में तड़पते देखना पड़ा”. छाया की ये दर्दभरी कहानी बहुत सारे सवालों का जवाब मांगती है. सवाल ये है कि क्या जवाब मिलेंगे.

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