सेना में महिलाओं (Women Army Officers) को स्थायी कमीशन मिलना एक बड़ा मील का पत्थर माना गया है. ऐसी ही उपलब्धि हासिल करने वाली छह महिला अफसरों से हमने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( International Women's Day) के मौके पर बात की. उनसे सेना में एक महिला अफसर होने के नाते उनके अनुभवों को लेकर जब सवाल किए गए तो यही आम राय निकल कर आई कि नेतृत्व संभालने में महिला या पुरुष होना मायने नहीं रखता. सिर्फ महिला होने के नाते खुद को साबित करना होता है, इस बात से भी वो सहमत नहीं थीं. उनका कहना था, हमें तो कभी भेदभाव फील नहीं होता . आर्मी इज एबाउट यू आर ए सोल्जर यू आर नॉट ए मैन एंड नॉट ए वूमेन लीडरशिप इज नॉट अबाउट जेंडर. इन महिला अफसरों के साथ बातचीत के प्रमुख अंश...
लेफ्टिनेंट कर्नल अनिला खत्री : सेना की वर्दी बहुत अच्छा लगता है और जिम्मेदारी का एहसास भी है . वर्दी पहनते हैं तो खुद में जैसे अपने आप स्पाइन सीधा हो जाता है और गर्व की अनुभूति होती है. यह बात मुझे मीडिया का समझ में नहीं आता है कि आप कम ज़्यादा लड़ाई पर आप आते ही क्यों हैं . हमें जो काम दिया जाता है वह काम हम करते हैं. तुलना करना मेरे हिसाब से जरूरी नहीं है, क्या आपने यह काम किया तो हमने अपनी पूरी काबिलियत से यह काम किया है, पर यह देखना कि उसने तो ऐसा किया और मैंने ऐसा किया मेरे हिसाब से लाना जरूरी नहीं है. आपने मेरी काबिलियत के हिसाब से भरोसा करके काम दिया है. मैंने उसी हिसाब से काम किया है मेरे लिए यह संतुष्टि है .
मेजर कनिका सिंह : हमने तो फिर भी सोचा हुआ था कि हमें सेना में भर्ती होना है. ऐसा कुछ नहीं है कि महिलाओं को कम ट्रेनिंग दिया जाता है. मैं लकी हूं कि मेरे साथ मेरे ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर खड़े हैं, जो एवरेस्ट सम्मिट की है. मुझे नहीं लगता कि महिलाओं की ट्रेनिंग कम होती है हर चैलेंज को महिलाएं पूरा करती है. मुझे लगता है कि आने वाले सालों में महिलाओं को और दूसरे स्ट्रीम में भी काम करने का मौका मिलेगा. हमें जो काम दिया जा रहा है, हम उस पर फोकस करना चाहिए और जो पॉलिसी बनाने के लिए हैं, उनको पॉलिसी बनाना चाहिए, जो हमें काम मिलता है हम उसे अच्छे से करें इसका जवाब उन्होंने तब दिया जब सवाल पूछा गया कि क्या भविष्य में महिलाओं को सेना में कॉम्बैट रोल मिलेगा.
मेजर अंकिता चौधरी : हर मुकाम पर हमने अपना सर्वोत्तम भी दिया है सेना ने हमें यहां तक पहुंचने के लिए मौका दिया है. मुझे लगता है कि अगर काबिलियत होगी तो यह दिन भी जरूर आएगा. सेना में ऐसा कोई कंपटीशन नहीं है कि इतने मेल होते हैं और इतने फीमेल होने चाहिए . इसमें एक सोल्जर होता है और अगर आप रिक्वायरमेंट फुल फिल करते हैं तुम मेल हो या फीमेल कोई फर्क नहीं पड़ता है. सेना में आने वाली महिलाओं को मैं यही कहना चाहूंगी कि जो मेरे सेना के अफसर ने कहा मैं वही कहूंगी कि जब मैंने मैरून कैप हासिल किया वन्स ए पैराट्रूपर इज नॉट ए ऑलवेज ए पैराट्रूपर यू हैव टू पैराट्रूपर एवरी डे सेम गोज तो एवरी वन . आप गुड सोल्जर हैं तो आपको हमेशा परफॉर्म करना होगा तो फौज आप ही के लिए है.
लेफ्टिनेंट कर्नल शिखा सुशील कुमार : मुझे लगता है मुश्किल सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं आती है, बल्कि पुरुषों के लिए भी आती है क्योंकि यह एक ऐसी आर्गेनाइजेशन है जहां आपको अपना जुनून अपना पसीना अपना मेंटल बैलेंस करते हुए कमीशन होना होता है. यह महिला और पुरुष दोनों के लिए ही चुनौती भरा होता है लेकिन आप लेकिन आप अगर मजबूत हैं तो आप इसका मुकाबला कर सकते हैं .कर्नल शिखा ने कहा, सेना में महिलाओं की शुरुआत काफी पहले से हो गई है 1992 से हो गई है जब सेना में महिलाओं की भर्ती शुरू हुई थी हां नंबर जरूर कम है लेकिन चुकी अब अपॉर्चुनिटी इतनी ज्यादा है कि यह नंबर बैलेंस होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. मैं तो यही कहना चाहूंगी कि अपने अंदर झांके और आपने यह काबिलियत है आप में मजबूती है तो आगे बढ़े . इंडियन नेवी एयरफोर्स आईएस रेलवे हर जगह मौका है मौका केवल महिलाओं के लिए नहीं सबके लिए है.
लेफ्टिनेंट कर्नल नम्रता राठौर : यह बहुत अच्छी बात है कि सेना ने महिलाओं को स्थायी कमीशन मिला. धीरे-धीरे करके महिलाओं ने अपने आप को प्रूफ किया है, जो मौका दिया है उस पर अपनी काबिलियत को खरा निखारा है, जो चुनौती दी है, उसका सामना किया और आगे जो भी पॉलिसी आएगी वह लगता है कि महिलाओं के बेहतरी के लिए ही पॉलिसी बनाएंगे.लेफ्टिनेंट कर्नल नम्रता ने कहा, हमें तो कभी भेदभाव महसूस नहीं होता. आर्मी इज एबाउट यू आर ए सोल्जर यू आर नॉट ए मैन एंड नॉट ए वूमेन लीडरशिप इज नॉट अबाउट जेंडर. यह निर्भर करता है कि आप जिस टीम को कमांड कर रहे हैं उस टीम का आपके ऊपर कितना भरोसा है और आपके कमान को वह फॉलो करते हैं आपकी डिसीजन के ऊपर खरे उतरते हैं.
लेफ्टिनेंट कर्नल पूनम सांगवान : महिलाओं को ही केवल प्रूफ करना पड़ता है मैं यह बात नहीं मानती हूं हम उतनी ही डेडिकेशन और जज्बे के साथ काम करते हैं जितना कि हमारे पुरुष सहयोगी काम करते हैं. कहीं अपने आप को महिला होने के नाते प्रूफ करना मैं इस बात से सहमत नहीं हूं. कर्नल पूनम सांगवान ने कहा, जब मैंने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया तो महिला होने के नाते मुझे कुछ अलग से फील नहीं हुआ इनको मैं शब्दों में जाहिर नहीं कर सकती जो मैंने महसूस किया एवरेस्ट के टॉप खड़े होकर जो भी फिजिकली से ज्यादा मेंटली स्ट्रांग होगा वह सब यह सब कर सकता है .