- ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को बांटने का फैसला लिया, जिससे देशभर में विरोध और गुस्सा फैला
- कोलकाता के हेमेंद्र मोहन बोस ने वंदे मातरम् गीत को रिकॉर्ड किया, जिससे ब्रिटिश सरकार में डर पैदा हुआ
- ब्रिटिश पुलिस ने रिकॉर्डिंग के खिलाफ छापे मारे, मशीनें तोड़ीं और रिकॉर्डिंग सामग्री जब्त कर लीं
बंगाल. 1905. एक फैसला. और एक विस्फोट. ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को बांट दिया. पूरा देश हिल गया. सड़कों पर गुस्सा उमड़ पड़ा. स्वदेशी की पुकार, स्वराज्य के दहाड़ बन गई. और एक खूबसूरत गीत… आजादी के दीवानों का दिल बन गया. वंदे मातरम्.
एक गीत. एक रिकॉर्डिंग जिससे ब्रिटिश सत्ता डर गई. उसे यह धुन खतरनाक लगी. दिलों को छेदने वाली. बहुत भावनात्मक. बहुत असरदार. कोलकाता में एक आदमी काम कर रहा था- हेमेंद्र मोहन बोस. वही जिसे आज हम HMV नाम से जानते हैं. अंग्रेजों का डर था. राजद्रोह का मुकदमे में फंस सकता था. लेकिन उन्होंने गीत को रिकॉर्ड कर दिया. 78 RPM डिस्क पर. आवाज अब ठोस थी. बजती थी. गूंजती थी. फैलती थी. ब्रिटिश पुलिस ने हमला शुरू कर दिया. छापे पड़े. मशीनें टूटीं. मास्टर डिस्क नष्ट कर दी गईं. बाकी रिकॉर्डिंग सीज कर ली गई. दुकानें सील. दरवाजे बंद. लेकिन… बहुत देर हो चुकी थी.
विदेश से आई वंदे मातरम की कॉपी
फ्रांस और बेल्जियम से लौट आई वंदे मातरम् की चिंगारी
कुछ मास्टर्स भारत से बाहर गए थे. यूरोप तक. फ्रांस पहुंचे. बेल्जियम पहुंचे. और वहां एक कंपनी थी- Pathé Frères. उन्होंने रिकॉर्ड दोबारा प्रेस कर दिए. नई प्रतियां बन गईं. नई आवाज़ें. नए रास्ते. ब्रिटिश उन्हें छू न सके.
रिकॉर्ड चल पड़े. रेल के डिब्बों में. छात्रावासों में. गुप्त बैठकों में. बाजारों के पीछे. थैलों में छुपकर. संदेश तेजी से फैलता गया. क्रांतिकारियों का लश्कर बढ़ता गया. जहां कहीं बजा, वहां भीड़ रुकी. वहां दिल धड़का. वहां क्रोध जागा. गीत चलता गया. देश बदलता गया. सवा सौ साल पहले. डिजिटल नहीं थी दुनिया. लेकिन कल-कल निनाद करता ये गीत, वंदे मातरम् वायरल हो गया था.














