किसानों के मुद्दे पर दिल्ली में भूख हड़ताल करूंगा :अन्ना हजारे

वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार रोधी मुहिम का अग्रणी चेहरा रहे हजारे ने याद दिलाया कि उन्होंने जब रामलीला मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी तो तत्कालीन संप्रग सरकार को संसद का विशेष सत्र आहूत करना पड़ा था.

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सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे(फाइल फोटो)
पुणे:

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा और अपना फैसला दोहराया कि ‘‘वह जनवरी के अंत में दिल्ली में किसानों के मुद्दे पर अंतिम भूख हड़ताल करेंगे.''केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विभिन्न किसान संगठनों के जारी आंदोलन के बीच हजारे ने यह चिट्ठी लिखी है. हजारे ने बाद में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि नए कृषि कानून ‘‘लोकतांत्रिक मूल्यों'' के अनुरूप नहीं हैं और विधेयकों का मसौदा बनाने में जन भागीदारी जरूरी है. हजारे (83) ने तारीख बताए बिना कहा कि वह महीने के अंत तक उपवास शुरू करेंगे.

पिछले साल 14 दिसंबर को हजारे ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर आगाह किया था कि कृषि पर एम एस स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों समेत उनकी मांगें नहीं मानी गयीं तो वह भूख हड़ताल करेंगे. उन्होंने कृषि लागत और मूल्य के लिए आयोग को स्वायत्तता प्रदान करने की भी मांग की है. हजारे ने कहा, ‘‘किसानों के मुद्दे पर मैंने (केंद्र के साथ) पांच बार पत्र व्यवहार किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया.'' हजारे ने प्रधानमंत्री को पत्र में लिखा है, ‘‘इस कारण मैंने अपने जीवन की अंतिम भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया है.'' कार्यकर्ता ने कहा कि उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी भूख हड़ताल के लिए संबंधित प्राधिकारों से अनुमति के लिए चार पत्र लिखे थे लेकिन एक का भी जवाब नहीं आया.

वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार रोधी मुहिम का अग्रणी चेहरा रहे हजारे ने याद दिलाया कि उन्होंने जब रामलीला मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी तो तत्कालीन संप्रग सरकार को संसद का विशेष सत्र आहूत करना पड़ा था. उन्होंने कहा, ‘‘उस सत्र में आप और आपके वरिष्ठ मंत्री (भाजपा उस समय विपक्ष में थी) ने मेरी प्रशंसा की थी लेकिन अब मांगों पर लिखित आश्वासन देने के बावजूद आप उन्हें पूरा नहीं कर रहे हैं.'' बाद में एक स्थानीय समाचार चैनल के साथ बात करते हुए हजारे ने दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन पर कहा कि कानूनों का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में लोगों को शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘ये (कृषि) कानून लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं. अगर सरकार कानून का मसौदा तैयार करने में लोगों की भागीदारी की अनुमति देती है, तो वह ऐसे कानून बना पाएगी जैसे लोग चाहते हैं. 

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