नीतीश कुमार की विशेष राज्य के दर्जे की मांग को गंभीरता से अब क्यों नहीं लेना चाहिए

केंद्र और बिहार में एनडीए की जब सरकार है तो मांग का क्या औचित्य है. नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को उनका वादा दिलाकर ये मांग मानने के लिए क्यों नहीं कहते हैं.

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पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सोमवार को अपने विशेष राज्य के दर्जे (Bihar Special Status) की मांग को फिर से दोहराया है. इसका आधार उन्होंने बनाया है कि चूंकि नीति आयोग ने बिहार को अधिकांश विकास के पैमाने पर फिसड्डी और राज्य को गरीब राज्य माना है, तो विशेष राज्य का दर्जा जो उनकी पुरानी मांग है, वहीं इसका समाधान है.नीतीश ने अपनी मांग जिस तल्ख़ और व्यंग के लहजे में रखी, उसके पक्ष में जो बातें रखी है- वो तार्किक है. जैसे उन्होंने माना कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय जो 2005 में 7 हज़ार से अब 50,735 उनके शासन काल में पहुंची है, लेकिन वो अभी वर्तमान राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय के राष्ट्रीय 134432 का आधे से भी कम है.

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वर्तमान विकास दर से भी राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में वर्षों लग जाएगा. वहीं अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी का जो 60-40 या 70-30 का फ़ॉर्म्युला होता है, वो सीधे केंद्र के हिस्से में 90 प्रतिशत और राज्य को मात्र दस प्रतिशत भार उठाना होगा.  इससे जो बचत राज्य को होगी, वो अन्य विकास के काम में लगाई जा सकेगी. इसका असर लोगों की आय पर दिखेगा .

दूसरा तर्क नीतीश कुमार ने यह दिया है कि बिहार का क्षेत्रफल देश में 12वां है. जबकि आबादी में ये पूरे देश में तीसरे स्थान पर है. इससे एक असंतुलन की स्थिति है. उन्होंने माना है कि भले राज्य की प्रजनन दर उनके अथक प्रयासों से तीन प्रतिशत आ गई है, लेकिन जल्द आबादी में बिहार महाराष्ट्र को पीछे छोड़कर दूसरे स्थान पर होगा. उन्होंने माना कि सही है बिहार में ग़रीबी है और ये पिछड़ा राज्य है, लेकिन उनका कहना है कि नीति आयोग का नाम और काम बिहार जैसे राज्यों को आगे बढ़ाना है.

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लेकिन सवाल है कि नीतीश कुमार की बातों को गंभीरता से क्यों नहीं लेना चाहिए . इसके तीन कारण हैं. सबसे पहला कि केंद्र और बिहार में एनडीए की जब सरकार है तो मांग का क्या औचित्य है, क्योंकि ये वादा तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधान मंत्री चुने जाने के पहले पूर्णिया की सभा में किया था. जो नीतीश कुमार सबको ये याद दिलाते है कि आपने शराबबंदी के लिए शपथ खाई थी, वो नरेंद्र मोदी को उनका वादा दिलाकर ये मांग मानने के लिए क्यों नहीं कहते हैं. इसकी वजह शायद यह है कि सरकार चलाने में उन्हें बीजेपी से सहयोग मिलता है.

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दूसरी उनकी मांग को इसलिए उनके समर्थक भी गंभीरता से न लेने की सलाह देते है क्योंकि जो बात नीतीश सार्वजनिक रूप से और चिट्टी लिख कर नीति आयोग से मांग कर रहे है, उसके बारे में अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों ख़ासकर बीजेपी के उप मुख्य मंत्री से लेकर अन्य मंत्रियों को क्यों नहीं समझाते या उस लायक़ क्यों नहीं समझते. तीसरा ये कि नीति आयोग को लिखी गई चिट्ठी हो या सोमवार को चुनिंदा मीडिया के सामने मांग को दोहराना, उसमें नीतीश की पुरानी और इस गंभीर मांग के प्रति प्रतिबदता अब नहीं दिखती.

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नहीं तो नीतीश हर गंभीर मुद्दे पर केंद्र को लिखी गई चिट्ठी को दिल्ली पहुंचने के बाद विधिवत रूप से पब्लिक डोमेन में ज़रूर रखते हैं. लेकिन इस बार वो जब वो इस विषय पर बात कर रहे थे तो उनका लहजा एक व्यंग्य और आहत इंसान का अधिक दिखा. उन्हें मालूम है कि मांग जायज़ है लेकिन उनकी सुनेगा कौन.

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इन सबसे अधिक BJP के नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन दबाव में अधिक काम करते है लेकिन नीतीश अब चूँकि राजनीतिक रूप से पहले की स्थिति में नहीं हैं तो दबाव डालना तो दूर इस मुद्दे पर ज्ञापन देने भी शायद ही दिल्ली जाएं, क्योंकि वो बेजीपी के लिए हर मुद्दे पर राजनीतिक परेशानी का कारण नहीं बन सकते और बीजेपी उनकी बातें उन मुद्दों पर बिल्कुल अनसुना कर देती है, जिससे उनका राजनीतिक क़द बढ़े. उसका प्रमाण है कि 2017 में जब से वो बीजेपी के साथ सरकार में वापसी की है, उसके बाद बाढ़ से होने वाले नुक़सान के बाद शायद ही केंद्र ने 20 प्रतिशत राशि की भरपाई की है.

वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए या वर्तमान स्थिति से एक लंबी छलांग लगाने का ये सही विकल्प भी हैं. लेकिन दिक्कत है कि नीतीश इस मुद्दे पर कभी भी सहयोगियों को साथ लेकर चलने में विश्वास नहीं किया. जिसकी वजह से उनके विरोधियों ने खासकर पूर्व में यूपीए और अब मोदी सरकार ने उनकी मांग को कभी गंभीरता से नहीं लिया. दूसरा सोमवार को जब उन्होंने अपनी उप-मुख्यमंत्री रेणु देवी को कैमरा पर नाम लेकर नसीहत दी लेकिन जब उस विषय पर उनका जवाब का वीडियो उनकी टीम ने रिलीज किया तो उस अंश को हटा दिया, जिससे साबित होता हैं कि नीतीश एक सीमा से अधिक इस मुद्दे को तूल देना नहीं चाहते और बस मांग की औपचारिकता करते हैं.

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