बिहार में 'डायन' के नाम पर पांच लोगों की हत्या, भारत से 'डायन' जाती क्यों नहीं है?

बिहार के पूर्णिया जिले में डायन होने के शक में एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी गई. इसकी जानकारी सोमवार को तब हुई, जब पीड़ित परिवार का एक बच्चा अपने ननिहाल के लोगों के साथ पुलिस थाने पहुंचा. इस घटना ने देश में डायन के नाम पर हो रहे उत्पीड़न को उजागर किया है.

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  • बिहार के पूर्णिया जिले में एक ही परिवार के पांच लोगों की डायन के शक में हत्या की गई है.
  • पुलिस को जानकारी एक बच्चे से मिली, जो अपने ननिहाल के लोगों के साथ थाने पहुंचा.
  • डायन के नाम पर भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
  • एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में डायन प्रथा के नाम पर देश में 85 हत्याएं दर्ज की गईं थीं.
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नई दिल्ली:

बिहार के पूर्णिया जिले में डायन होने के शक में एक ही परिवार के पांच लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. घटना रविवार की है. इसकी जानकारी सोमवार को हुई, जब पीड़ित परिवार का एक बच्चा अपने ननिहाल के लोगों के साथ पुलिस थाने पहुंचा. आरोपियों को शक था कि पीड़ित परिवार की एक महिला डायन है. इससे पहले जून में भी इसी तरह की एक घटना बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुई थी.बिहार और देश के दूसरे हिस्सों में डायन के नाम पर होने वाली हत्याएं और उत्पीड़न की घटनाएं डराने वाली हैं.  

झारखंड, बिहार, असम, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आज भी ‘डायन' के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है. कभी परिवार की संपत्ति हड़पने की साजिश में, कभी निजी दुश्मनी में, तो कभी महज बीमारी और अनहोनी के लिए एक ‘बलि का बकरा' खोजने के बहाने के रूप में महिलाओं को निशाना बनाया जाता है.

डराने वाले हैं एनसीआरबी के आंकड़े 

डायन प्रथा से जुड़ी यह क्रूरता भारत के कई राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में आज भी सांस ले रही है. हर बार जब कोई महिला डायन कहकर पीटी जाती है, तो इंसानियत पर एक गहरी चोट लगती है.

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़े इस अमानवीय सच्चाई की केवल एक झलक दिखाते हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में डायन प्रथा के नाम पर देशभर में 85 हत्याएं दर्ज हुईं. लेकिन जो दर्द पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पाता, उसकी संख्या कहीं अधिक है. कई पीड़ित महिलाएं तो कभी पुलिस स्टेशन तक पहुंच ही नहीं पातीं. डर, समाज का दबाव और अक्सर पुलिस की अनदेखी, इस काली गिनती को अधूरा छोड़ देती है.

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नि:संदेह आंकड़ों में सुधार हुए हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 में आंकड़े के मुताबिक़ झारखंड में 2012 से 2014 के बीच 127 महिलाओं की हत्या डायन बताकर कर दी गई.राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री एचपी चौधरी ने ये आंकड़े बताए थे. 2022 आते-आते देश भर में इस अपराध में कमी आई है लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म होने में शायद अभी भी समय लगेंगे. 

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दूसरे देशों में भी होती हैं डायन के नाम पर हत्याएं

यह समस्या सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (2021) की रिपोर्ट बताती है कि 2009 से 2019 के बीच विश्व के 60 देशों में करीब 20,000 ऐसी घटनाएं सामने आईं, जहां लोगों को डायन बताकर प्रताड़ित किया गया.

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इस खौफनाक कुप्रथा की सबसे बड़ी शिकार महिलाएं बनती हैं. खासकर वे जो विधवा हैं, अकेली हैं या मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रही हैं. समाज के बीमार हिस्से ने इन्हें हर अनहोनी का कारण मान लिया है. अगर किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए, फसल खराब हो जाए या गांव में कोई अनजानी विपत्ति आ जाए. तो इन बेबस महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है.

बीरूबाला राभा ने अकेले शुरु की थी लड़ाई की शुरुआत

असम की बीरूबाला राभा अंधकार के बीच उम्मीद की किरण के रूप में दिखाई देती हैं. राभा ने इसी प्रथा के खिलाफ अकेले मोर्चा खोला था. उन्होंने अपना पूरा जीवन डायन प्रथा के खिलाफ संघर्ष में झोंक दिया. उनकी मेहनत रंग लाई और असम में ‘Witch Hunting (Prohibition, Prevention and Protection) Act, 2015' जैसा कानून लागू हुआ. इसके बावजूद यह सवाल आज भी जलता हुआ खड़ा है जब इतने कानून बन गए, इतनी जागरूकता फैली, तब भी आखिर क्यों डायन प्रथा भारत से खत्म नहीं हो पा रही है? क्यों समाज आज भी विज्ञान को ठुकराकर अंधविश्वास की गोद में बैठा है? और क्यों कानून के होने के बावजूद पीड़िता को इंसाफ के लिए लड़ना पड़ता है?

इस प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न राज्यों में कानून बनाए गए हैं 

  • बिहार: 'Prevention of Witch (Daain) Practices Act, 1999'  
  • झारखंड: 'Prevention of Witch (Daain) Practices Act, 2001'  
  • राजस्थान: 'Rajasthan Prevention of Witch-Hunting Act, 2015'  ट
  • असम: 'Assam Witch Hunting (Prohibition, Prevention and Protection) Act, 2015' 

झारखंड की छुटनी महतो के बड़े काम 

भारत सरकार ने झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता छुटनी देवी को उनके डायन विरोधी अभियान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था.बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार सरायकेला खरसावां ज़िले की रहनेवाली छुटनी देवी को कभी डायन बताकर मैला पिलाया गया था और घर से निकाल दिया गया था. उस दौरान उनके पति ने भी उनका साथ नहीं दिया था. बाद में उन्होंने इस प्रथा के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी. 

झारखंड सरकार लेकर आई थी गरिमा योजना

इस योजना के तहत महिलाओं को 'डायन' प्रथा से बचाने और उन्हें पुनर्वासित करने का प्रयास किया गया.  इस परियोजना के तहत 2,600 से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की गई. इस प्रोजेक्ट के तहत जगह-जगह गरिमा सेंटर खोले गए हैं, जहां डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं की काउंसलिंग की जाती है.

डायन होने के नाम पर महिलाओं पर होने वाले जुल्म में कमी आई है लेकिन उसे शून्य तक पहुंचाने में अभी भी समय लगेंगे.  सरकारी स्तर पर कानून हैं लेकिन एक समाज के तौर पर जिम्मेदारी भी हमारी तय होनी चाहिए. 

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